UP Politics : कांग्रेस का साथ देने को नहीं मिल रहे मजबूत हाथ


-दो साल में पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं तय कर पाई कांग्रेस

-कद्दावर नेताओं का पार्टी छोडऩे का सिलसिला जारी

योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। लोकसभा चुनाव में हुए दो साल बीत गए। यूपी की विधानसभा के चुनाव छह माह बाद होने है। सत्तारूढ़ भाजपा समेत सारे दलों ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी है। पर कांग्रेस पिछले दो सालों में अपना पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं चुन पाई है। कांग्रेस ने पिछला लोकसभा चुनाव भी अंतरिम अध्यक्ष की अगुवाई में ही लड़ा था। सोनिया गांधी को राहुल गांधी के राष्टï्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद ११ अगस्त २०१९ को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया था। सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष यह कहकर बनाया गया था कि कुछ ही दिनों में पूर्णकालिक अध्यक्ष चुन लिया जाएगा। लेकिन दो साल होने को है कांग्रेस अभी अपना पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं चुन पाई है। पार्टी अभी तक अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में ही सारे काम निपटा रही है। यह बात दीगर है कि पार्टी के सारे फैसले पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ही बैकडोर से ले रहे है।

पार्टी में एक ही परिवार के इस एकाधिकार से ऊबकर ग्रुप 23 के नेताओं की चि_ी से लेकर पार्टी के कई युवा नेताओं के कांग्रेस छोडऩे की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं, लेकिन किसी न किसी बहाने से नए अध्यक्ष की नियुक्ति की औपचारिकता टलती रही है। एमपी में माधव राव सिंधिया और यूपी में जितिन प्रसाद और पार्टी के कद्दावर नेता पीसी चाकों भी कांग्रेस के हांथ का साथ छोड़ चुके है और राहुल ब्रिगेड के कई एक्टिव मेंबर कांग्रेस को अलविदा कहने का बहाना ढूंढ रहे है।

एक-एक करके राज्यों के हांथ से निकलने और पार्टी के कद्दावर नेताओं के पार्टी छोडऩे के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व पार्टी के स्थायीतत्व और गिरते ग्राफ को रोकने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है। देश प्रदेश से कांग्रेस का मटियामेंट हुए साल दर साल से ऊपर का समय गुजरता जा रहा है पर कांग्रेस नेतृत्व की आंखे नहीं खुल रही है। अपनी बढ़ती उम्र के चलते सोनिया गांधी की भी सक्रियता पहले से कम हुई है इसी को लेकर पार्टी के बुजुर्ग और कद्दावर नेताओं ने गांधी परिवार को आगाह किया कि नेतृत्व को लेकर जल्द ही कोई ठोस निर्णय लिया जाए। मुशकिल यह है कि गांधी परिवार अध्यक्ष की कुर्सी परिवार से बाहर नहीं जाने देना चाहता। सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के क ई महिनों बाद यह खबरे आई कि दलित को कांग्रेस की कमान सौंपी जायेगी। लेकिन राजनीतिक प्रेक्षकों की यह आशंका निरर्थक साबित हुई। हालांकि पार्टी ने इसका खामियाजा भी भुगता। हाल ही में पांच राज्यों में संपन्न हुए चुनावों में पश्चिम बंगाल में चुनाव में पार्टी बेमन से लड़ी। कोई बड़ा नेता वहां प्रचार करने नहीं पहुंचा। देश के सबसे बड़े सूबे मेंं कांग्रेस पिछले तीन दशकों से बेदखल है। आज स्थिति यह है कि उसकी स्थिति विधानसभा में अपना दल से भी गयी गुजरी है अपना दल के नौ विधायक है तो कांग्रेस के मात्र सात विधायक ही है। जिनमें से दो सदस्य सदन के बाहर पार्टी को अलविदा कह चुके है। इस समय यूपी से सोनिया गांधी कांग्रेस की अकेली सांसद है और हाल ही में संपन्न हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भी कांग्रेस अपना किला नहीं बचा सकी। इससे पहले लोकसभा के चुनाव में राहुल गांधी अपने परिवार की परंपरागत सीट अमेठी नहीं बचा पाए।

हालांकि हार की आशंका के मद्देनज़र ही २०१९ के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने अमेठी और केरल की वायनाड सीट से नामांकन किया था। जिसमें उन्हे वायनाड सीट पर ही सफलता मिल पाई और परंपरागत अमेेठी सीट से उन्हे हार का सामना करना पड़ा। बतादे कि अमेठी सीट से सोनिया गांधी,राजीव गांधी,संजय गांधी और स्वयं राहुल गांधी तीन बार सांसद रहे चुके थे।

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