VIDEO : 48 किमी की मारक क्षमता, 1 मिनट में 5 गोले… ATAGS की इन खूबियों को जान चैन की नींद नहीं सो पाएगा चीन और पाक

ATAGS Gun System: भारत सरकार ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) ने भारतीय सेना के लिए एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS) की खरीद को मंजूरी दी है, जिसकी कुल लागत लगभग 7,000 करोड़ रुपये है. मिली जानकारी के मुताबिक, भारत 307 ATAGS खरीदेगा. इसे पाकिस्तान और चीन सीमा पर तैनात किया जाएगा. इसे ‘भारत का बोफोर्स’ भी कहा जा रहा है. इसमें लगे 65 फीसदी से अधिक सामान भारत का है. नेविगेशन सिस्टिम, म्यूजल वेलोसिटी रडार और सेंसर भारत में तैयार किए गए हैं. इससे आयात पर निर्भरता कम होगी.

ATAGS की विशेषताएं

  •  यह 155 मिमी 52-कैलिबर की तोप है, जिसे पूरी तरह से भारत में डिजाइन और विकसित किया गया है, जो देश की रक्षा उत्पादन क्षमता को दर्शाता है.
  •  ATAGS की मारक दूरी 48 किलोमीटर से अधिक है, जिससे यह दुश्मन के ठिकानों पर दूर से ही प्रभावी प्रहार करने में सक्षम है.
  • इसमें ऑल-इलेक्ट्रिक ड्राइव सिस्टम शामिल है, जो संचालन में विश्वसनीयता और सटीकता सुनिश्चित करता है.
  • ATAGS को केवल 2 मिनट में तैनात किया जा सकता है, जिससे युद्ध के दौरान तेजी से प्रतिक्रिया संभव होती है.
  • ये 1 मिनट में 5 गोले दाग सकती है.
  • ATAGS को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और भारतीय निजी उद्योग भागीदारों के बीच सहयोग के जरिए बनाया गया है.
  • यह माइनस 35 से लेकर 75 डिग्री सेल्सियत तक के तापमान में भी काम कर सकती है.

ATAGS से क्या लाभ होगा?

  • रक्षा क्षमता में वृद्धि: इन तोपों की तैनाती से भारतीय सेना की तोपखाना क्षमता में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी, जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा मजबूत होगी.
  • आत्मनिर्भर भारत: स्वदेशी हथियार प्रणालियों की खरीद से देश की रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा और विदेशी निर्भरता कम होगी.
  • आर्थिक लाभ: इस परियोजना से देश में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे और रक्षा उद्योग को प्रोत्साहन मिलेगा.

2013 में शुरू हुआ था ATAGS का परीक्षण

साल 2013 में ATAGS का विकास शुरू हुआ था. इसका पहला सफल परीक्षण 14 जुलाई 2016 को किया गया था. इन तोपों को 2017 में रिपब्लिक डे परेश में शामिल किया गया था. ये 105 एमएम और 130 एमएम की पुराने तोपों का स्थान लेंगी. ऐसा कहा जाता है कि दुनिया के किसी भी देश के पास ऐसी तोप नहीं है.  

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