महाराष्ट्र के बीड में कर्फ्यू, जालना में 3 लोगों ने सुसाइड की कोशिश की

बीड । महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण हिंसक हो गया है। बीड और माजलगांव के बाद मंगलवार सुबह उमरगा कस्बे के नजदीक तुरोरी गांव में भी आगजनी हुई। यहां प्रदर्शनकारियों ने कर्नाटक डिपो की एक बस में आग लगा दी।

उधर, इस आंदोलन से सबसे ज्यादा प्रभावित बीड शहर के बाद उस्मानाबाद में भी प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया है। बीड में इंटरनेट बंद कर दिया गया है। वहीं, जालना शहर में भी पिछले 12 घंटों में तीन लोगों ने सुसाइड करने की कोशिश की। यहां भी पिछले 13 दिनों से प्रदर्शन जारी है।

दिव्य मराठी के सूत्रों के मुताबिक, शिंदे सरकार विधानसभा का स्पेशल सेशन बुलाने पर विचार कर रही है। इसके लिए दोपहर तक कैबिनेट मीटिंग हो सकती है। इसमें मराठाओं को आरक्षण देने के लिए अध्यादेश लाया जा सकता है।

मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जारंगे जालना के अंतरौली में 6 दिन से भूख हड़ताल पर हैं। सीएम एकनाथ शिंदे ने मंगलवार सुबह उनसे बात की। इसके बाद वे सिर्फ पानी पीने के लिए राजी हो गए। मराठा आरक्षण आंदोलन इस साल अगस्त से चल रहा है। आरक्षण की मांग को लेकर पिछले 11 दिनों में 13 लोग सुसाइड कर चुके हैं।

राज्य में दो दिनों में राज्य परिवहन निगम की 13 बसों में तोड़फोड़ की गई है। इसके चलते 250 में से 30 डिपो बंद करने पड़े हैं। पथराव के बाद पुणे-बीड बस सेवा बंद कर दी गई है। सोमवार रात को करीब एक हजार लोग बीड डिपो में घुस गए और 60 से ज्यादा बसों में तोड़फोड़ की।

एनसीपी के 2 विधायकों के घर जलाए, पथराव किया

आंदोलनकारियों ने सोमवार को एनसीपी के दो विधायकों के घरों में आग लगा दी। सुबह करीब 11 बजे बीड जिले के माजलगांव से एनसीपी विधायक प्रकाश सोलंके के बंगले में घुसकर पथराव किया और आग लगा दी। उस समय विधायक, परिवार और स्टाफ बंगले में ही थे। दोपहर बाद बीड में ही एनसीपी के एक और विधायक संदीप क्षीरसागर का घर जला दिया। प्रकाश सोलंके अजीत पवार गुट के हैं, वहीं क्षीरसागर शरद पवार गुट के हैं। आंदोलनकारियों ने बीड में ही नगर परिषद भवन और एनसीपी दफ्तर में भी आग लगाई है।

शिवसेना के दो सांसदों और भाजपा के एक विधायक ने इस्तीफा दिया

मराठा आरक्षण आंदोलन के बीच रविवार 29 अक्टूबर को शिवसेना के दो सांसदों और भाजपा के एक विधायक ने इस्तीफा दे दिया है। हिंगोली से सांसद हेमंत पाटिल और नासिक के सांसद हेमंत गोडसे ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को इस्तीफा भेज दिया है। गेवराई विधानसभा क्षेत्र के विधायक लक्ष्मण पवार ने भी रिजाइन कर दिया है।

सीएम शिंदे बोले- कुछ मराठा परिवारों को मिलेगा लाभ; जारांगे की मांग- सबको दें

मराठा कैबिनेट उपसमिति की बैठक सोमवार को हुई। बैठक के बाद सीएम शिंदे ने कहा कि जस्टिस संदीप शिंदे कमेटी की रिपोर्ट स्वीकार कर ली गई है। इसे मंगलवार को कैबिनेट में रखा जाएगा।

सबूतों से पता चलता है कि कुछ मराठा परिवारों को ही आरक्षण मिलेगा। कमेटी ने अब तक 1.73 करोड़ दस्तावेज जांचे हैं। इनमें कुनबी के 11,530 रिकॉर्ड मिले हैं, जिनके पास कुनबी के साक्ष्य होंगे, उन्हें तुरंत आरक्षण प्रमाण पत्र जारी करेंगे। अनशन पर बैठे मनोज जारांगे ने कहा कि आंशिक आरक्षण स्वीकार नहीं करेंगे। सबको आरक्षण मिले।

शिंदे ने ये भी कहा कि मराठा आरक्षण मुद्दे पर 3 सदस्यीय कमेटी बनाई जाएगी, जो राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण पर क्यूरेटिव पिटीशन दायर करने को लेकर सलाह देगी। कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस संदीप शिंदे (रिटायर्ड) होंगे। शिंदे ने ये भी कहा कि मराठा आरक्षण मुद्दे पर 3 सदस्यीय कमेटी बनाई जाएगी, जो राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण पर क्यूरेटिव पिटीशन दायर करने को लेकर सलाह देगी। कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस संदीप शिंदे (रिटायर्ड) होंगे।

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मसला क्या है?

महाराष्ट्र में एक दशक से मांग हो रही है कि मराठाओं को आरक्षण मिले। 2018 में इसके लिए राज्य सरकार ने कानून बनाया और मराठा समाज को नौकरियों और शिक्षा में 16% आरक्षण दे दिया।

जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे कम करते हुए शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% आरक्षण फिक्स किया। हाईकोर्ट ने कहा कि अपवाद के तौर पर राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है।

जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो इंदिरा साहनी केस या मंडल कमीशन केस का हवाला देते हुए तीन जजों की बेंच ने इस पर रोक लगा दी। साथ ही कहा कि इस मामले में बड़ी बेंच बनाए जाने की जरूरत है।

क्या है इंदिरा साहनी केस, जिससे तय होता है कोटा?

1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10% आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। इस पर इंदिरा साहनी ने उसे चुनौती दी थी। इस केस में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित सीटों, स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50% से अधिक नहीं होना चाहिए। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया गया है। तब से ही यह कानून बन गया। राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है।

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