यहां होली न खेलना की वजह बनी धार्मिक मान्यता, पोस्ट पढ़कर जानिए इसके पीछे की वजह

होली का त्योहार आने में अब कुछ ही समय शेष रह गया है, स्वाभाविक है कि पूरे देश में इस पर्व को लेकर खूब हर्ष और उल्लास का माहौल है। हो भी क्यों न होली का त्योहार रंगों का त्योहार जो होता है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है लोग इसे लेकर उत्साहित रहते हैं। हालांकि जहां होली को लेकर जगह-जगह तैयारियां जोरों से चल रही हैं, वहीं भारत में ही कुछ ऐसे स्थान भी हैं जहां यह त्योहार नहीं मनाया जाता है। जी हां, संभव है कि यह बात सुनकर आपको अटपटा जरूर लगे लेकिन यह सत्य है और हैरत की बात यह है कि होली न मनाए के पीछे कारण भी बहुत ही अजीबोगरीब है तो चलिए जानते हैं कि कौन सी जगह हैं जहां किसी न किसी कारणवश होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है।

इसलिए यहां 100 साल से नहीं मनाई गई होली

झारखंड के बोकारो के कसमार ब्लॉक स्थित दुर्गापुर गांव में 100 साल से होली नहीं खेली गई। यहां के लोग होली पर एक-दूसरे को रंग नहीं लगाते, क्योंकि उन्हें डर है कि ऐसा करने से गांव में महामारी और आपदा आएगी। दरअसल एक दशक पहले एक राजा के बेटे की होली के दिन मौत हो गई थी। इसके बाद जब भी गांव में होली का आयोजन होता था, गांव में महामारी फैल जाती थी और कई लोगों की मौत हो जाती थी। उसके बाद राजा ने आदेश दिया आज से यहां होली नहीं मनाई जाएगी।

यहां होली न खेलना इस कारण बना धार्मिक मान्यता

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की मुलताई तहसील के डहुआ गांव में 125 साल से होली मनाने पर प्रतिबंध है। दरअसल यहां के लोगों की माने तो, कि लगभग 125 साल पहले इस गांव में होली के त्योहार वाले दिन गांव के प्रधान की बावड़ी में डूबने के कारण मौत हो गई थी। प्रधान की मौत से गांव वाले बहुत दुखी हुए और उनमें भय समा गया इस घटना के बाद गांव के लोगों ने होली न मनाने का फैसला लिया। अब यहां होली ना खेलना धार्मिक मान्यता बन चुकी है।

और खोट हो गया इस जगह होली का त्योहार

हरियाणा के कैथल के गुहल्ला चीका स्थित गांव में 150 साल से होली का पर्व नहीं मनाया गया है। दरअसल 150 साल पहले इस गांव में एक ठिगने कद के बाबा रहते थे। कुछ लोगों ने होली के दिन उनका मजाक बनाया। अपमान से क्रोधित बाबा ने होली दहन के समय आग में कूदकर आत्महत्या कर ली। उन्होंने मरने से पहले गांव वालों को शाप दे दिया कि जो भी आज के बाद होली मनाएगा उसके परिवार का नाश हो जाएगा। उसके बाद से आज तक यहां होली नहीं मनाई गई। कहते हैं कि बाबा ने गांव वालों के मांफी मांगने पर कहा था कि यदि भविष्य में होली के दिन यहां जब किसी के घर पुत्र का जन्म होगा और उसी दिन गाय बछड़े को जन्म देगी तो उस दिन से यह शाप समाप्त हो जाएगा लेकिन अब तक ऐसा संयोग नहीं बना है। इस गांव में तो इस शाप का भय इस तरह फैला है कि यहां के लोग एक-दूसरे को होली के दिन शुभकामनाएं तक नहीं देते हैं।

इन 2 गांवों में होली न मनाने के पीछे है खास वजह

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले से 35 किमी दूरी पर खरहरी नाम के एक गांव में लगभग 200 साल से होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 150 साल पहले यहां भीषण आग लगी थी, जिसके कारण गांव के हालात बेकाबू हो गए थे। आग लगने के बाद पूरे गांव में महामारी फैल गई। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि इस त्रासदी से छुटकारा पाने के लिए एक हकीम को देवी ने स्वपन में दर्शन दिए। उन्होंने कहा कि गांव में होली का पर्व ना मनाया जाए तो यहां शांति वापस आ सकती है। तब से ही यहां होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ के ही धमनागुड़ी गांव में भी पिछले 200 सालों से होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। इस गांव के लोग होली जलाने और गुलाल रंग से काफी दूर रहते हैं। दैवीय खौफ की वजह से यहां के लोग करीब दो सौ सालों से होली नहीं मनाते हैं। इन दोनों गांव के लोग होली के रंग और गुलाल से इतना डरते हैं कि होली के दिन अपने घर से भी बाहर निकलने से भी कतराते हैं।

इसलिए यहां केवल महिलाएं खेलती हैं होली

उत्तर प्रदेश के कुंडरा गांव में होली के त्योहार पर केवल महिलाओं रंगों और गुलालों से होली खेलने की इजाजत है। इस दिन पुरुष खेतों पर चले जाते हैं ताकि महिलाएं आराम से होली का आनंद लें। इस दिन महिलाएं राम जानकी मंदिर में एकत्र होकर जमकर होली खेलती हैं लेकिन लड़कियों, पुरुषों और बच्चों तक को होली खेलने की इजाजत नहीं होती है। दरअसल इसके पीछे एक कहानी यह है कि यहां होली के दिन मेमार सिंह नाम के एक डकैत ने एक ग्रामीण की हत्या कर दी थी। उस समय से लोगों ने होली खेलना बंद कर दिया था। बाद में महिलाओं को होली खेलने की इजाजत मिल गई।

 

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