अमृतसर । सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के राज्यपाल को लेकर फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि विधिवत निर्वाचित विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों की दिशा न भटकाएं और यह बहुत गंभीर चिंता का विषय है। बता दें कि पंजाब और तमिलनाडु सरकारों ने राज्यपालों द्वारा विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी न देने पर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। तमिलनाडु वाले मामले पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है।
कोर्ट ने राज्यपाल को लंबित विधेयकों पर जल्द निर्णय लेने के दिए आदेश
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अपने फैसले में कहा कि राज्यपाल विधायी सत्र की वैधता पर संदेह नहीं कर सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने जून के सत्र को वैध घोषित किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हमारा मानना है कि पंजाब के राज्यपाल को अब सहमति के लिए प्रस्तुत विधेयकों पर इस आधार पर निर्णय लेना चाहिए कि 19-20 जून 2023 को आयोजित की गई सदन की बैठक संवैधानिक रूप से वैध थी।”
राज्यपाल के वकील ने कहा- सत्र की वैधता के कारण लंबित हैं विधेयक
पंजाब सरकार की याचिका पर वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “4 विधेयक हैं, कुल 7 थे, लेकिन विषय अलग हैं। 4 पारित नहीं हुए हैं और बाकी 3 धन विधेयक हैं, जिन्हें पारित कराने के लिए सिफारिश की आवश्यकता है।” राज्यपाल के वकील ने कोर्ट से कहा, “सत्र की वैधता को लेकर 4 विधेयकों पर विवाद है। वकील ने संसद सत्र के नियमों का उल्लेख किया। कोर्ट ने कहा कि इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
कोट ने पूछा- राज्यपाल किस आधार पर तय कर रहे सत्र की वैधता
कोर्ट ने पंजाब के राज्यपाल को फटकार लगाते हुए कहा, “आप आग से खेल रहे हैं। राज्यपाल ऐसा कैसे कह सकते हैं? पंजाब में जो हो रहा है उससे हम खुश नहीं हैं। क्या हम संसदीय लोकतंत्र बने रहेंगे? यह बहुत ही गंभीर मामला है। कोर्ट ने राज्य को विधिवत निर्वाचित विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को न अटकाने के लिए भी कहा। कोर्ट ने राज्यपाल से पूछा, “कोई सत्र अवैध है या नहीं वो किस आधार कह रहे हैं?”
कोर्ट ने कहा- सहमति नहीं तो तुरंत वापस करें विधेयक
तमिलनाडु की सरकार की याचिका पर कोर्ट ने कहा, “अनुच्छेद 200 के प्रावधान के तहत यदि राज्यपाल विधेयक को लेकर सहमत नहीं है तो उसे ‘जितनी जल्दी हो सके’ एक संदेश के साथ वापस लौटा दे, जिस पर सदन पुनर्विचार कर सकता है।” कोर्ट ने कहा, “यदि यह सदनों द्वारा पारित हो जाता है तो राज्यपाल अपनी सहमति को रोक नहीं सकते।” कोर्ट ने इस दौरान तमिलनाडु सकरार द्वारा पेश किये गए 4 मामलों का उल्लेख किया।
कोर्ट ने कहा- ये गंभीर चिंता का विषय
मुख्य न्यायधीश (CJI)ने कहा, “ये मामला गंभीर चिंता का विषय है। ऐसा लगता है अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को सौंपे गए लगभग 12 विधेयकों पर आगे की कार्रवाई नहीं हुई है। अन्य मामले जैसे मंजूरी देने, कैदियों की समय से पहले रिहाई, नियुक्तियों के प्रस्ताव लंबित हैं।” कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। तमिलनाडु सरकार की याचिका पर अब अगली सुनवाई अब 20 नवंबर को होगी।
तमिलनाडु के कितने विधेयक और फाइलें हैं लंबित
राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि 2020-2023 के बीच विधानसभा द्वारा पारित 12 विधेयक राज्यपाल के पास लंबित हैं, जिन्हें 3 जनवरी 2020-28 अप्रैल 2023 के बीच सहमति के लिए भेजा गया। 10 अप्रैल 2022-15 मई के बीच 4 फाइलें सौंपी गईं। इसके आलवा 4 अभियोजन मंजूरी और 54 कैदियों की समय से पहले रिहाई से संबंधित फाइलें राज्यपाल के पास लंबित हैं। सरकार ने कोर्ट से कहा, ठएक संवैधानिक प्राधिकरण लगातार असंवैधानिक तरीके से काम कर रहा है।”
पिछले कई महीनों से सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव जारी
बता दें कि पंजाब और तमिलनाडु की सरकारों और उनके राज्यपालों के बीच काफी समय से टकराव की स्थिति है। बात करें पंजाब कि तो 20 और 21 अक्टूबर को मुख्यमंत्री मान ने पंजाब विधानसभा का सत्र बुलाया था जिसे राज्यपाल पुरोहित ने असंवैधानिक बताया था। वहीं, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और राज्यपाल आरएन रवि के बीच लंबित विधेयकों, स्टालिन की विदेश यात्राओं और सरकार के द्रविड़ मॉडल को लेकर भिड़ंत हो चुकी है।