नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर अपराध के मामलों आरोप तय हो जाने पर चुनाव लड़ने पर रोक करने का फैसला संसद पर छोड़ दिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस बात पर चिंता जताई कि देश धनबल और बाहुबल के इस्तेमाल से काफी परेशान हैं। कोर्ट ने कहा कि हम चुनाव लड़ने की नई अयोग्यता नहीं जोड़ सकते। उम्मीद है संसद उपयुक्त कानून बनाएगी। फिलहाल, चुनाव फॉर्म में उम्मीदवार आपराधिक जानकारी दें। पार्टी वेबसाइट में भी जानकारी हो।
कोर्ट ने कहा कि राजनीति का अपराधीकरण खत्म होना चाहिए और इसे खत्म किया जा सकता है। इससे निपटने के लिए संसद को आगे आना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान ने पिछले 28 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस संविधान बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग ने याचिकाकर्ता की मांग का समर्थन किया था। निर्वाचन आयोग ने कहा था कि हम 1997 में और लॉ कमीशन 1999 में जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव की सिफारिश कर चुके हैं। लेकिन सरकार बदलाव नहीं करना चाहती। केंद्र सरकार ने कोर्ट में इस याचिका का विरोध किया था। सरकार का कहना था कि जब तक कोई दोषी साबित न हो जाये, तब तक किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता है। पिछले 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि जनप्रतिनिधियों के मुकदमों के निपटारे के लिए कितने स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट बने हैं ? कोर्ट ने पूछा था कि सांसदों औऱ विधायकों के खिलाफ कितने केस लंबित हैं ? कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि स्पेशल कोर्ट में कितने केस ट्रांसफर हुए?
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से दिनेश द्विवेदी ने कहा था कि अगर लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो सुप्रीम कोर्ट को आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा था कि जो उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले होते हैं उनके जीतने की उम्मीद बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों से ज्यादा होती है। उन्होंने कहा था कि कोर्ट संसद को परमादेश नहीं दे सकता है तो वो निर्वाचन आयोग को परमादेश जारी करे। जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा था कि अयोग्यता भूल जाइए, क्या हम आरोपियों पर रोक के लिए नियम बना सकते हैं। कोर्ट ने कहा था कि चुनाव लड़ने के लिए योग्यता को मजबूत किया जा सकता है।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा था कि चुनाव लड़ने की चाहत रखनेवाले आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की तस्वीर या होर्डिंग उसी तरह लगवा देनी चाहिए जैसे सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी जारी किए जाते हैं।
पिछले 9 अगस्त को केंद्र सरकार ने कहा था कि कानून बनाना संसद का काम है। कोर्ट के आदेश से कानून को नहीं बदला जा सकता है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि राजनीतिक दल अपराधियों को बाहर करने पर गंभीर नहीं हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा था कि विधायिका के लिए ये संभव है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को अयोग्य करार दे सकते हैं। लेकिन अगर विधायिका इस पर मौन हो तो क्या न्यायपालिका को दिशानिर्देश जारी नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा था कि सेलेक्ट कमेटी ने केवल इस न्यायशास्त्र पर इसे खारिज कर दिया कि जब तक दोषी न करार दिया जाए तब तक व्यक्ति निर्दोष है। विधायिका के इसी मौन की वजह से 34 फीसदी विधायक आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं। राजनीति का अपराधीकरण लोकतंत्र का मजाक है । ये एक व्यक्ति एक वोट के सिद्धांत को खारिज करता है। द्विवेदी ने सांसदों और विधायकों द्वारा शपथ लेते समय बोले गए शब्द को पढ़ा था जिसमें लिखा गया है कि भारत की एकता और संप्रभुता की रक्षा करेंगे।
द्विवेदी ने कहा था कि 1950 में दोषी पाए जाने पर अयोग्य ठहराने का प्रावधान लागू किया गया। लेकिन आज भी जीताऊ फैक्टर का खास ख्याल रखा जाता है। लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जीताऊ फैक्टर राजनीतिक दलों की वचनबद्धता खत्म करता है। तब जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि आपकी दलील के मुताबिक हमें सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। आप चाहते हैं कि हम संसद को ये समझाएं कि वे विधायिका में अपराधीकरण रोकने के लिए कानून बनाएं। उन्होंने कहा कि ये एक लक्ष्मण रेखा है कि हम संसद को कहें कि आप ऐसा कानून बनाइए। तब द्विवेदी ने कहा कि अगर विधायिका मौन हो तो ऐसा कर सकते हैं।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि हम निर्वाचन आयोग को एक परमादेश जारी करें कि आपराधिक प्रक्रिया के सभी तीन चरणों के आधार पर उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकें। लेकिन क्या हम इसे कर सकते हैं या संसद को इस पर कानून बनाना चाहिए। तब जस्टिस नरीमन ने कहा कि अयोग्यता का आधार तय करने के लिए किसी निकाय को निर्देश देना मुश्किल है। किसी व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होता है और वो नामांकन दाखिल करता है तो फास्ट ट्रैक प्रकिया अपनाए जने की जरुरत है। चीफ जस्टिस ने कहा कि ट्रायल पूरी हो और जैसे ही ये जजमेंट आता है कि वो व्यक्ति दोषी है तो वह अपने आप अयोग्य हो जाएगा। वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि निर्वाचन आयोग यह निर्देश दे सकता है कि आरोप तय होना दोषी होने से अलग है। धारा 125ए धारा 125 से अलग है।
केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि अयोग्य ठहराने के लिए कुछ और जोड़ने की जरुरत नहीं है। हम अधिकारों के विभाजन पर बहस करना चाहते हैं कि धारा 122 इसमें लागू नहीं होती है। जस्टिस नरीमन ने कहा कि मान लें कि एक व्यक्ति पर हत्या का आरोप है और उसके खिलाफ आरोप तय हो चुके हैं तो क्या वह शपथ लेने के योग्य है। इस पर अटार्नी जनरल ने कहा था कि धारा 21 कहती है कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन तब तक नहीं होगा जब तक उसे कोर्ट द्वारा दोषी न करार दिया जाए। अटार्नी जनरल ने कहा था कि ऐसा देखने में आता है कि ट्रायल के दौरान कुछ गवाह नहीं आते हैं और ट्रायल में अनावश्यक दे