जानिए पुणे में तेज़ी से क्यों बढ़ रही महामारी, जरूरी दवाएं ब्लैक में मिल रहीं, कब्रिस्तान में भी दफनाने की जगह नहीं बची


देश में करीब डेढ़ लाख कोरोना मरीज रोज आने लगे हैं और उनमें महाराष्ट्र की हिस्सेदारी लगभग 60 हजार है। दुनिया के सिर्फ अमेरिका और ब्राजील ही ऐसे देश हैं, जहां इससे ज्यादा संक्रमित रोजाना मिल रहे हैं। महाराष्ट्र के बदतर होते हालात बताने के लिए क्या इतने ही आंकड़े काफी नहीं हैं? बिल्कुल हैं। राज्य में संक्रमितों का कुल आंकड़ा 33 लाख के पार पहुंच गया है। हर शहर, चाहे वह मुंबई हो या पुणे, नागपुर हो या औरंगाबाद, बेहद खराब हालत में है।

पिछले साल मुंबई के धारावी में जब कोरोना मरीज मिलने शुरू हुए, तो कहा गया कि एशिया की इस सबसे बड़ी झुग्गी की हाथभर चौड़ी गलियों में सोशल डिस्टेंसिंग बेमानी है। अब तो मुंबई के पॉश इलाकों से लेकर आईटी हब पुणे तक में कोरोना विस्फोट हो चुका है।

आखिर अब ऐसा क्या हुआ, जिसने झुग्गी से लेकर बंगले तक सबको अपनी चपेट में ले लिया। 

आज पहली रिपोर्ट पुणे से…

पुणे में इस साल कोरोना 10 गुना रफ्तार से बढ़ रहा है। बीते साल अगर एक दिन में एक अस्पताल में 10 मरीज आते थे तो इस बार रोज 100 मरीज आ रहे हैं। प्राइम अस्पताल हो, लाइफ लाइन अस्पताल हो, केईएम अस्पताल हो या फिर सीरीन और सुसुन अस्पताल। सभी जगह कोरोना मरीजों से वेंटिलेटर और ऑक्सीजन बेड्स फुल हो चुके हैं। नए मरीजों को रखने के लिए बेड्स नहीं हैं। प्राइवेट अस्पताल तो होटल किराए पर लेकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं।

110 अस्पतालों में कोविड का इलाज चल रहा, कहीं भी बेड खाली नहीं
पुणे म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (PMC) के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आशीष भारती बताते हैं कि इस बार केसेज बढ़ने की वजह ये है कि लोगों ने मास्क लगाना बंद कर दिया, वे बेपरवाह हो गए, सेकेंड वेव का किसी ने सोचा ही नहीं था, लोग शादियों और पार्टियों में जाने लगे।

दूसरी वजह वे बताते हैं कि यहां टेस्टिंग हो रही है। सरकार और प्रशासन को कोरोना की सेकेंड वेव का अंदेशा था, लेकिन प्रशासन तैयारियों में पिछड़ गया। यहां 110 अस्पतालों में कोविड का इलाज चल रहा है। एक भी बेड खाली नहीं है। लोग थोड़ी सी सर्दी-खांसी होने पर भी अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं।

पुणे में 325 कंटेनमेंट जोन हैं, जो लगातार बढ़ रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, रोजाना 60 से 70 लोग जान गंवा रहे हैं। लोगों में डर का माहौल बन गया है। सिर्फ पुणे शहर में हर दिन करीब 5500-6000 के बीच नए मामले आ रहे हैं। हर दिन 25,000 टेस्ट हो रहे हैं।

महापौर मुरलीधर मोहोल का कहना है कि कोरोना के सेकेंड वेव की वजह से पुणे सहित महाराष्ट्र के सभी बड़े शहरों में कोरोना बढ़ता जा रहा है। जब लोग लॉकडाउन से अनलॉक वाली स्थिति में आए तो जिन नियमों का पालन करना चाहिए था वह नहीं हुआ। लोग बड़ी संख्या में भीड़ में जाने लगे। सोशल गेदरिंग शुरू हो गई। इससे मामला और बिगड़ा है।जरूरी दवाएं ब्लैक में मिल रहीं, सिविल सोसायटी के भरोसे ऑक्सीजन

पुणे में दवाई दुकानों पर कोविड के इलाज के लिए जरूरी रेमडेसिविर और tocilizumab जैसे जरूरी इंजेक्शन ब्लैक में मिल रहे हैं। बीती रात पूरे पुणे में 40,500 रुपए का यह tocilizumab इंजेक्शन सिर्फ एक केमिस्ट के पास था। इस एक बचे हुए इंजेक्शन के 5 खरीदार थे।

पुणे के कोंडवा इलाके के प्राइम मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल के एक डॉक्टर ने मीडिया को बताया कि ऐसा शायद पहली दफा हुआ है कि अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म है और हम लोग सिविल सोसायटी पर ऑक्सीजन सिलेंडर अरेंज करने के लिए डिपेंड हैं।

पैसे और पहचान न हो तो मरीज मर ही जाएगा
कोंडवा के रहने वाले एक शख्स (नाम न बताने की शर्त पर) के पिता को प्लाज्मा की सख्त जरूरत पड़ी तो पूरे पुणे में इन्हें नहीं मिला। पैसे देकर एक आदमी को प्लाज्मा के लिए तैयार करना पड़ा। 100 एमएल का एक पाउच 11,000 रुपए में मिला, मरीज को दो पाउच लगे। वह एक निजी अस्पताल में एडमिट है। इलाज का खर्च करीब डेढ़ लाख रुपए तक आएगा।

इनके रिश्तेदार का कहना है कि हम खर्च कर सकते हैं, जान पहचान और शहर के असरदार लोगों में से हैं, तब भी हमें प्लाज्मा के लिए जो परेशानी उठानी पड़ी वह हम जानते हैं। आम आदमी जिसके पास न पैसे हैं न जान पहचान, वह तो मर ही जाएगा।

लोग पैसे लेकर खड़े हैं, लेकिन उन्हें वेंटिलेटर नहीं मिल रहे
अस्पतालों में दवाओं, इंजेक्शन, ऑक्सीजन की व्यवस्था और सभी धर्मों के मरने वाले कोविड मरीजों के अंतिम कार्यों में लगी संस्था जमात-ए-इस्लामी के शेख इमरान हुसैन बताते हैं कि एक एंबुलेंस में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में मरीजों को शिफ्ट करने के लिए 6,000 रुपए लिए जा रहे हैं।

ऑक्सीजन का एक सिलेंडर 20,000 रुपए सिक्योरिटी के साथ 12,000 रुपए में दिया जा रहा है। चाहे एक दिन रखो या महीना भर। सरकारी अधिकारियों के अनुसार पुणे में 500 से 600 के बीच वेंटिलेटर्स हैं। इमरान का कहना है कि लोग पैसे लेकर खड़े हैं, लेकिन उन्हें वेंटिलेटर नहीं मिल रहे हैं। इमरान के अनुसार इस साल पॉश इलाकों में भी कोरोना देखने में मिल रहा है। शायद इसकी वजह वहां होने वाली पार्टीज होंगी।कब्रिस्तान में भी दफनाने की जगह नहीं बची

इमरान के अनुसार इस बार मौतें तेजी से हो रही हैं। पुणे कब्रिस्तान भर चुका है। आज ही प्रशासन ने एक नई जगह अलॉट की है। वह यह भी बताते हैं कि लोग डर के मारे भी अस्पताल नहीं जा रहे हैं। जब कोविड उनके फेफड़ों को जकड़ लेता है, तब जा रहे हैं।

इन्होंने प्रशासन से मांग की है कि फिलहाल पुणे में इंडस्ट्रियल एरिया को दी जा रही 60 फीसदी ऑक्सीजन अस्पतालों को दी जाए, क्योंकि बीते वर्ष पुणे में बेशक बेड को लेकर मारामारी थी, जैसा कि देश के बाकी के कई शहरों में था, लेकिन इलाज की बेसिक सुविधाओं के हालात इतने खराब नहीं थे।

अस्पतालों में बायो वेस्ट निरस्त तक करने का खर्च वसूला जा रहा
पुणे के रहने वाले डेटा एनालाइजर और फ्री लांसर अरशद शेख खुद कोविड मरीज रहे हैं। इस वक्त इनके परिवार में दो संक्रमित हैं, जिनमें से एक अस्पताल में भर्ती हैं। इनका कहना है कि यहां पुलिस डंडे मार-मार कर मास्क पहनवा रही है। एक प्राइवेट अस्पताल में एक हफ्ते से दस दिन के कोविड ट्रीटमेंट का डेढ़ से 2 लाख रुपए का बिल आ रहा है। किसे शौक है इतने पैसे देने का।

अब हालात यह है कि इलाज के लिए अब जरूरी और बेसिक सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। बीते साल से इस साल में एक फर्क यह देखने को मिल रहा है कि पिछली बार जहां परिवार में एक को कोविड होता था, इलाज होता था, वह ठीक हो जाता था। लेकिन इस साल पूरे परिवार को एक साथ कोविड हो रहा है।

अरशद के मुताबिक, दरअसल सरकार और प्रशासन की पुणे में अपनी तैयारी नहीं थी। अस्पतालों में बायो वेस्ट निरस्त तक करने का खर्च वसूला जा रहा है। ऐसे में क्या कोई इलाज करवाएगा। अरशद के अनुसार एक वजह यह भी है कि बीते साल लॉकडाउन सख्त था।

अभी पुणे में आसपास के छोटे इलाकों से हर दिन 7 लाख लोग काम करने यहां आते हैं और वापस जाते हैं। जिन इलाकों से वह आते हैं वहां स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर हैं। वह लोग प्रिकॉशन के साथ यात्रा करें भी तो लापरवाही हो ही जाती है। एक और बात कि यहां विदेशों से आने-जाने वाले बहुत हैं। हर कोई अपने काम के आगे मजबूर है।

किसी भी वायरस का नेचर होता है कि वह म्यूटेट करता है, उसकी अवधि अलग अलग हो सकती है। कोरोना के वायरस के सेकेंड वेव में जो बदलाव आया है, वह बहुत तेजी से आया है, जो इंसानों के लिए खतरनाक है। सोशल बिहेवियर में भी बदलाव आया है। लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं।दो दिन के कोविड इलाज पर 82,000 रुपए खर्च हुए

मॉडल और एक्ट्रेस सुकृति चौहान बताती हैं कि यहां रुबी हॉल जैसे अस्पताल ने होटल ले रखे हैं। वह पहले मरीज को होटल में रखते हैं फिर ऑक्सीजन 90 से नीचे आने और तबीयत बिगड़ने पर अपने अस्पताल में भर्ती करते हैं। उनके परिवार में एक परिचित के दो दिन के कोविड इलाज पर 82,000 रुपए खर्च हुए।

पुणे के ही सना मोमिन के 9 लोगों के पूरे परिवार को कोविड हुआ। दो लोग अस्पताल में एडमिट हुए और बाकी लोगों का इलाज घर पर हुआ। वह बताती हैं कि जिस अस्पताल में उनके पिता एडमिट थे, वहां एक रिक्शेवाले का ट्रीटमेंट का बिल 35,000 रुपए आया जिसे वह किसी सूरत में नहीं चुका सकता था। वह बिल सना के परिवार ने चुकाया।

बीते साल से इस साल हम एक फर्क यह भी देख रहे हैं कि इस बार संक्रमण पॉश एरिया में फैला है। इसके फैलने की फ्रीक्वेंसी बहुत तेज है, क्योंकि हमारा परिवार इतना प्रिकॉशन लेता है। फिर भी पूरा परिवार संक्रमण की चपेट में आ गया। पहले सोशल डिस्टेंसिंग होने पर कोविड से बचाव हो जाता था, जो इस साल नहीं हो रहा है।

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