योगीराज 2.0 : सतीश महाना बने निर्विरोध यूपी विधानसभा अध्यक्ष

मंत्रिमंडल से कानपुर का प्रतिनिधित्व नहीं होने पर न सिर्फ भाजपाई बल्कि आम शहरवासी भी काफी हैरत में थे। अब सतीश महाना को निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद उसकी कुछ भरपाई होती दिख रही है। यह दूसरा मौका होगा जब शहर से किसी को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है। इससे पूर्व में मुलायम सिंह सरकार में 1990-91 में चौबेपुर कानपुर से विधायक हरिकिशन श्रीवास्तव को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया था। लगभग तीन दशक बाद एक बार फिर से कानपुर से सतीश महाना को विधानसभा अध्यक्ष चुना गया है। ऐसा माना जा रहा है,कि योगी मंत्रिमंडल पार्ट 2 में शहर से कोई मंत्री नहीं बनाए जाने के बाद खाली हुई जगह को भरने का काम विधानसभा अध्यक्ष पद देकर किया गया है।

लगातार 8 बार विधायक बनने से प्रदेश के कद्दावर नेताओ में है शुमार,

पहली बार वह 1991 में छावनी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े थे। तब से शुरू हुआ जीत का सिलसिला महाना ने 2022 तक जारी रखा। 1991 से 2022 तक महाना 8 बार विधायक बनकर विधानसभा जाते रहे है। कहा जाता है कि वह बजरंग दल के संयोजक रहे स्व.हरी दीक्षित को टिकट दिलाने गए थे। आरएसएस के किसी वरिष्ठ पदाधिकारी के कहने पर वह खुद ही दावेदार हो गये। तब छावनी से डा.जगन्नाथ गुप्ता का नाम फाइनल हुआ था। जिसे आरएसएस की पृष्टभूमि वाले महाना ने सूची से कटला दिया। इसके बाद रेवतीरमण रस्तोगी का नाम फाइनल हुआ था। उसको भी कटवाकर सतीश महाना का नाम बतौर प्रत्याशी सूची में आया। सन 1991 से अब तक वह हर चुनाव लड़े और जीते। विधानसभा क्षेत्र परिसीमन के बाद महाना को महाराजपुर विधानसभा क्षेत्र से लड़ाया गया। इसके पीछे एक वजह यह भी थी छावनी क्षेत्र में मुस्लिम इलाका जुड़ गया था। 2017 में यहां से मुस्लिमों का ध्रुवीकरण हुआ और सपा जीत गयी। पोलिटिक्स मे सेफ गेम खेलने पर विश्वास रखने वाले सतीश महाना ने तभी महाराजपुर विधानसभा को अपना सुरक्षित ठिकाना बनाया।

तीन बार कानपुर से चुने जा चुके है, विधान-परिषद अध्यक्ष,

उत्तर प्रदेश के लोकतांत्रिक ढांचे में कानपुर का खासा असर रहा है। विधानसभा और विधान परिषद दोनों ही सदनों में कानपुर से अध्यक्ष चुने जा चुके हैं। बात यदि विधान परिषद अध्यक्ष की करें, तो कानपुर से सबसे पहले बृजेंद्र स्वरूप को विधान परिषद का अध्यक्ष चुना गया था। उसके बाद वीरेंद्र बहादुर सिंह चंदेल विधान परिषद के अध्यक्ष चुने गए थे। इन दोनों का ही चयन कांग्रेस सरकार में किया गया था। जबकि अखिलेश सरकार में विधान परिषद के लिए कानपुर से सुखराम सिंह यादव को अध्यक्ष चुना गया था। इस तरह से तीन बार विधान परिषद अध्यक्ष की कुर्सी कानपुर के खाते आ चुकी है।

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