
रमेश भास्कर मेनन, एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर, जेनएस लाईफ
रिटायरमेंट के पारंपरिक दृष्टिकोण के अनुसार एक विशेष उम्र के बाद लोग अपनी क्षमता खो देते हैं। लेकिन असलियत यह है कि 60 साल, यानी रिटायरमेंट की उम्र जीवन का अंत नहीं होती है। यहाँ से एक नई शुरुआत होती है। यह समय होता है, नए सिरे से जीवन की खोज करने का, एक नई ऊर्जा के साथ। यह समय होता है जब बिना किसी दबाव के व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुरूप कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र होता है।
जेनएस लाईफ की संस्थापिका, मीनाक्षी मेनन ने 66 साल की उम्र में 60 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए एक जीवंत प्लेटफॉर्म का निर्माण किया है। 63 साल की उम्र में मैं यह लेख लिख रहा हूँ। मैं अभी भी काम कर रहा हूँ। अभी भी योगदान दे रहा हूँ। हमारे जीवन का अंत नहीं हुआ है। हम इस बात का उदाहरण पेश कर रहे हैं कि जब अपनी उम्र को एक उधार का समय न मानकर, जीवन के एक महत्वपूर्ण दौर के रूप में देखा जाता है, तो व्यक्ति क्या कर सकता है।
पर कार्यस्थल पर बढ़ती उम्र को जिस रूप में देखा जाता है, वह दुखद है।

उम्र चुपचाप बढ़ती है, यह सबके साथ होता है
नौकरी के विज्ञापनों में ‘डिजिटल नेटिव्स’ की मांग होती है। इससे यह धारणा प्रदर्शित होती है कि वृद्ध लोग ढ़ल नहीं पाते या तेजी से सीख नहीं पाते। वृद्धों को कार्यस्थल से जल्दी रिटायर कर दिया जाता है, इसलिए नहीं कि वो रिटायर होना चाहते हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि कॉर्पोरेट के संकीर्ण मानकों के अंतर्गत वृद्धों को ‘प्रोडक्टिव’ नहीं माना जाता है।
लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है। 60 साल से अधिक उम्र के लोग लंबा जीवन जी रहे हैं, ज्यादा स्वस्थ बने हुए हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वो अपने जीवन में अर्थ खोज रहे हैं। रिटायरमेंट अच्छी आय के बाद जीवन का एक पड़ाव हो सकता है, लेकिन कई लोगों के लिए यह अकेलापन, खोई हुई दिनचर्या और एक खोई हुई पहचान बन जाता है।
वृद्धों को सहानुभूति नहीं, बल्कि समानुभूति की जरूरत है।
अगर कंपनियाँ वृद्धों को समाधान के हिस्से के रूप में देखना शुरू कर दें, तो क्या हो सकता है? एक ऐसे कार्यस्थल की कल्पना करते हैं, जिसमें एक 65 साल का मेंटर, 30 साल के मैनेजर को जटिल निर्णयों के बारे में प्रशिक्षण दे रहा है। जब वृद्धों द्वारा ग्राहकों के बारे में दशकों तक विकसित की गई समझ से ब्रांड की आवाज को ज्यादा मजबूत बनाने में मदद दी जा रही है। जब वृद्ध ऐसी सॉफ्ट स्किल्स प्रदान कर रहे हैं, जो सीखी जा सकती हैं, जैसे धैर्य, बातचीत और सहज आभास।
पॉप संस्कृति में हमने ऐसा होते देखा है। ‘द इंटर्न’ फिल्म इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। रॉबर्ट डे नीरो का किरदार न केवल अनुकूलित होता है, बल्कि कार्यस्थल को ऊपर भी उठाता है। सबसे अधिक तेज बनकर नहीं, बल्कि सबसे अधिक बुद्धिमान बनकर।
जेनएस लाईफ में हमारा मानना है कि भविष्य में कार्यबल में अलग-अलग पीढ़ी के लोग शामिल होंगे। मैं और हमारी संस्थापिका इस बात का प्रमाण हैं कि उद्देश्य कभी रिटायर नहीं होता है, और प्रतिभा भी। हमारे कुछ मेंटर्स और एडवाईज़र वृद्ध हैं। हमारी युवा टीम जब भी उनसे बात करती है, तो आप एक्सेलरेटर्स का महत्व स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। वो लोग बहुत कुछ देख चुके हैं और अपने ज्ञान व अनुभव को साझा कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में वरिष्ठ नागरकों को महसूस होता है कि उनका जीवन भी महत्वपूर्ण है। इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलता है और उनके जीवन में सुधार होता है।
कंपनियाँ क्या कर सकती हैं
• कंसल्टैंट, मेंटर, एडवाईज़र के रूप में या पार्ट-टाईम योगदान देने के लिए वरिष्ठ नागरिकों को नियुक्त करें।
• रिटायरमेंट की नीतियों पर पुनर्विचार करें, ‘‘रिटायरमेंट की उम्र’’ की ओर बढ़ने की बजाय ‘‘रिटायरमेंट की तैयारी’’ की ओर बढ़ें।
• रिटर्नशिप प्रोग्राम पेश करेंः थोड़ा ब्रेक लेने के बाद वरिष्ठ नागरिकों को कार्यबल में वापस शामिल होने का अवसर दें।
• जैसा लैंगिकता और जातीयता के मामले में किया जाता है, उसी तरह उम्र के मामले में भी विविधतापूर्ण कार्यबल को बढ़ावा दें।
• एक लचीले कार्यस्थल का निर्माण करें, जिसमें उत्पादकता को हर व्यक्ति के लिए एक रूप में न देखा जाए।
• वरिष्ठ नागरिकों को गिग कर्मी के रूप में काम करने का अवसर दें। इससे विकास में भले ही पार्ट-टाईम योगदान मिलेगा, पर वह ठोस योगदान होगा।
वरिष्ठ नागरिकों द्वारा प्रदान किाय जाने वाला मूल्य
• अनुभवः 40 साल का अनुभव पाने का कोई छोटा मार्ग नहीं है।
• स्थिरताः वरिष्ठ नागरिक गतिशील टीमों में भावनात्मक स्थिरता लेकर आते हैं।
• दृष्टिकोणः उनका दृष्टिकोण अधिक व्यापक होता है क्योंकि वो इसमें एक लंबा दौर गुजार चुके हैं।
• मेंटरशिपः युवा कर्मचारियों को केवल प्रशिक्षण नहीं, बल्कि मार्गदर्शन की भी जरूरत है।
यह पुराने समय को फिर से लाने का नहीं, बल्कि कार्रवाई करने का आह्वान है। वरिष्ठ नागरिक केवल एक वृद्ध आबादी नहीं। वो एक प्रतिभा समूह हैं, जिन्हें हम नजरंदाज कर रहे हैं। ऐसा करके हम गहराई, योग्यता, और विभिन्न पीढ़ियों के बीच विकास का एक बड़ा अवसर खो रहे हैं।
यदि कार्यस्थल को वास्तव में समावेशी बनाना है, तो उसमें उम्र की बातचीत को शामिल करना होगा। यह पूछना बंद करना होगा कि व्यक्ति को कब रिटायर होना चाहिए। इसकी बजाय यह पूछना होगा कि वो अभी भी अपना योगदान किस प्रकार दे सकते हैं।
63 साल की उम्र में मैं अभी भी काम कर रहा हूँ क्योंकि मैं जो करता हूँ, वह मुझे पसंद है। और मुझे मालूम है कि मैं अकेला नहीं हूँ।
अब समय है कि और इसमें और ज्यादा लोगों को शामिल किया जाए?