
- अल्प समय में ही बडे कविसम्मेलन का आनन्द देगये कविद्वय
- कवि वलराम श्रीवास्तव ने अपने बिद्यालय पर किया कवियों का भव्य स्वागत व सत्कार
प्रवीण पाण्डेय/अनिरुद्ध दुबे
किशनी/मैनपुरी। कस्बा निवासी प्रख्यात कवि वलराम श्रीवास्तव के बिद्यालय में पधारे दिल्ली के दो प्रसिद्ध कवियों का विद्यालय परिवार ने भावभीना सत्कार किया। साथ ही कवियों ने प्रेसवार्ता के बीच अपनी अपनी प्रसिद्ध रचनाओं को सुनाकर अल्प समय में ही मौजूद लोगों को वाह वाह करने को बिवस कर दिया।
शनिवार को राष्ट्रीय कवि के तौर पर ख्याति प्राप्त कर चुके कस्बा निवासी वलराम श्रीवास्तव के निजी विद्यालय में दिल्ली से पधारे अर्न्तराष्ट्रीय स्तर के कवि डा0 प्रवीण शुक्ल तथा डा0 कीर्ति काले कुछ समय के लिये रूके। दोनों कवि फर्रूखाबाद की रामनगरिया में होने बाले कवि सम्मेलन में भाग लेने जा रहे थे।
पत्रकारों से बातचीत के दौरान कवि डा0 प्रवीण शुक्ल ने कई मुद्दों पर अपनी राय बेवाकी से रखी। उन्होंने कबिता के गिरते स्तर पर चिन्ता व्यक्त करते हुये कहा कि आज के दौर में कुछ कवि अपने अपने मैनेजर रखे हैं। वही लोग कबिताओं की एडिटिंग कर सोशल मीडिया पर उछाल देते हैं। इसमें जहां तालियां नहीं भी बजती हों वहां बज जातीं है। जबकि कुछ महान और प्रख्याति कवि चर्चा में आने के लिये येसा नहीं करते हैं। कवियत्री डा0 कीर्ति काले ने कहा कि महिला होना उनकी राह में कभी आडे नहीं आया। उन्होंने मौजूद लोगों से कहा कि यदि आपके घरों कोई प्रतिभावान है तो उसकी प्रतिभा को महज इसलिये नहीं छिपाना चाहिये कि वह महिला या लडकी है।
डा0 प्रवीण शुक्ल ने अपनी रचना में उस काल का उल्लेख किया जब देश कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन की स्थिति से गुजर रहा था। अपनी हास्य ब्यंग की रचना पढते हुये कवियों की स्थिति पर कहा कि “कुछ घबरा रहे थे, कुछ गीत गा रहे थे कवियों के यहां जाने कितने धडे हुये। खालीपीली बैठकर मोवाइल चैट कर कोई मुर्दे उखाड रहा था गडे हुये। कितने दिनों तलक बैठना पडेगा घर,प्रश्न येसे येसे जाने कितने खडे हुये, दुनियां को रातदिन कविता सुनाते थे जो बीबी से वो सुनते थे घर में पडे पडे।
इसके बाद कीर्ति काले ने भी अपनी रचना सुनाई। उन्होंने भी देश में फैले कोराना संक्रमण, आतंकवाद, मंहगाई, पाकिस्तान और चीन की सीमाओं पर फैले तनाव पर ध्यान केन्द्रित करते हुये अपनी रचना कुछ इस तरह से पढी “कि काल की कुचाल हार जायेगी, निश्चित हम जीत जायेंगे,ये दिन भी बीत जायेंगे। माना कि घुटी घुटी सांसों की डोर है, संक्रमित हवाओं का पहरा सब ओर है, आशंकित संध्या है सहमी सी भोर है,रात के अंधेरे का ओर है न छोर है, पर हम अमावस के पंजे से, सूरज को खींच लायेंगे, निश्चित हमजीत जायेंगे
दोनों कवियों का बिद्यालय परिवार सहित विद्यालय के संस्थापक कवि वलराम श्रीवास्तव उनकी पत्नी तथा सभासद पति देवेन्द्र श्रीवास्तव,सतीश सविता आदि में शॉल व माल्यार्पण कर स्वागत किया। दोनों कवियों को प्रतीक चिन्ह भी भैंट किये।










