ज्येष्ठ महीने की अमावस्या पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। ये इस बार 19 जून को रहेगा। नारद पुराण में इसे ब्रह्म सावित्री व्रत भी कहा है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के साथ बिना कुछ खाए निर्जल व्रत करती हैं। साथ ही वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा और परिक्रमा कर के सौभाग्य की चीजों का दान करती हैं।
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा या अमावस्या के 3 दिन पहले से ही शुरू हो जाता है। ये व्रत त्रयोदशी तिथि यानी किसी भी पक्ष के तेरहवें दिन से शुरू होता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि सावित्री ने भी अपने पति के जीवन के लिए लगातार 3 दिनों तक व्रत रखा था।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक माना जाता है कि वट वृक्ष के मूल यानी जड़ों में भगवान शिव, मध्य में भगवान विष्णु और अग्रभाग में ब्रह्माजी रहते हैं। इसीलिए वट वृक्ष यानी बरगद को देव वृक्ष भी कहा गया है। इनके साथ देवी सावित्री का वास भी इसी पेड़ में माना जाता है।
सौभाग्य के लिए शिव-पार्वती और सावित्री पूजा
ज्येष्ठ महीने में ये व्रत किया जाता है। इस व्रत के एक दिन पहले महिलाएं मेहंदी लगाती हैं और सौलह श्रंगार की तैयारियां करती हैं। ऐसा करने के पीछे वैवाहिक जीवन में सौभाग्य और पति की लंबी उम्र पाने की कामना होती है।
व्रत वाले दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई कर के नहाती हैं। इसके बाद पूजा की तैयारियों के साथ नैवेद्य बनाती हैं। फिर बरगद के पेड़ के नीचे भगवान शिव-पार्वती और गणेश की पूजा करती हैं। इसके बाद उस पेड़ को पानी से सींचती हैं। फिर पेड़ पर सूती धागा लपेटती हैं। श्रद्धानुसार कुछ महिलाएं 11 या 21 बार पेड़ की परिक्रमा के साथ धागा लपेटती हैं। कुछ महिलाएं 108 परिक्रमा भी करती हैं।
कर्नाटक में इस नाम से जानते है ये व्रत
ये व्रत उत्तर भारत में ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को किया जाता है। वहीं देश के कुछ हिस्सों में इसी महीने की पूर्णिमा पर ये व्रत किया जाता है। वट सावित्री व्रत खासतौर से मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र में किया जाता है। वहीं दक्षिण भारतीय विवाहित महिलाएं विशेष रूप से तमिलनाडु और कर्नाटक में करादाइयन नौंबू के नाम से ये व्रत करती हैं।