चीन के साथ व्यापार समय की जरूरत, लेकिन भारत को अपनी सांस्कृतिक स्वायत्तता बचाए रखनी होगी

भास्कर समाचार सेवा
नई दिल्ली। लेखक मनोज जैन, एस्ट्रो-वास्तु कंसल्टेंट एंड होलिस्टिक कोच हैं इन्होंने लिखा है कि सात साल बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा ने नि:संदेह आर्थिक सहयोग की नई संभावनाएं जगाई हैं। तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत के साथ मित्रता का संदेश दिया है, और यह निश्चित रूप से वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि व्यापार के नाम पर हमारी सांस्कृतिक स्वायत्तता की बलि न चढ़े। हमें अपने पिछले कड़वे अनुभवों को भूलना नहीं चाहिए। चीन ने केवल व्यापारिक हथकंडों से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक घुसपैठ से भी हमारी जड़ों को हिलाने की कोशिश की है। आज भारत में बिकने वाले 70% खिलौने चीन से आते हैं, और यह आंकड़ा 80% तक पहुंच गया है। यह केवल व्यापार नहीं है- हमारे बच्चों की मानसिकता पर सुनियोजित आक्रमण है। चीन इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों और गेम्स का बड़ा समर्थक है क्योंकि वे मनोरंजन के साथ बच्चों को सिखाने के नए तरीके देते हैं। लेकिन वास्तव में यह “शिक्षा” केवल दिखावा है। जो बच्चे चीनी इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों से खेलते हैं, वे तत्काल संतुष्टि के आदी हो जाते हैं, धैर्य खो देते हैं, और सामुदायिक भावना एवं मानसिक शांति विकसित करने वाले पारंपरिक खेलों से दूर हो जाते हैं। हमारे पारंपरिक खेल जैसे कबड्डी, खो-खो, गिल्ली डंडा सामूहिकता सिखाते थे, लेकिन चीनी गेम्स बच्चों को अकेले खेलने के लिए प्रेरित करते हैं। नतीजा यह होता है कि बच्चे घंटों तक इन गेम्स में खोये रहते हैं और सामाजिक कौशल खो देते हैं। फेंगशुई के मामले में भी चीन की चालाकी स्पष्ट है। उन्होंने अपनी कुछ हज़ार साल की विधा फेंगशुई को हमारे हजारों साल पुराने वास्तु शास्त्र के सामने खड़ा कर दिया है। आज हमारे देवी-देवताओं की मूर्तियां चीन में बनकर आ रही हैं। गणेश जी, लक्ष्मी माता, हनुमान जी की मूर्तियों पर ‘मेड इन चाइना’ का लेबल देखना हमारी धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। यह चिंता की बात है कि आर्थिक सहयोग के नाम पर चीन हमारी सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर कब्जा कर रहा है। चीन ने अपने एक मोटे आदमी की मूर्ति को “लाफिंग बुद्धा” के नाम से हमारे घरों में स्थापित करवाने का षड्यंत्र रचा है। यह महात्मा बुद्ध और गणेश जी के साथ धोखाधड़ी है। जरा लाफिंग बुद्धा को गौर से देखिए – इसमें केवल गणेश जी का सिर बदल दिया गया है, बाकी सब कुछ – मोटा पेट, हाथ की मुद्रा, खुशी का भाव, सौभाग्य और समस्या निवारण की मान्यता – सब कुछ हमारे गणेश जी जैसा ही है। आप कल्पना कीजिए कि उस काल खंड के दौरान गणेश जी का सिर काटा गया था और वर्तमान में चीन ने गणेश जी का सिर फिर से काटकर एक चाइनीज आदमी का सिर लगा दिया l हमारे त्योहारों की सजावट, दीवाली के दीये, होली के रंग, दुर्गा पूजा का सामान – सब कुछ ‘मेड इन चाइना’ हो गया है। हमारे पवित्र त्योहारों में व्यावसायिक मिलावट हो गई है। वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि भारतीय घंटियों से नेत्र दोष, कान की समस्याएं और मानसिक विकार दूर होते हैं, फिर भी चीनी विंडचाइम्स ने हमारी पारंपरिक घंटियों की जगह लेने की कोशिश की है। चीन आज करीब 20,000 करोड़ रुपये का टर्नओवर फेंगशुई के जरिए हासिल कर रहा है। वहीं भारत में वास्तु सलाहकार इंडस्ट्री का आकार लगभग 5,000-7,000 करोड़ रुपये का है और यहां 47,000+ कंसल्टिंग फर्म्स काम कर रही हैं, जिनमें से हजारों वास्तु विशेषज्ञ हैं। फर्क यह है कि जहां हमारे वास्तु विशेषज्ञ सिर्फ भारतीय बाजार में सेवा दे रहे हैं, जबकि चीनी फेंगशुई का विस्तार वैश्विक स्तर पर हो रहा है। आर्थिक आवश्यकता हमारी मजबूरी है, लेकिन सांस्कृतिक स्वायत्तता हमारी प्राणवायु है। हमारे पास विश्व का सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक वास्तुशास्त्र है, हमारे पास गणेश, लक्ष्मी, कृष्ण हैं, हमारे पास योग, आयुर्वेद और अध्यात्म की महान परंपरा है – तो हमें चीनी नकल की जरूरत क्यों?
लेखक मनोज जैन
(अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वास्तु सलाहकार, ऊर्जा विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

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