सीतापुर । सावन मास में हर तरफ शिव की महिमा देखते बनती है। शिवभक्त व कांवड़िए शिवलिंग पर जलाभिषेक व रुद्राभिषेक करते हैं। शृद्धालुओं का मत है कि श्रावण मास में शिव आराधना से भगवान शिव अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और मनवांछित फल प्रदान करते हैं। महोली से 14 किमी दूर पैलाकीशा गांव में गौरीशंकर शिव मंदिर स्थित है। मंदिर का इतिहास करीब आठ दशक पुराना बताया जाता है।
शृद्धालु बताते हैं शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग का दिन में तीन बार रंग बदलता है। शिवलिंग का आकार भी स्वयं से घटता या बढ़ता रहता है। आठ दशक पूर्व गांव के हरिद्वार तालाब की खोदाई में सात फिट का शिवलिंग निकला था। ग्रामीणों ने तालाब से शिवलिंग को निकालकर गांव की गढ़ी पर रख दिया। तत्कालीन समय में गांव की युवती सरस्वती देवी के विवाह के चार माह बाद ही पति का निधन हो गया। जिससे उन्हें गहरा आघात लगा था और उनके मन में वैराग्य आ गया।
आठ दशक पुराना है पैलाकीशा गांव के गौरीशंकर शिव मंदिर का इतिहास
सरस्वती देवी ने अकेले ही गढ़ी से शिवलिंग उठाकर गांव के निकट ही एक स्थान पर स्थापित कर दिया। जिसकी नियमित रूप से पूजा-पाठ करने लगी। अपनी अचल संपत्ति भी उन्होंने मंदिर के में दान कर दी। धीरे-धीरे ग्रामीणों व क्षेत्रवासियों के सहयोग से एक भव्य शिवमंदिर का निर्माण कराया गया। जो गौरीशंकर मंदिर नाम से विख्यात हुआ। मंदिर में ग्रामीणों ने पूजा अर्चना शुरू कर दी। मंदिर की महिमा को देखते हुए दूर दराज से शिवभक्तों का आवागमन शुरू हो गया। बताते हैं गौरीशंकर मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूर्ण होती है।
मंदिर परिसर में ही एक बरगद का प्राचीन पेड़ है। जिसकी शाखाओं पर अक्सर दिन में भी जहरीले सर्प विचरण करते देखे जा सकते हैं। सर्पों ने आजतक किसी श्रद्धालु को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाया है। लोग उन्हें भोलेशंकर के गण मानते हैं और शृद्धाभाव से नमन करते हैं। वैसे तो पूरे साल भक्त मंदिर में दर्शन करने जाते हैं। लेकिन सावन के पावन महीने में श्रद्धालु यहां महामृत्युंजय जाप व रुद्राभिषेक कराते हैं। सावन महीने में शृद्धालु गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। गौरीशंकर मंदिर में सच्चे मन से पूजन अर्चन करने से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।