केंद्र सरकार ने कहा- जनता को राजनीतिक दलों के धन का स्रोत जानने का अधिकार नहीं

दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड योजना के तहत मिलने वाले धन के स्रोत के बारे में नागरिकों को जानने का अधिकार नहीं है। सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत लोगों को सूचना पाने का अधिकार नहीं है। शीर्ष न्यायालय में दाखिल की गई एक दलील में वेंकटरमणी ने कहा कि तार्किक प्रतिबंध की स्थिति नहीं होने पर किसी भी चीज और प्रत्येक चीज के बारे में जानने का अधिकार नहीं हो सकता। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम किसी कानून या अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संविधान पीठ ने 31 अक्टूबर यानी आज से मामले की सुनवाई शुरू की है।

इलेक्टोरल बॉन्ड के तहत राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे को सार्वजनिक बनाने की मांग करने वाली याचिका पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने रविवार को अपने विचार रखे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि संविधान ने नागरिकों को इन फंड्स का सोर्स जानने का मौलिक अधिकार नहीं दिया है। उन्होंने कोर्ट को चेतावनी दी कि इलेक्टोरल बॉन्ड को रेगुलेट करने के लिए पॉलिसी डोमेन में न आए।

रविवार को उन्होंने कहा कि नागरिकों को ये अधिकार तो है कि वे उम्मीदवारों की क्रिमिनल हिस्ट्री जानें, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि उन्हें पार्टियों की इनकम और पैसों के सोर्स जानने का अधिकार है।

दरअसल, 31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इलेक्टोरल बॉन्ड मामले की सुनवाई करेगी। इसमें जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।

स्कीम से किसी के मौजूदा अधिकारों का उल्लंघन नहीं

वेंकटरमनी ने कहा कि ये स्कीम किसी भी व्यक्ति के मौजूदा अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है। साथ ही यह स्कीम डोनर्स को पहचान उजागर न करने की सुविधा भी देती है। ये क्लीन मनी के डोनेशन को बढ़ावा देता है। इससे डोनर अपने टैक्स देने के दायित्व जानेगा।

उन्होंने कहा कि ये स्कीम किसी भी प्रकार के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है। अटॉर्नी ने कहा कि कोर्ट राज्य की कार्रवाई की समीक्षा केवल तब ही करता है जब मौजूदा अधिकारों का टकराव हो।

मामले में कांग्रेस-बीजेपी की ओर से बयानबाजी

कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने बीजेपी पर निशाने साधा। उन्होंने ‘X’ पर पोस्ट करते हुए लिखा कि बीजेपी चोरी-छिपे, गलत तरीके से और साजिश के तहत बड़े-बड़े कॉर्पोरेट से कमाए हुए पैसों की फंडिंग करेगी। देखते हैं कौन जीतता है, बड़े कॉर्पोरेट या छोटे नागरिक जो पार्टियों को डोनेशन देने में गर्व महसूस करते हैं।

वहीं, चिदंबरम के बयान पर पलटवार करते हुए बीजेपी के आईटी सेल हेड अमित मालवीय ने कहा कि कांग्रेस ज्यादा पारदर्शी और लोकतांत्रिक पॉलिटिकल फंडिंग सिस्टम को लागू करने की कोशिशों का विरोध करती है। सच्चा लोकतंत्र तब है, जब छोटे व्यापारी और बड़े कॉर्पोरेट किसी भी पार्टी को डोनेशन दे सकें और अगर कोई अलग पार्टी सत्ता में आती है तो उन्हें अपने से बदला लिए जाने का डर न हो।

मामले की अहमियत समझते हुए संविधान बेंच के पास भेजा

CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस केस में 16 अक्टूबर को सुनवाई की थी। तब उन्होंने कहा था कि इस याचिका की अहमियत समझते हुए इस मामले को कम से कम पांच जजों की बेंच के सामने रखा जाना चाहिए। मामले की सुनवाई के लिए 31 अक्टूबर की तारीख तय की गई। साथ ही 5 जजों की संविधान बेंच का गठन किया गया।

याचिकाकर्ताओं के वकील की मांग

याचिका दाखिल करने वाली संस्था ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) की तरफ से एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी कि इस प्रकार की चुनावी फंडिंग भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगी। कुछ कंपनियां उन पार्टियों में अज्ञात तरीकों से फंडिंग करेंगी, जिन पार्टियों की सरकार से उन्हें फायदा होता है।

पहले भी एडवोकेट भूषण ने SC को बताया था कि 2024 के आम चुनावों के लिए चुनावी बॉन्ड योजना शुरू होने से पहले इस मामले पर फैसला किया जाना जरूरी है, जिसके बाद कोर्ट ने इस पर अंतिम सुनवाई करने का फैसला किया था।

इस मामले पर चार जनहित याचिकाएं लंबित हैं। इनमें से एक याचिकाकर्ता ने मार्च में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि चुनावी बॉन्ड से पार्टियों को अब तक 12 हजार करोड़ की फंडिंग हुई है और इसका दो-तिहाई हिस्सा एक खास पार्टी को मिला है।

क्या है पूरा मामला

इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।

बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।

इस पर सुनवाई के दौरान पूर्व CJI एसए बोबडे ने कहा कि मामले की सुनवाई जनवरी 2020 में होगी। चुनाव आयोग की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए सुनवाई को फिर से स्थगित कर दिया गया। इसके बाद से अभी तक इस मामले को कोई सुनवाई नहीं हुई है।

चुनावी बॉन्ड क्या है?

2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है। जिसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।

अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए।

जिस पार्टी को डोनेट कर रहे हैं वो एलिजिबल है, ये कैसे पता चलेगा?

बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता है। खरीदने वाले को बैंक को अपनी पूरी KYC डीटेल में देनी होती है। खरीदने वाला जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट करना चाहता है, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिला होना चाहिए। डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर इसे उस पार्टी को चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है।

इस पर विवाद क्यों

2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। दूसरी ओर इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।

कुछ लोगों का आरोप है कि इस स्कीम को बड़े कॉर्पोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लाया गया है। इससे ये घराने बिना पहचान उजागर हुए जितना मर्जी उतना चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकते हैं।

चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी

कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता है।
बैंक को KYC डीटेल देकर 1 हजार से 1 करोड़ रुपए तक के बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं।
बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है।
इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलती है।
ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं।

राजनीतिक दलों की चुनावी फंडिंग का मामला:सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी याचिका संविधान पीठ को भेजी, 31 अक्टूबर को सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों की चुनावी फंडिंग से जुड़ी इलेक्टोरेल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाली याचिकाएं संविधान पीठ को भेज दी हैं। इस पर अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सोमवार 16 अक्टूबर को इस पर सुनवाई की।

फ्रीबीज मामला…SC बोला- हाईकोर्ट में याचिका क्यों नहीं लगाई:निर्देश दिया- पार्टियों को दिए मेमो में मुख्यमंत्री ऑफिस की जगह राज्य सरकार लिखें

सुप्रीम कोर्ट ने 6 अक्टूबर को फ्रीबीज मुद्दे (चुनाव से पहले की जाने वाली घोषणाओं) पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि हाईकोर्ट में याचिका क्यों नहीं लगाई?

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें