कोर्ट का आदेश- सस्पेंड कर्मचारी अपनी अनुपस्थिति का अब नहीं उठा सकते फायदा

झारखंड उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एमएस सुंदरेख की पीठ ने 9 मई 2016 के एक आदेश दिया था। इस आदेश में भारत की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है। आपको बता दे कि इस आदेश में निलंबित कर्मचारी को निलंबन समय के दौरान पदोन्नति और भत्ता जैसे लाभ देने का आदेश दिया था।

न्यायशास्त्र के सिध्दांत के बिल्कुल विपरीत होगा

जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोई निलंबित कर्मचारी अपने निलंबन के अवधि के दौरान पदोन्नति, भत्ता जैसे लाभ लेता है, यह न्यायशास्त्र के सिध्दांत के बिल्कुल विपरीत होगा। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने इसका विरोध करने वाली विशेष अनुमति याचिका पर विचार करते हुए की है।

झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एमएस सुंदरेख की पीठ ने जिस मामले में अपना फैसला दिया था उसमें व्यक्ति 15/02/1991 से 31/03/2003 तक निलंबित था।

जानिए क्या है पूरा मामला

निलंबित होने वाला व्यक्ति बनारस प्रसाद निलंबन के समय स्वास्थ्य विभाग में लिपिक के पद पर कार्यरत था। निलंबन आदेश जारी होने के बाद निलंबन आदेश लागू नहीं किया जा सका क्योंकि निलंबित बनारस प्रसाद बिना आदेश लिए अनुपस्थित हो गए। निलंबन आदेश न लेने और कोई दावा न करने की वजह से उस पर आगे कोई भी विभागीय कार्यवाही नहीं की गई और मामला किसी के संज्ञान में नहीं आया।

जब बिहार से नया राज्य झारखंड बना तो यह मामला उप सचिव (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग झारखंड ) के सामने आया जिसके बाद उसका निलंबन आदेश 31/01/2003 को रद्द कर दिया और सिविल सर्जन,रांची के अधीन लिपिक के रूप में ज्वाइन करने के लिए पदस्थापित किया।

वहां पद खाली न होने की वजह से 31 मई 2003 को उसे हेड क्लर्क के रूप में सिविल सर्जन कोडरमा में ज्वाइन करने का आदेश जारी किया गया जहां उसने 4 जुलाई 2003 को ज्वाइन किया। इसके बाद वह अपने निलंबन के समय अवधि का मंजूर भत्ता और पदोन्नति की मांग करने लगा। उसने कहा कि उसके खिलाफ निलंबन के दौरान कोई भी कार्यवाही नहीं हुई इसलिए उसे यह सभी फायदे मिलने चाहिए। इसके लिए उसने झारखंड उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की जिसे न्यायालय ने सुनवाई करने के मंजूर कर लिया।

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