गोवा में अबतक का सबसे बड़ा जमीन घोटाला, सरकार पर हमलावर हुआ विपक्ष

गोवा में कथित जमीन घोटाले को लेकर विपक्षी दल सरकार पर हमलावर है. 1.2 करोड़ वर्ग मीटर जंगल की जमीन को औने पौने दाम में रियल एस्टेट कंपनियों को देने को लेकर विपक्षी पार्टियों ने सावंत सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. विपक्षी दलों का आरोप है कि 2019 में तत्कालीन वन मंत्री प्रमोद सावंत के कार्यकाल में इस जंगल की जमीन को सरकार ने मोटी रकम लेने के लिए रियल एस्टेट कंपनियों को दे दी. सरकार राज्य के पर्यावरण की अनदेखी कर जंगलों की कटाई करवाकर वहां बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी करवाना चाहती है. यह गोवा के लिए खतरा है. इससे यहां पर प्राकृतिक आपदाओं का खतरा तेजी से बढ़ेगा. विपक्ष का कहना है कि 20121 में  राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) को अंतरिम रिपोर्टों में पुनर्वर्गीकरण के पर्यावरणीय प्रभावों पर चिंता जताई थी. प्राधिकरण ने साफ किया था कि इस भूमि पर निर्माण से आने वाले समय में बड़े नुकसान का खतरा हो सकता है.

विपक्ष का आरोप, 50 हजार करोड़ रुपये का है स्कैम
गोवा कांग्रेस ईकाई के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष गिरिश चोडणकर ने मुख्यमंत्री सावंत पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि प्रमोद सावंत भले ही इस जमीन घोटाले से खुद को अलग करते नजर आ रहे हैं, लेकिन यह घोटाला उनके वन मंत्री के कार्यकाल में ही हुआ है. इसका प्रमाण विपक्ष लगातार देता रहा है. जुआरी एग्रो कंपनी को सस्ती दर पर जंगल की जमीन उन्हीं के शासन काल में दिया गया. कांग्रेस नेता गिरिश ने प्रमोद सावंत पर आरोप लगाया कि वह इस स्कैम में शामिल हैं


साल 2021 में गोवा के तत्कालीन वन मंत्री और मौजूदा मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के कार्यकाल के दौरान 383 हेक्टेयर निजी जंगल को विकास के नाम कौडियों के भाव में बिल्डरों को दे दिया गया. इसके साथ ही यह बात भी सामने आई कि ज़ुआरी एग्रो प्राइवेट लिमिटेड जैसी बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए करीब 50,000 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ. इस मामले का खुलासा उस वक्त हुआ जब गोवा फॉरवर्ड पार्टी के नेता विजय सरदेसाई ने इसे विधानसभा में उठाया. इस घोटाले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि केवल तीन महीने के भीतर इतनी बड़ी मात्रा में जंगल की जमीन को कंपनियों को दे दिया गया. यह दिखाता है कि विकास के नाम पर पर्यावरण को कैसे नजरअंदाज किया जा रहा है. विपक्ष के मुताबिक, पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर इसे रोका नहीं गया, तो आने वाले समय में गोवा में प्राकृतिक आपदाएं होने से कोई रोक नहीं सकता. विपक्ष का आरोप है कि अगर समय रहते सरकार ने इसे नहीं रोका तो सड़क से लेकर सदन तक विरोध प्रदर्शन शुरू होगा.

कैसे हुई घोटाले की शुरुआत

भूटानी इंफ्रा नामक कंपनी इस घोटाले के केंद्र में है. इसके तहत, 1.2 करोड़ वर्ग मीटर जंगल की जमीन थी उसे हटाकर रियल एस्टेट कंपनी को आवासीय और व्यावसायिक के लिए दे दिया गया.  यह काम बहुत तेजी से और गोपनीयता के साथ किया गया, जिससे आम जनता को पता ही नहीं चला कि उनके राज्य की प्राकृतिक धरोहर को किस तरह से बर्बाद किया जा रहा है. इस खेल की शुरुआत 2019 में तत्कालीन वन मंत्री प्रमोद सावंत के कार्यकाल में हुआ था. 2002 में कुछ भूमि को कृषि से आवासीय क्षेत्र में बदलने की मंजूरी दे दी गई और 2007 में विकास की अनुमति भी दी गई. उनके कार्यकाल में इस जमीन को निजी जंगल की सूची से हटा दिया गया, जिससे बड़े डेवलपर्स के हाथों कौड़ियों के भाव में बेच दिया गया. इसके अलावा, मोरमुगाओ प्लानिंग और डेवलपमेंट अथॉरिटी (MPDA) के तत्कालीन अध्यक्ष क्लाफासियो डायस पर भी आरोप लगे हैं कि उन्होंने डेवलपर्स को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए नियमों का उल्लंघन किया.


विपक्ष का आरोप है कि जंगल की जमीन को विकास के नाम पर बेचना पर्यावरण के साथ सीधा सीधा खिलवाड़ है. विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने जंगल की जमीन कौड़ियों के भाव में बेचकर ना सिर्फ आर्थिक घोटाला को अंजाम दिया है, बल्कि यह गोवा के पर्यावरण के लिए भी एक बड़ा खतरा है.

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