
आजकल की स्ट्रीमिंग-फर्स्ट की दुनिया में चित्रों के माध्यम से कहानी सुनाने का क्रेज इतना नहीं या इसके लिए ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। बिंज-योग्य सीरीज़ से लेकर प्रतिष्ठित डॉक्यूमेंट्री तक, इन कहानियों के प्रवाह और भावनाओं को आकार देने वाले गुमनाम नायक अक्सर संपादन कक्ष में छिपे रह जाते हैं। उनमें से एक हैं कार्तिकेय गुप्ता (Kartikye Gupta), जिनके स्क्रीन के पीछे के काम ने साइलेंट किरदार की तरह नेटफ्लिक्स, हुलु और सीएनएन जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर सबसे ज़्यादा देखी जाने वाली कुछ सामग्रियों को परोसा है।
[In today’s streaming-first world, storytelling has never moved faster-or demanded more precision. From binge-worthy series to prestige documentaries, the unsung heroes shaping the flow and feelingof these stories are often found in the editing bay. One of them is Kartikye Gupta, whose work behind the screen has quietly supported some of the most-watched content across platforms like Netflix, Hulu, and CNN.]
स्ट्रीमिंग के लिए किए जाने वाले संपादन में एक अलग लय और ताल की जरूरत होती है। जिससे एपिसोड को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि एपिसोड दर्शकों को बांधे रखने और उन्हें अगले एपिसोड को देखने के लिए उत्तेजित करने में सफल हो। कार्तिकेय गुप्ता इस काम में माहिर हैं। उन्हें इसकी अच्छी समझ है कि ‘कब किसी पल को सांस लेने देना है या कब दर्शक को यह एहसास होने से ठीक पहले रोक देना है कि वे क्या महसूस करने वाले हैं।’
realizes what they’re about to feel.]
क्राइम थ्रिलर से लेकर कैरेक्टर बेस्ड डॉक्यूमेंट्री तक, अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले कार्तिकेय गुप्ता ने कहानी में दर्शकों खो जाने देने की कला में महारत हासिल कर ली है। उनकी लिखने की शैली खुद पर ध्यान आकर्षित नहीं करती। इसके बजाय, यह कहानी को इस तरह से उभारती कि वो सुनने और देखने में सहज लगे जबकि वह सहज नहीं होती है।
[Having worked across genres—from crime thrillers to character-driven documentaries-Gupta has mastered the art of disappearing into the story. His style doesn’t draw attention to itself. Instead, it supports the narrative in a way that feels effortless, though it’s anything but.]डिजिटल प्लेटफॉर्म के आने से संपादकों की भूमिका भी बढ़ गई है। अब संपादन कार्य केवल दृश्यों को जोड़ने का काम नहीं है बल्कि ध्वनि को आकार देने, गति को निर्देशित करने और यहां तक कि इमोशनल आर्क को प्रभावी बनाने का भी काम है। कार्तिकेय गुप्ता जैसे संपादक शुरुआती स्टेजों से निर्देशकों और निर्माताओं के साथ मिलकर काम करते हैं। कहानी के संरचना और शैली पर इस तरह से विचार करते हैं कि यह मैकेनिकल के बजाय कोलाबरेटिव हो।
[The rise of digital platforms has also expanded the role of editors. It’s no longer just about assembling scenes—it’s about helping shape tone, guide pacing, and even influence emotional arcs. Editors like Gupta work closely with directors and producers from early stages, weighing in on structure and style in a way that’s collaborative rather than mechanical.]कार्तिकेय गुप्ता के पास काफी बड़ा पोर्टफोलियो है इसके बावजूद उन्होंने पब्लिक प्रोफ़ाइल कम बनाई हैं। वह अपने काम को खुद बोलने देना पसंद करते हैं। कार्तिकेय गुप्ता एक ऐसे उद्योग से हैं जहां काम खुद बोलता है। वह खुद ही लोगों के सामने आ जाता है। जैसे-जैसे स्ट्रीमिंग विकसित होती जा रही है – कम समय में ज्यादा काम आ रहा है, अपेक्षाएँ बढ़ रही हैं और वैश्विक स्तर पर दर्शक बढ़े रहैं जिससे संपादकों की भूमिका भी बड़ी और महत्वपूर्ण होती जा रही है, जो दर्शकों को दिखता नहीं देता।
As streaming continues to evolve—with shorter attention spans, higher expectations, and global audiences—the role of editors is only becoming more critical. For viewers, it may be invisible.]
जो लोग इस विषय में जानते हैं, उनके लिए यह बात बिल्कुल सही है कि कार्तिकेय गुप्ता उन कलाकारों में से एक हैं जो कहानी कहने के भविष्य को चुपचाप आकार दे रहे हैं।
[For those in the know, it’s crystal clear: Kartikye Gupta is one of the craftsmen quietly shaping the future of storytelling.]