
- सोमवार की सुबह से परिजनों का फोन नहीं उठ रहा था
- दोस्त हॉस्टल के रूम में पहुंचा तो कोई आहट नहीं हुई
- खिड़की से झांकने पर फंदे से लटकता नजर आया शव
- अजमेर का निवासी था बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग छात्र
भास्कर ब्यूरो
कानपुर। पढ़ाई और करियर का जबरदस्त तनाव और बेहद कमजोर काउंसिलिंग का नतीजा है कि, आईआईटी-कानपुर में एक और होनहार की जिंदगी फांसी के फंदे पर लटक गई। मूल रूप से राजस्थान के अजमेर का जयसिंह (26) तकनीकी संस्थान में बॉयोलाजिकल इंजीनियरिंग का अंतिम वर्ष का छात्र था। सोमवार को लगातार कई मर्तबा फोन करने के बावजूद जवाब नहीं मिला तो परिजनों ने सहपाठी को खैरियत पूछने के लिए भेजा, लेकिन बंद दरवाजे के पीछे से कोई आहट नहीं आई तो खिड़की से झांकने पर चीख निकल गई। आईआईटी प्रशासन की सूचना पर मौके पर पहुंची पुलिस और फॉरेंसिक टीम ने कमरा खोलकर चादर के फंदे के सहारे झूलती लाश को नीचे उतारा। हॉस्टल के कमरे से दो शब्द का सुसाइड नोट मिला है, जिसमें लिखा है- सॉरी एवरीवन…. । बीते दो साल में तकनीकी संस्थान के आठ होनहारों ने तनाव के कारण जिंदगी से नाता तोड़ते हुए आत्महत्या का दुस्साहस किया है। यूं तो आईआईटी में काउंसिलिंग के तमाम इंतजाम हैं, बावजूद होनहारों की मौत तमाम सवाल खड़े करती है।
रविवार की रात चादर से बनाया फंदा
आईआईटी प्रशासन के मुताबिक, अजमेर के अवधपुरी निवासी गौरीशंकर मीणा का बेटा जय सिंह तकनीक संस्थान के कैंपस के हास्टल नंबर दो के कमरा नंबर 148 में रहता था। बॉयोलॉजिकल इंजीनियरिंग में चौथे वर्ष का छात्र जयसिंह पढ़ाई में अव्वल था। रविवार को जय की परिजनों से मोबाइल फोन पर बात हुई थी, लेकिन सोमवार की सुबह से जय सिंह का मोबाइल फोन नहीं उठ रहा था। ऐसे में परिजनों को अनहोनी की आशंका हुई तो जयसिंह के दोस्त कोफोन लगाया, लेकिन वह भी छुट्टी पर था। अलबत्ता दोस्त ने अपने दूसरे साथी को जयसिंह की खैरियत पूछने के लिए हॉस्टल के कमरे में भेजा, लेकिन तमाम मर्तबा खटखटाने के बावजूद दरवाजा नहीं खुला। खिड़की से झांकने पर उसकी चीख निकल गई। कारण कमरे के अंदर पाइप के सहारे जयसिंह की लाश फंदे पर लटकी हुई थी। पुलिस की प्रारंभिक जांच में शव करीब 10-12 घंटे पुराना है। ऐसे में कयास है कि, जयसिंह ने रविवार की रात सुसाइड किया है।
पढ़ाई में अव्वल, लेकिन नौकरी का तनाव था
जयसिंह के सहपाठियों ने बताया कि, वह पढ़ाई में अव्वल होने के साथ मिलनसार और हंसमुख था। अलबत्ता चौथे सेमेस्टर समाप्त होते-होते जयसिंह को उम्दा नौकरी की चिंता सताने लगी थी। आए दिन वह आईआईटी प्रोफेसरों के साथ प्लेसमेंट के बारे में सवाल-जवाब करता था। दोस्तों के मुताबिक, अच्छे पैकेज की नौकरी का कोई ठोस भरोसा नहीं मिलने के कारण जयसिंह कुछ दिनों से तनाव में था। कयास है कि, इसी तनाव में वह जिंदगी की रेस हार गया। सुसाइड नोट में जयसिहं ने सिर्फ दो शब्द ही लिखे हैं- सॉरी एवरीवन…..जयसिंह के परिजन मंगलवार को शहर पहुंचेंगे, उसके बाद पोस्टमार्टम कराया जाएगा। एडीसीपी पश्चिम कपिलदेव सिंह ने बताया कि आत्महत्या की वजह स्पष्ट नहीं है, यदि परिजन आरोप लगाकर तहरीर देंगे तो कार्रवाई होगी। जानकारी के मुताबिक, जयसिंह के परिवार में माता-पिता के अलावा एक भाई सिद्धार्थ है। दोस्त प्रतीक ने बताया कि रविवार को सभी दोस्तों ने आईआईटी के बाहर एक साथ डिनर किया था। उस वक्त किसी को अहसास नहीं था कि, जय कोई खतरनाक कदम उठाने का इरादा बना चुका है। देर शाम करीब आठ बजे सभी सहपाठी अपने-अपने रूम में चले गये थे।
ऑल इज वेल तो होनहारों की मौत क्यों ?
भास्कर ब्यूरो
कानपुर। देश-दुनिया में आईआईटी-कानपुर की जबरदस्त धाक है, लेकिन जगमगाती तस्वीर पर होनहारों के सुसाइड का पैबंद भी चस्पा है। लगभग को साल के वक्त में आठ होनहारों ने तनाव के कारण कैंपस के अंदर जिंदगी का साथ छोड़ा है। 24 घंटे काउंसिलिंग का दावा है, लेकिन सुसाइड का ग्राफ चुगली करता है कि, काउंसिलिंग के मोर्चे पर मुस्तैदी कमजोर है। अक्टूबर महीने में धीरज सैनी की आत्महत्या के बाद कमरे से बदबू आने पर तीन दिन बाद लाश की बरामदगी हॉस्टल में वार्डेन की जिम्मेदारी को कठघरे में खड़ा करने के लिए पर्याप्त सबूत है। अब कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव शुरू होने से पहले अपने सवालों का ठोस जवाब नहीं मिलने से परेशान जय सिंह अपनी जिंदगी को हार गया। आईआईटी प्रशासन ने बीती तमाम सुसाइड की तरह इस मर्तबा भी जयसिंह की मौत पर संवेदना के दो-चार आंसू बहाकर उच्च श्रेणी का काउंसिलिंग का दावा दोहराया है।
सपने लेकर आते हैं, तनाव लेकर लौटते हैं
हाईस्कूल के दौर से देश के लाखों होनहार आईआईटी में पढ़ाई का सपना संजोते हैं। इंटरमीडियट के बाद इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के जरिए आईआईटी में एडमिशन मिलने पर घरों में होली-दीपावली और ईद जैसी खुशियों का संगम होनहारों की जिंदगी की तस्वीर को इंद्रधनुष जैसा सतरंगी कर देता है। पहले दिन उत्साह और उमंग के साथ मम्मी-पापा कैंपस में विदा करने आते हैं। अधिकांश होनहार अपनी मंजिल पर रफ्ता-रफ्ता आगे बढ़ते हैं, लेकिन कुछेक तनाव के भंवर में उलझकर धीरज और जय जैसा आत्मघाती कदम उठाकर मम्मी-पापा के सपनों को चकनाचूर कर देते हैं। जयसिंह की मौत आईआईटी-कानपुर के इतिहास में किसी होनहार की पहली मौत नहीं है। आंकड़े गवाही देते हैं कि, बीते 26 महीने में तकनीकी संस्थान से जुड़े आठ होनहारों ने तनाव के कारण जिंदगी को अलविदा कहा है।
24 घंटे काउंसिलिंग सवालों के कठघरे में
तकनीकी संस्थान का दावा है कि, मनोचिकित्सक व मनोवैज्ञानिक की नौ सदस्यीय टीम 24 घंटे में किसी भी वक्त काउंसलिंग करने के लिए मुस्तैद है। ऑनलाइन हेल्पलाइन व्यवस्था भी मुहैया है। छात्रों और शिक्षकों को प्रीवेंशन आफ इंडिया फाउंडेशन के जरिए प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रत्येक 30 स्नातक विद्यार्थियों पर नियुक्त फैकल्टी सलाहकार समय-समय पर काउंसलिंग करके विद्यार्थियों, कर्मचारियों के मानसिक स्तर का आंकलन करते हैं। सवाल है कि, यदि ऐसी उम्दा व्यवस्था है तो धीरज सैनी और जयसिंह समेत पल्लवी चिल्का, प्रगति खायरा, विकास मीणा और प्रियंका जायसवाल की मानसिक स्थिति को भांपने में चूक कैसे हुई। गौरतलब है कि, 11 जनवरी 2024 को मेरठ निवासी एमटेक छात्र विकास मीणा ने आत्महत्या करने से पहले सुसाइड नोट में लिखा था कि अकादमिक प्रदर्शन बेहतर नहीं होने के चलते यह कदम उठाया है। उस वक्त आईआईटी ने दावा किया था कि, कैंपस का माहौल बेहतर बनाएंगे, लेकिन दावे के एक सप्ताह बाद ही 18 जनवरी 2024 को झारखंड निवासी पीएचडी छात्रा प्रियंका जायसवाल ने सुसाइड किया था। जाहिर है कि, तमाम दावों के बावजूद, तकनीकी संस्थान में होनहारों को बेहतर माहौल नहीं मिल रहा है।











