वाल्मीकि रामायण की प्रासंगिकता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने रखे महत्वपूर्ण विचार

लखनऊ। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग एवं इतिहास संकलन समिति, अवध प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में वाल्मीकि रामायण की वर्तमान समय में प्रासंगिकता” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 13 नवंबर 2025 को विश्वविद्यालय के अटल सभागार में किया गया। संगोष्ठी में पाँच महत्वपूर्ण उप-विषयों—वाल्मीकि रामायण : साहित्यिक स्रोत (महाकाव्य काल), वाल्मीकि रामायण में लोक जनजीवन, भारतीय सिनेमा एवं फोटोग्राफी में वाल्मीकि रामायण, वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं की विविधता इत्यादि विषयों पर विशेषज्ञों और शोधार्थियों द्वारा विस्तृत चर्चा की गई।

संगोष्ठी की अध्यक्षता कुलपति प्रो. अजय तनेजा ने की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय सह संगठन सचिव संजय श्रीहर्ष मिश्र, अति विशिष्ट अतिथि के रूप में लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. मनोज अग्रवाल, विशिष्ट अतिथि के रूप में एसजीपीजीआई लखनऊ के रजिस्ट्रार एवं राष्ट्रपति द्वारा विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित कर्नल वरुण वाजपेई, इतिहास संकलन समिति अवध प्रांत की अध्यक्ष प्रो. प्रज्ञा मिश्रा, तथा इग्नू लखनऊ की क्षेत्रीय उप निदेशक डॉ. अनामिका सिन्हा* उपस्थित रहे। सभी विशिष्ट अतिथियों ने संगोष्ठी के मुख्य विषय पर अपने अनुभव और विचार साझा किए।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. मुकेश कुमार ने किया। आरंभ में प्रो. पूनम चौधरी ने अतिथियों का परिचय कराया। इसके बाद डॉ. मनीष कुमार** ने विषय से संबंधित मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला। सबसे पहले प्रो. प्रज्ञा मिश्रा ने इतिहास संकलन समिति के उद्देश्य एवं कार्यों पर विस्तृत जानकारी दी और वाल्मीकि रामायण की प्रासंगिकता से जुड़े प्रामाणिक उदाहरण प्रस्तुत किए।
इसके पश्चात प्रो. मनोज अग्रवाल ने अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण से विषय की आधुनिक संदर्भ में उपयोगिता पर अपने विचार रखे। मुख्य अतिथि संजय श्रीहर्ष मिश्र ने वाल्मीकि रामायण के प्राथमिक स्रोतों, भाषा-प्रचलन और उस युग की सामाजिक संरचना का विस्तार से वर्णन करते हुए शोध को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया।

सत्र के अंत में प्रो. प्रज्ञा मिश्रा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया, जबकि डॉ. पूनम चौधरी ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। इस संगोष्ठी में लगभग 200 विद्यार्थी और प्राध्यापक विभिन्न संकायों से शामिल हुए। विद्यार्थियों ने विचार प्रस्तुत किए तथा प्रश्नोत्तर सत्रमें सक्रिय भागीदारी दिखाई।

इतिहास संकलन समिति अवध प्रांत के प्रचार प्रमुख **डॉ. मुकेश कुमार के अनुसार, संगोष्ठी को सफल बनाने में भाषा विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की प्रभारी *डॉ. पूनम चौधरी*, सहायक आचार्य डॉ. मनीष कुमार, डॉ. राजकुमार सिंह, डॉ. लक्ष्मण सिंह, एवं शोधार्थियों **पूजा यादव, अंकिता श्रीवास्तव, मोहम्मद अशद व रौनक परवीन का विशेष योगदान रहा।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से न केवल *सांस्कृतिक आधार को सुदृढ़ किया गया, बल्कि आधुनिक युग के छात्रों में वाल्मीकि रामायण की प्रासंगिकता और अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई गई।

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