वाह रे अदालत : कोर्ट का आदेश- आरोपियों को अब धोने होंगे महिलाओं के कपड़े

बिहार के मधुबनी जिले की एक निचली अदालत ने छेड़खानी और दुष्कर्म का प्रयास करने के एक मामले में सुनवाई करते हुए सजा के तौर पर दोषी को गांव की सभी महिलाओं के कपड़े धोने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि दोषी को इसी शर्त पर जमानत दी जा रही है कि “वह अगले छह महीने तक गांव की सभी महिलाओं के कपड़े धोएगा”।

कपड़े धाेने से महिलाओं के प्रति होगा सम्मान ​​​​​

कोर्ट के मुताबिक, इससे दोषी के मन में महिलाओं के प्रति सम्मान जागेगा। कोर्ट ने यहीं बस नहीं किया, बल्कि दोषी से ये भी कहा कि वो कपड़े धोने के बाद उन्हें प्रेस करके फिर हर घर में जाकर महिलाओं को कपड़े लौटाए। मामला सुर्खियों में है लेकिन ये पहली दफा नहीं, बल्कि कई अदालतें अपने अजब-गजब फैसलों के कारण चर्चा में रहीं।

पत्नी को होगी उम्रकैद

असम की एक निचली अदालत ने एक अजब-गजब फैसले के तहत एक महिला को उम्रकैद दे दी। उसका जुर्म ये था कि वो अपने पति की असमय मौत पर बुक्का फाड़कर नहीं रोई थी। इसलिए, स्थानीय अदालत ने महिला को अपने पति की हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी। इसके बाद महिला मामले को लेकर हाईकोर्ट पहुंची। लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि हाईकोर्ट ने स्थानीय अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए उसे उम्रकैद की सजा सुनाई।

गरीब बच्चों के पढ़ाई का खर्च होगा उठाना

मधुबनी में महिला के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म की कोशिश के आरोपी को लोअर कोर्ट ने इस शर्त पर जमानत दी कि वह रिहाई के बाद अपने घर के सामने के नाले साफ करेगा।। एक अवैध शराब बेचने वाले आरोपी एक व्यक्ति को पांच गरीब बच्चों की तीन महीने तक पढ़ाई का खर्च उठाने को कहा।

कोर्ट ने कहा-करनी होगी गाय की सेवा

2 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आरोपी को जमानत देते हुए कुछ अजीबोगरीब शर्तें रखी। अदालत ने आरोपी को बरेली में एक गौशाला के रजिस्ट्रेशन में एक लाख देने को कहा या गौशाला में 3 महीने तक गायों की सेवा करने के लिए कहा।

लोगों की सेवा करने के नाम पर मिली जमानत

जुलाई 2020 में, 15 से अधिक जमानत आदेशों में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की एक पीठ ने आरोपी व्यक्तियों को उनके आवासों के पास के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को “शारीरिक और वित्तीय सहायता प्रदान करने” का निर्देश दिया। इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने कई मामलों में, आरोपी व्यक्तियों को कोविड -19 सहायता के लिए स्वयं सेवा करने के लिए कहा था।

सजा के तौर पर कुरान दान करने को कहा

2019 में एक अन्य उदाहरण में, रांची की एक अदालत ने कथित रूप से सांप्रदायिक पोस्ट डालने के आरोप में गिरफ्तार एक महिला को अपनी जमानत की शर्त के तहत कुरान की पांच प्रतियां विभिन्न पुस्तकालयों को दान करने के लिए कहा था। हालांकि, विरोध और जांच अधिकारी के अनुरोध के बाद इस शर्त को वापस ले लिया गया।

धर्मार्थ उद्देश्य के लिए पैसे दान करने का आदेश

कई मामलों में, अदालतें आरोपी को आमतौर पर किसी धर्मार्थ उद्देश्य के लिए धन दान करने के लिए कहती हैं। मई 2020 में, लगभग 17 जमानत आदेशों में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक एकल न्यायाधीश ने आरोपी व्यक्तियों को किसी भी सरकारी एजेंसी द्वारा “भोजन तैयार करने और प्रवासी मजदूरों सहित दलित व्यक्तियों को वितरण करने के लिए जिला कलेक्टरों के पास पैसा जमा करने का निर्देश दिया।

PM-CARES फंड में 35 हजार दान करने का निर्देश

झारखंड उच्च न्यायालय ने अप्रैल 2020 में, आरोपी व्यक्तियों को जमानत के लिए एक शर्त के रूप में प्रधान मंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थितियों में राहत या PM-CARES फंड में से प्रत्येक को 35,000 रुपये दान करने का निर्देश दिया। साथ ही उन्हें कोविड ट्रेसिंग आरोग्य सेतु एप इंस्टॉल करने का निर्देश दिया। यह कई मामलों में देखी जाने वाली एक और सामान्य जमानत शर्त है।

पेड़ लगाओ और उसकी देखभाल करो

असामान्य जमानत आदेशों का एक और सामान्य उदाहरण, अदालतों ने आरोपी को पेड़ लगाने के लिए कहा है। अप्रैल में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हत्या के प्रयास के मामले में जमानत की शर्त रखी थी कि आरोपी को फलदार पेड़ या नीम या पीपल के पेड़ के 10 पौधे लगाने होंगे और उसकी देखभाल भी करनी होगी।

जमानत के लिए राखी बंधवाओ

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महिला को परेशान करने के आरोपी व्यक्ति को इस शर्त पर जमानत दी थी कि वह महिलाओं से राखी बंधवाने और उसकी रक्षा करने का वादा करेगा। इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया, जहां उसने यह भी दिशा-निर्देश दिए कि अदालतों को यौन उत्पीड़न के मामलों से कैसे निपटना चाहिए।

सोशल मीडिया से दूर रहें

कुछ उदाहरणों में, अदालतों ने राजनेताओं के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देने के लिए बुक किए गए लोगों को जमानत की शर्तों के रूप में सोशल मीडिया का उपयोग करने से मना किया है।

मुकदमे से पहले दोषी

कुछ अपवादों को छोड़कर, कानून मानता है कि एक व्यक्ति दोषी साबित होने तक निर्दोष है। इनमें से कई शर्तें लगाई गई हैं, जैसे सामुदायिक सेवा करना या धन दान करना, किसी व्यक्ति को उस अपराध के लिए दंडित करने के समान होगा जिसके लिए उसे दोषी नहीं ठहराया गया है।

आंवला लगाने की सजा

राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में चार आरोपियों को 27 पेड़ काटने के जुर्म में 270 पौधे लगाने की सजा दी गई थी। वन विभाग के अधिकारी ने रिपोर्ट दर्ज की थी। कोर्ट ने चारों को 270 आंवले के पौधे लगाने की सजा दी थी।

ASI को मिली मुर्गा बनने की सजा

2015 में हरियाणा के झज्जर की कोर्ट में एक दरोगा को वर्दी का घमंड दिखाने पर मुर्गा बनने की सजा दी गई थी।

टेंपरेचर मापने की सजा

बिहार के पटना में बिल्डर ने एक ग्राहक से पैसे लेने के बाद भी फ्लैट आबंटन नहीं किया था। मामला हाईकोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने जमानत देनी की अजीब शर्त रखी और बिल्डर को तीन महीने तक कोरोना संक्रमण के दौर में लोगों की मदद की सजा दी गई है।

मरीजों की सेवा करने की सजा

बेगूसराय में कोर्ट ने आरोपी को सजा के तौर पर एक महीने तक अस्पताल में मरीजों की सेवा करने को कहा। उसका जुर्म यह था कि उसने मारपीट की थी और जातिसूचक शब्द कहे थे।

अब विदेशों की बात करते हैं

विदेशों में अक्सर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं। अमेरिका के मिशिगन प्रांत में कोर्ट ने जेब नाम के एक कुत्ते को पड़ोस में रहने वाले दूसरे कुत्ते व्लाड की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन बाद में DNA टेस्ट नहीं मिलने के कारण उसे बरी कर दिया गया।

दोषी को ट्वीट करने की सजा

स्पेन के एक जज ने आरोपी बिजनेसमैन को मानहानि के एक मामले में एक महीने तक माफीनामा ट्वीट करने का आदेश दिया। ट्वीट करने का टाइम भी जज ने खुद ही तय कर दिया।

गधे के साथ मार्च

अमेरिका के शिकागो शहर में साल 2003 में दो युवकों ने एक चर्च से ईसा मसीह की मूर्ति चुराई थी। मूर्ति चुराने आरोप में कोर्ट ने उन्हें 45 दिन जेल में रहने की सजा सुनाई। साथ ही उन्हें एक गधे के साथ मार्च करने की भी सजा सुनाई की और वो पूरे 45 दिन गधे के साथ मार्च करते रहे |

डिजनी कार्टून देखने की सजा

अमेरिका में ही रहने वाले डेविस बेरी ने अपनी युवावस्था में सैकड़ों हिरणों का शिकार किया। कोर्ट ने डेविस को एक साल जेल में रहने की सजा दी। साथ उसे टीवी पर आने वाले कार्टून देखने का भी फरमान सुनाया।

क्या कहते हैं वकील

सुप्रीम कोर्ट के वकील निपुण सक्सेना का कहना है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 53 के अंतर्गत सिर्फ 6 तरह की सजाओं का जिक्र है। इनमें मृत्यु दंड, आजीवन कारावास, कारावास, कठोर कारावास, संपत्ति की कुर्की और जुर्माना है। इसके अलावा अजी-बोगरीब सजाओं का कोई प्रावधान नहीं है। सिर्फ हाई कोर्ट को धारा 482 में और सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 में इससे अलग सजाएं देने का अधिकार है, जैसे कि संजीव नंदा हिट एंड रन केस में भी कम्युनिटी सर्विस की सजा सुनाई गई थी, लेकिन साथ में कई दूसरी सजाएं भी थीं।

एक थ्योरी होती है रिस्टोरेबल जस्टिस। इसमें दोषी को मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की जाती है। इसी के लिए कम्युनिटी सर्विस की सजा मिलती है। इसमें एक निश्चित पैसे भी जमा करने होते हैं। ट्रायल कोर्ट के पास इस तरह का कोई पावर नहीं कि वो ऐसी सजा दे सके। इसके अलावा मॉलेस्टेशन के केस में 5 साल तक की सजा है। उसमें छोटी-मोटी सजा देकर किसी को छोड़ना न्याय नहीं।

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