स्वस्थ जीवन शैली के लिये बहुत आवश्यक है कि हम अपने शारिरिक अंगों को पूरी तरह स्वस्थ रखें। इसलिये ज्यादातर लोग अपने हृदय, लीवर, किडनी एवं विभिन्न अंगों के प्रति जागरूक रहते हैं, और समय-समय पर इसकी जांच कराते रहते हैं। लेकिन फिर भी कई ऐसी समस्याओं से अंजान रहते हैं, जिसकी जानकारी होना काफी अहम है। उन्हीं में से एक वैरिकॉज नसें हैं।
वैरिकॉज़ नसें पैरों में दिखाई देने वाली बढ़ी हुई टेढ़ी-मेढ़ी हरी नसें हैं और आकार में छोटे से बड़े तक भिन्न हो सकती हैं। आमतौर पर यह तब होती हैं जब आपकी नसों की वॉल कमजोर होती हैं और वाल्व ठीक से काम नहीं करते हैं, जिससे नसों में रक्त जमा हो जाता है।
यह बदसूरत तो दिखते ही हैं, साथ ही पैरों में पिगमेंटेशन के साथ सूजन और दर्द पैदा करके जीवनशैली में परेशानी का कारण बन जाती हैं और कई बार अचानक किसी आघात से टूटकर नसों में खून बहने से जान जाने की भी स्थिति बन सकती है।
लखनऊ के चर्चित अस्पताल मेदांता के सलाहकारों के मुताबिक , वैरिकॉज नसें किसी भी व्यक्ति में विकसित हो सकती है। एक अनुमान के अनुसार सभी वयस्कों में से 20 प्रतिशत को अपने जीवन के किसी भी पड़ाव में वैरिकॉज नसें होंगी। हालांकि वृद्ध लोगों में यह आम बात है। कभी-कभी युवाओं में भी वैरिकॉज नसों की समस्याएं देखी गई है।
वैरिकॉज नसें कुछ लोगों में ही विकसित होती हैं, और ऐसा उनमें ही क्यों होता है, इसके विभिन्न कारण हैं, जिनमें वैरिकॉज नसों के इतिहास का होना, किसी चोट या आघात के चलते नसों को नुकसान पहुंचना, अधिक देर तक खड़े रहना, मोटापा, बड़ी उम्र एवं धूम्रपान करने जैसे कारक शामिल हैं।
वैरिकॉज़ नसों का सबसे पहचानने योग्य संकेत आपकी त्वचा की सतह के ठीक नीचे एक धारीदार, नीली या बैंगनी नस है। वैरिकॉज नसें विकसित होने पर कुछ लक्षण दिखने लगते हैं, जैसे-फूली और मुड़ी हुई सूजी नसें, पैरों में भारीपन, खुजली, टांगों में दर्द, त्वचा का मलीन होने और उनमें अल्सर का अगर इलाज नहीं किया गया तो वैरिकाज़ नसें आपकी त्वचा पर भूरे रंग के मलिनकिरण का कारण बन सकती हैं।
उदाहरण के लिये एक घटना का जिक्र करना यहां जरूरी है। एक बार 55 वर्षीय पुलिसकर्मी पिछले 10 वर्षों से वैरिकॉज नसों से पीड़ित था। समय से ध्यान नहीं देने के कारण उसके दाहिने निचले अंग में ठीक न होने वाले छाले हो गए। दर्द के चलते वह 15-20 मिनट से ज्यादा खड़े नहीं हो पा रहा था। इलाज के लिये उसके पैर में एक छोटा पंचर शामिल था, जिसमें ग्लू एम्बोलाइज़ेशन प्रक्रिया का उपयोग करके उसके पैर की नसें बंद कर दी गईं। इस प्रक्रिया के बाद रोगी चलने लगा। ग्लू ने नस को स्थायी सील कर दिया, जिससे वैरिकाज़ नसों से छुटकारा मिल गया। किसी बेहोश करने की क्रिया की आवश्यकता नहीं थी, और प्रक्रिया के दौरान रोगी पूरी तरह से होश में था। एक महीने के फॉलो-अप में, रोगी को उसके लक्षणों से पूरी तरह से राहत मिल जाती है।