आइजोल । मिजोरम की 40 विधानसभा सीटों पर मंगलवार सुबह 7 बजे से वोटिंग शुरू हो चुकी है। राज्य में सुबह 11 बजे तक करीब 32.68% मतदान हो चुका है। राजधानी आइजोल में अब तक 29.62% वोटिंग हो चुकी है। लौंगलाई में सबसे ज्यादा 39.88% मतदान हुआ। गर्वनर हरि बाबू कंभमपति ने आइजोल साउथ में सुबह 8:15 बजे वोटिंग की। मुख्यमंत्री जोरमथंगा सुबह 7 बजे के करीब वोट डालने आए थे मगर EVM मशीन में खराबी के चलते लौट गए। चार घंटे बाद वापस आकर उन्होंने वोट डाला।
वहीं, मिजोरम कांग्रेस के अध्यक्ष लालसावता ने दावा किया कि मिजोरम में हम पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं। हम 22 सीट जीतने जा रहे हैं। जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) के कार्यकारी अध्यक्ष और आइजोल नॉर्थ-III से पार्टी के उम्मीदवार के सपडांगा ने आज सुबह अपना वोट डाला।
सेंट्रल आर्म्ड फोर्स की 50 कंपनियां तैनात
स्टेट इलेक्शन कमीशन के मुताबिक, राज्य में 1,276 से अधिक मतदान केंद्र बनाए गए हैं। इनमें 30 केंद्र संवेदनशील हैं। सुरक्षा के लिए सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स की 50 कंपनियां तैनात की गई हैं। राज्य की थोरांग सीट पर सबसे कम 14 हजार 924 वोटर हैं, जबकि तुइचावंग सीट पर सबसे ज्यादा 36 हजार 41 वोटर हैं।
कुल 174 उम्मीदवार मैदान में
मिजोरम में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (MNF), जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) और कांग्रेस के बीच है। इस बार कुल 174 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) और कांग्रेस ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं जबकि BJP सिर्फ 21 और 73 निर्दलीय या अन्य दलों के प्रत्याशी हैं। 2018 में कांग्रेस को हराकर MNF ने 10 साल बाद सत्ता हासिल की थी।
मिजो नेशनल फ्रंट, कांग्रेस और जोरम पीपुल्स मूवमेंट के बीच त्रिकोणीय मुकाबला
मिजोरम विधानसभा चुनाव में भाजपा का वर्चस्व ज्यादा नहीं रहा। यहां सत्ताधारी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF), जोरम पीपुल्स मूवमेंट और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला रहता है। 2018 में कांग्रेस को हराकर MNF ने 10 साल बाद सत्ता हासिल की थी। सबसे बड़ा उलटफेर था कि कांग्रेस तीसरे नंबर पर आ गई और विपक्ष की भूमिका जोरम पीपल्स मूवमेंट के पास चली गई है। वहीं भाजपा को पिछले चुनाव में सिर्फ एक सीट मिली थी।
मिजोरम के CM केंद्र में NDA के साथ हैं, लेकिन राज्य में अलग
CM जोरमथंगा की पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) भाजपा के नेतृत्व वाली नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) और केंद्र में सत्ताधारी NDA में शामिल है। हालांकि, MNF मिजोरम में भाजपा से अलग है। लोकसभा में MNF से एकमात्र सांसद लालरोसांगा हैं। वहीं राज्यसभा में भी MNF का एक ही सांसद हैं और उनका नाम के वनलालवेना है। वैसे तो यह पार्टी NDA के साथ रहती, मगर मणिपुर हिंसा को लेकर MNF की केंद्र सरकार से नाराजगी है।
मिजोरम में ईसाई वोटर्स सबसे अहम, CM का मोदी के साथ स्टेज शेयर करने से इनकार
मिजोरम में इस बार BJP और MNF अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। मणिपुर हिंसा की आंच मिजोरम तक फैली हुई है। CM जोरमथंगा ने 24 अक्टूबर को एक प्रोग्राम में कहा था, ‘मैं PM के साथ स्टेज शेयर नहीं करूंगा, क्योंकि मणिपुर में मैतेई लोगों ने चर्च जलाए। इसी वजह से हम BJP का साथ नहीं दे सकते।’ दरअसल, मिजोरम में 87 फीसदी आबादी ईसाई है। ऐसे में जोरमथंगा अपने ईसाई वोटरों का नाराज करने का रिस्क नहीं उठाना चाहते। इसके अलावा राज्य में इस बार शरणार्थी संकट से निपटना प्रमुख चुनावी मुद्दा है।
इस बार मणिपुर हिंसा का मिजोरम की पॉलिटिक्स पर असर
मिजोरम में इस बार के विधानसभा चुनाव में मणिपुर का मुद्दा काफी अहम रहने वाला है। 25 जुलाई को आइजोल में हजारों लोगों ने कुकी समुदाय के समर्थन में रैली निकाली थी। इस रैली में CM जोरमथंगा भी शामिल हुए थे। उनका इशारा साफ था कि मणिपुर हिंसा इस बार चुनावी मुद्दा बनने वाला है।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने 16 अक्टूबर को मिजोरम के आइजोल में एक रैली को संबोधित करते हुए मणिपुर पर बात की थी। राहुल ने कहा था- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर की तुलना में इजराइल में होने वाली घटनाओं की ज्यादा चिंता है। 3 मई के बाद से हिंसा से जूझ रहा मणिपुर अब एक राज्य नहीं रहेगा बल्कि जाति के आधार पर दो हिस्सों में बंट जाएगा।
जोरमथंगा – मिजो नेशनल फ्रंट
जोरमथंगा सत्ताधारी पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष हैं। वह 1966 में MNF से जुड़े थे। काफी सालों तक पार्टी के अंडरग्राउंड वर्कर रहने के बाद 1989 में हुए विधानसभा चुनावों में चम्फाई सीट से विधायक चुने गए। 1990 में लालडेंगा की कैंसर की वजह से मौत होने के बाद जोरमथंगा को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया।
जोरमथंगा के नेतृत्व में MNF ने 1998 में विधानसभा चुनाव जीता और वे पहली बार CM बने। 2003 में पार्टी ने फिर से सत्ता हासिल की और जोरमथंगा दोबारा मुख्यमंत्री बने। उनकी पार्टी को 2008 के चुनाव में करारी हार झेलनी पड़ी थी, मगर 2018 में फिर वापसी की और तीसरी बार CM बनें।
लालसावता – कांग्रेस
मिजोरम में अगर किसी ने कांग्रेस पार्टी को मजबूत किया है तो वह पूर्व CM ललथनहवला हैं। वह 1984-86, 1989-98, 2008-18 तक मिजोरम के मुख्यमंत्री रहे। मगर 2018 में वह चुनाव हार गए और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। अब कांग्रेस की बागडोर लालसावता के हाथों में है।
लालसावता ललथनहवला सरकार में वित्त मंत्री रह चुके हैं। यह अपनी साफ-सुथरी छवि की वजह से लोगों के बीच पॉपुलर हैं। लालसावता के कंधे पर कांग्रेस को राज्य में दोबारा मजबूत करने का जिम्मा है जो 2013 में आई 34 सीटों से घटकर 2018 के चुनावों में पांच सीटों पर सिमट गई थी।
लालदुहोमा – जोरम पीपुल्स मूवमेंट
MNF और कांग्रेस के अलावा मिजोरम में तीसरी बड़ी पार्टी जोरम पीपुल्स मूवमेंट है और इसके नेता लालदुहोमा हैं। लालदुहोमा एक पूर्व IAS अधिकारी हैं। जो पूर्व PM इंदिरा गांधी की सिक्यारिटी संभाल चुके हैं।
लालदुहोमा ने 1984 में मिजोरम से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा सीट जीती थी, लेकिन बाद में उनका राज्य कांग्रेस नेताओं से मतभेद हो गया और उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। वे 1988 में दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित होने वाले पहले लोकसभा सांसद बने। 2018 में लालदुहोमा ने आइजोल पश्चिम- I और सेरछिप से निर्दलीय चुनाव जीता।
मिजोरम में 2018 विधानसभा चुनाव में 10 साल बाद मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) की वापसी हुई। कुल 40 सीटों पर हुए चुनाव में MNF को 26 सीटें मिलीं वही कांग्रेस के खाते में पांच सीटें आई। इसके अलावा जोरम पीपुल्स मूवमेंट को 8 सीटें मिलीं और एक सीट भाजपा के खाते में आई। सत्ताधारी मिजो नेशनल फ्रंट पार्टी ने जोरामथांगा को CM बनाया। विधानसभा की मौजूदा स्थिति की बात करें तो मिजो नेशनल फ्रंट के पास इस समय 28 विधायक हैं। कांग्रेस के पास 5, जोरम पीपुल्स मूवमेंट के पास 1, भाजपा के पास 1 और पांच निर्दलीय हैं।
देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इलेक्शन कमीशन ने 9 अक्टूबर को चुनाव की तारीखों का ऐलान किया था। सबसे पहले 7 नवंबर को मिजोरम और छत्तीसगढ़ की 20 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण की वोटिंग 17 नवंबर को होगी। वहीं मध्यप्रदेश में भी 17 नवंबर को मतदान होगा। फिर 25 नवंबर को राजस्थान और 30 नवंबर को तेलंगाना में वोट डाले जाएंगे। सभी 5 राज्यों में एक साथ 3 दिसंबर को रिजल्ट आएंगे।
मिजोरम में शोर मचाया, तो वोट नहीं: चर्च तय करता है चुनाव के नियम, नो हॉन्किंग पॉलिसी
सिविल सोसाइटी, चर्च से जुड़े संगठन और पॉलिटिकल पार्टियों के बीच 2008 में एक समझौता हुआ था। 5 पेज के इस समझौते के मुताबिक ही मिजोरम में चुनाव के नियम तय होते हैं। ये नियम सभी पार्टियों की सहमति से बनते हैं, इसलिए उन्हें मानने भी पड़ते हैं। कोई नियम टूटा, तो कानूनी कार्रवाई नहीं होती, MPF उस पार्टी का बहिष्कार कर देता है। कोई भी पार्टी नहीं चाहती कि वो MPF के खिलाफ जाए।