तीन मशीनों के भरोसे एक हजार मरीजों का इलाज – तीन महीने की मिल रही है वेटिंग
गोपाल त्रिपाठी
गोरखपुर। बीआरडी मेडिकल कालेज में डायलिसिस यूनिट को ही डायलिसिस की दरकार है। यूनिट की आठ में से पांच मशीने खराब हो गई हैं। डायलेजर खत्म है। सिर्फ एक तकनीशियन है। ऐसे में मरीजों को तीन महीने का इंतजार करना पड़ रहा है।
बीआरडी मेडिकल कालेज में किडनी के मरीजों के निशुल्क डायलिसिस सुविधा उपलब्ध कराने के नाम पर हीमो डायलिसिस यूनिट की आठ मशीने लगाई गई। इसकी लागत करीब एक करोड़ रुपए आई। इसका संचालन मेडिसिन विभाग के हाथ में है। सिर्फ दो साल में ही डायलिसिस यूनिट की हालत पतली होने लगी है। एक-एक करके मशीने जवाब देने लगी। आलम यह है कि इस समय आठ में से पांच मशीनें खराब हैं। जबकि बीआरडी के मेडिसिन विभाग की ओपीडी में किडनी(गुर्दा) के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। मेडिसिन विभाग में करीब एक हजार मरीज पंजीकृत हैं। जिन्हें डायलिसिस की दरकार है। डायलिसिस यूनिट में इस समय मरीजों को तीन-तीन महीने की वेटिंग मिल रही है। तीन मशीन से मरीजों की डायलिसिस की जा रही है। हैरानी की बात तो यह है कि जहां एक मरीज को सप्ताह दो बार चार-चार घंटे की डायलिसिस की जरूरत होती है, वहां दो-दो घंटे प्रतिदिन के हिसाब से डायलिसिस की जा रही है। कम समय की डायलिसिस होने से मरीज का खून मानक के मुताबिक साफ भी नहीं हो पा रहा है। वहीं रोजाना सिर्फ छह मरीजों की ही डायलिसिस हो रही है।
नहीं मिल रहा है डायलेजर
शासन ने गुर्दा रोग से जूझ रहे मरीजों को निःशुल्क इलाज मुहैया कराने के लिए असाध्य रोग फंड से डायलेजर मुहैया कराने का एलान भी किया था। बीते छह महीने से सरकार का वह वायदा भी बीआरडी में पूरा नहीं हो रहा है। मरीजों को कैंपस के बाहर की दुकानों से डेढ़ हजार रुपए में डायलेजर खरीदना पड़ रहा है। इतना ही नहीं डायलिसिस यूनिट के कर्मचारी मरीजों से एक खास दुकान से ही डायलेजर खरीदने का दबाव बनाते हैं। जो मरीज चहेते दकानदार से डायलेजर नहीं खरीदता उसके साथ कर्मचारी सौतेला व्यवहार करते हैं।
कुछ मशीनें खराब हैं। उनकी मरम्मत के लिए इंजीनियर को कहा गया है। यह सही है कि डायलेजर खत्म है। उसकी खरीद के लिए जल्द ही टेंडर प्रक्रिया की जाएगी।
डॉ. जीसी श्रीवास्तव, एसआईसी, बीआरडी मेडिकल कालेज