औरत को ‘ग़ुलाम’ बनाए रखने की साज़िश है ‘हिजाब’
लोकप्रिय शायर असरारुल हक़ मजाज़ की यह पंक्तियां अक्सर मेरी बहनों ने आंदोलनों के दौरान खूब इस्तेमाल की हैं-‘तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन/तू इस आंचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था।’ इसी शेर की शुरुआती पंक्ति कुछ इस तरह है जो कम ही सुनने को मिलती है-‘हिजाब-ए-फितनापरवर अब … Read more