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बाराबंकी। आर्थिक तंगी, पारिवारिक चुनौतियों और माता-पिता के निधन जैसी परिस्थितियों के बावजूद बांसा शरीफ गांव (थाना मसौली) के रियाज आलम ने अपने हौसले और मेहनत के दम पर रेलवे भर्ती बोर्ड (RRB-JE 2024) में सिविल इंजीनियरिंग (अनुसंधान एवं विकास अभियंता) के पद पर चयन पाकर एक मिसाल कायम की है। यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए गर्व का विषय है।
गांव के मेले से मिली संघर्ष की सीख
मरहूम मोहम्मद हारून के पुत्र रियाज की प्रारंभिक शिक्षा राम सेवक यादव मेमोरियल हाई स्कूल, सत्य प्रेमी नगर, बाराबंकी से हुई। इंटरमीडिएट श्री गांधी पंचायत इंटर कॉलेज, सादतगंज से करने के बाद उन्होंने राजकीय पॉलीटेक्निक, गोंडा से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और जहांगीराबाद इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बाराबंकी से बी-टेक पूरा किया।
परिवार की आर्थिक मदद के लिए रियाज ने बचपन से ही मेहनत करना शुरू कर दिया था। हर महीने गांव में लगने वाले नौचंदी मेले में वे दुकान पर बैठकर सामान बेचते थे। मेले में दिनभर ग्राहकों को संभालते हुए रात में पढ़ाई करना उनके जीवन का हिस्सा बन गया। यही अनुशासन और संघर्ष आगे चलकर उनकी सफलता की कुंजी साबित हुआ।
माता-पिता की प्रेरणा बनी संबल
माता-पिता के निधन के बाद भी उनके सपने रियाज के लिए प्रेरणा बने रहे। भाई सिराज आलम ने हर कदम पर आर्थिक और भावनात्मक सहयोग दिया, जबकि दोस्त गोविंद केशरी ने कठिन वक्त में हौसला बढ़ाया। ऑनलाइन तैयारी के दौरान गुरुजन सुमित सेंगर और बलवीर सिंह का मार्गदर्शन उनके लिए अमूल्य साबित हुआ।
मेहनत का मिला फल
रियाज कहते हैं, “मेरे मम्मी-पापा का सपना था कि मैं एक अच्छे मुकाम पर पहुंचूं। आज मैं खुदा का शुक्रगुजार हूं कि उनकी इच्छा पूरी कर सका। इस सफर में भाई, दोस्त और गुरुजनों का योगदान हमेशा याद रखूंगा।”
युवाओं के लिए प्रेरणा
रियाज की कहानी इस बात का प्रमाण है कि कठिन हालात भी उन लोगों का रास्ता नहीं रोक सकते, जिनके सपने मजबूत हों और मेहनत सच्ची हो।