बारह साल पहले हिंदी भवन के भूखंड का आवंटन हो चुका है निरस्त, फिर भी गैर कानूनी ढंग से चल रही व्यवसायिक गतिविधियां 

  • उत्तर प्रदेश के राजस्व राज्य मंत्री अतुल गर्ग व सिविल डिफेन्स के चीफ 
  • वार्डन पर लगे गंभीर आरोप 
  • जीडीए उपाध्यक्ष ने शासन को भेजी रिपोर्ट 
  • .भाजपा पार्षद राजेंद्र त्यागी ने कि सीएम से जांच की मांग 
गाजियाबाद । हिंदी साहित्य के प्रचार.प्रसार के लिए जीडीए द्वारा आवंटित  लोहिया नगर स्थित हिंदी भवन का आवंटन निरस्त होने के बावजूद अभी तक इसका कब्जा जीडीए के अधिकारियों ने वापस नही लिया हैए खास बात यह है कि लोहिया नगर स्थित हिंदी भवन उत्तर प्रदेश के रसद एवं खाद्य राज्य  मंत्री अतुल गर्ग के पिता  पूर्व मेयर स्वर्गीय दिनेश चंद्र गर्ग के नाम पर संचालित किया जा रहा है ।मजे की बात यह है कि वर्ष 2006में इस भूखंड का खरीद मूल्य 36लाख हिंदी भवन समिति जीडीए को अदा नही कर पायी थी जिसके चलते जीडीए प्रशासन ने इस आवंटन को निरस्त कर दिया था । हैरान करने वाली बात यह है लगभग 12वर्ष बीतने के बावजूद भी हिंदी भवन के नाम पर आवंटित इस भवन में हिंदी साहित्य की गतिविधियों के बजाय गैर कानूनी ढंग से शादी विवाह की बुकिंग भी धड़ल्ले से की जा रही है।
मंगलवार को एक संवादाता सम्मेलन में भाजपा के फायर ब्रांड पार्षद राजेंद्र त्यागी ने पूरे घोटालेका खुलासा करते हुए बताया कि इस आवंटित भूखंड में बने हिंदी भवन में केवल हिंदी के साहित्य के प्रचार .प्रसार से संबंधित गतिविधियां ही निशुल्क संचालित हो सकती थीए लेकिन समिति के पदाधिकारियों ने समिति के उप नियमों का उललंघन करते हुए ना केवल इसे व्यवसायिक बना दिया बल्कि जीडीए को इसकी मूल कीमत का भुगतान भी नही किया । त्यागी ने बताया कि समिति के अध्यक्ष इस समय सिविल डिफेंस के चीफ वार्डन ललित जायसवाल है । वह भी इस फ्राड में शामिल है । पार्षद त्यागी ने आरोप लगाया कि तत्कालीन जीडीए उपाध्यक्ष संतोष यादव के संज्ञान में यह पूरा मामला था इसके बावजूद 4जुलाई 2014 को सम्पन्न हुए इस  भवन के  लोकार्पण कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि वह शामिल हुए थे । त्यागी ने आरोप लगाया कि जब जमीन का आवंटन कैंसिल हो गया था तो श्री यादव इस कार्यक्रम में किस हैसियत से शामिल हुए ।
राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को सबूतों के साथ इस घोटाले का एक पुलिंदा भेजा गया है । पार्षद द्वारा जीडीए में डाली गई आर टी आई के जवाब में बताया गया कि हिंदी भवन के लिए कुल मिलाकर 3838ण्04वर्ग मीटर जमीन का आवंटन 5जून 1986को 220रूपये प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से किया गया था जिसकी उस समय कुल कीमत 3लाख 37हजार  रूपये थी । हिंदी समिति केवल 60हजार रूपये ही जमा कर पायी थी शेष राशि का  भुगतान आज तक नही पायी 2006में यह राशि ब्याज सहित 36लाख से ज्यादातर पहुंच गयी थी ।
जीडीए द्वारा  आवंटन निरस्तीकरण के बाद 2006में समिति के पदाधिकारी इलाहाबाद हाई कोर्ट भी गए लेकिन कोर्ट ने उन्हें कोई राहत नही दी । इसके बावजूद भी समिति का कब्जा यहां बरकरार है और व्यवसायिक गतिविधियां बड़े पैमाने पर चल रही है और समिति करोड़ों रूपये सालाना का मुनाफा कमा रही है । उन्होंने इस मामले में उच्च स्तरीय जाँच की मांग की है । इस संबंध में जीडीए उपाध्यक्ष कंचन वर्मा ने माना कि वास्तव में यह आवंटन 2006में निरस्त हो गया था इस मामले में एक डिटेल रिपोर्ट उत्तर प्रदेश शासन को भेजी जा रही है ।
उन्होंने बताया कि समिति के पदाधिकारी उनसे कार्यालय में आकर अपना पक्ष रखा था और भुगतान के बारे के वित्तीय समस्याओं का कारण बताया था । वहीं इस सिलसिले में उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्री अतुल गर्ग का कहना है कि इस इस मामले में उनकी नीयत में कोई खोट नहीं है यह एक सामाजिक कार्य है यदि कोई तकनीकी खामी है तो उसे ठीक किया जाना चाहिए । इस संबंध में सिविल डिफेन्स के चीफ वार्डन ललित जायसवाल ने कोई नही की और कहा कि वह इस मामले का अध्ययन कर रहे है ।