अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन आज 3 दिन के दौरे पर भारत आ रहे हैं। बाइडेन देर रात एयरफोर्स 1 से जर्मनी के लिए रवाना हुए। यहां हेलीकॉप्टर में फ्यूल रीफिल करवाने के बाद वो भारत के लिए निकले। बाइडेन शाम करीब 6:55 बजे पालम एयरपोर्ट पर लैंड करेंगे।
शुक्रवार को ही बाइडेन की PM मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक होगी। अमेरिका के NSA जेक सुलिवन ने बताया कि इस दौरान दोनों देशों के बीच सिविल न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी में सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा होगी। इस दौरान छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टरों पर समझौता हो सकता है। इसके अलावा दोनों देशों के बीच GE जेट इंजन डील पर भी बात आगे बढ़ सकती है।
साथ ही दोनों नेताओं के बीच रूस-यूक्रेन जंग पर बातचीत होगी। इस दौरान इकोनॉमिक और सोशल लेवल पर जंग के असर को कम करने पर चर्चा की जाएगी। व्हाइट हाउस के मुताबिक मोदी-बाइडेन गरीबी से लड़ने के लिए वर्ल्ड बैंक सहित दूसरे मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंक की क्षमता बढ़ाने और कई दूसरे ग्लोबल चैलेंज पर भी बात करेंगे।
बाइडेन भारत आने वाले अमेरिका के 8वें राष्ट्रपति होंगे। खास बात ये है कि भारत की आजादी के शुरुआती 50 साल में केवल 3 अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आए थे। वहीं, पिछले 23 सालों में ये किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का छठा दौरा होगा।
ड्वाइट आइजनहावर (दिसंबर 1959)
ड्वाइट आइजनहावर भारत का दौरा करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे। दौरा ऐसे वक्त पर हुआ था जब भारत भयंकर सूखे से उबर रहा था और देश में महंगाई अपने चरम पर थी। इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन और फॉरेन एक्सचेंज बेहद कम था।
दूसरी तरफ दुनिया में चल रहे शीत युद्ध के बीच भारत ने अमेरिका और सोवियत यूनियन, दोनों में किसी का भी साथ नहीं देने का फैसला किया था। वो उन 120 देशों में शामिल था, जिन्होंने 1961 में नॉन-अलाइंड मूवमेंट पर साइन किए थे।
हालांकि, दुनिया में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल से परे भारत अपनी सीमा पर चीन के साथ तनाव झेल रहा था। ऐसे में अमेरिका ने भारत को चीन के खिलाफ साथी के रूप में देखा। आइजनहावर की यात्रा के वक्त न्यू ऑर्लीन्स टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति और तत्कालीन PM नेहरू के बीच भारत-चीन सीमा विवाद पर चर्चा हुई थी।
वहीं सैन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल ने कहा था कि आइजनहावर से मुलाकात के बाद एक रात में भारत गुट-निरपेक्ष से पश्चिमी समर्थक बन गया। वहीं द मिनट न्यूज ने अपनी रिपोर्ट में ये भी कहा था कि नेहरू अब चीन के खिलाफ एक्शन लेने के लिए तैयार हैं।
रिचर्ड निक्सन (अगस्त 1969)
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन भारत में सिर्फ 23 घंटे रुके थे। निक्सन पाकिस्तानी सपोर्टर थे और वो भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के खिलाफ थे। उस वक्त अमेरिका का मानना था कि भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है। वो भारत को सोवियत संघ की कठपुतली मानते थे।
अल जजीरा के मुताबिक, रिचर्ड के इस दौरे का फोकस इंदिरा गांधी से रिश्ते सुधारना था। दरअसल, वो भारत और इंदिरा गांधी को लेकर कई मौकों पर रेसिस्ट कमेंट कर चुके थे। राष्ट्रपति बनने से पहले 1960 के दशक में जब निक्सन भारत आए थे तब नेहरू सरकार के सीनियर मिनिस्टर मोरारजी देसाई ने उनका स्वागत किया था।
देसाई ने निक्सन के लिए खाने में सिर्फ वेजिटेरियन डिश ही रखी थीं, जबकि निक्सन नॉन-वेज और अल्कोहल के खासा शौकीन थे। देसाई की खातिरदारी से नाराज होकर निक्सन भारत से चले गए थे। उनके दौरे में अगला स्टॉप पाकिस्तान था। यहां उनके स्वागत में कई तरह के गोश्त और दूसरी नॉन-वेज डिश रखी गई थीं। इससे निक्सन पाकिस्तान से और प्रभावित हो गए थे।
इसके बाद जब बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने पर 1971 में जंग हुई तो अमेरिका में रिचर्ड निक्सन राष्ट्रपति बन चुके थे। उन्होंने इस वॉर में पाकिस्तान का साथ दिया था।
जिमी कार्टर (जनवरी 1978)
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर 1978 में 3 दिन के दौरे पर भारत आए थे। वो हरियाणा में गुरुग्राम के एक गांव दौलतपुर नसीराबाद भी गए थे। इसके बाद से उस गांव का नाम कार्टरपुरी रख दिया गया था। उनके दौरे का मकसद 1971 की पाकिस्तान जंग और 1974 में पोखरण में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद बिगड़े दोनों देशों के रिश्तों को सुधारना था।
साल 1974 में भारत ने बिना किसी को भनक लगे राजस्थान के पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया था। जिससे अमेरिका नाराज हो गया था। इसके चलते भारत पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगाए गए थे। जब जिमी कार्टर 1978 में भारत आए तो उन्हें पूरा यकीन था कि वो भारत से NPT यानी नॉन प्रोलिफरेशन ट्रीटी पर साइन करवा लेंगे और हमेशा के लिए हमारे परमाणु हथियार हासिल करने का रास्ता बंद करवा देंगे। हालांकि, ऐसा नहीं हो पााया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बड़ी चालाकी से उनके सामने तीन शर्तें रख दी। उन्होंने कहा कि भारत NPT पर साइन कर देगा अगर दुनिया की सभी परमाणु शक्तियां भी ऐसा कर दें। दूसरी शर्त में उन्होंने कहा कि कोई भी परमाणु हथियार नहीं बनाएगा। तीसरी शर्त में उन्होंने कहा कि जितने देशों के पास परमाणु हथियार हैं अगर वो उन्हें खत्म कर देते हैं तो भारत भी कभी कोई परमाणु परीक्षण नहीं करेगा।