भास्कर समाचार सेवा
नई दिल्ली। आज के व्यस्त जीवन में अगर कोई शारीरिक बीमारियां या घाव हो तो वह आसानी से पहचान व दिखाई दे सकती हैं, इसलिए हमारे लिए उन्हें समझना और जल्दी ठीक करना आसान होता है। लेकिन, जैसे ही हम मानसिक बीमारी की बात करे तो यह आम स्थिति की तरह नहीं होती और न ही इसके लक्षणों को जल्दी समझ पाना आसान होता हैं। सही जागरूकता और जानकारी के अभाव के कारण न जाने कितने लोग – एंग्जाइटी, डिप्रेशन, मूड डिसॉर्डर आदि मानसिक बीमारियों के साथ जीते हैं और जिसका उन्हें खुद अंदाज़ा भी नहीं होता।
प्रिया वंद्रेवाला भी कभी उन्हीं लोगों में से एक हुआ करती थीं, लेकिन उनकी ज़िंदगी में एक ऐसा दौर आया जिसकी वजह से उन्हें अपना मकसद मिल गया।
पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट, प्रिया वंद्रेवाला एक खुशहाल जीवन जी रही थीं, मगर फिर अचानक उनके अंकल ने 2006 में आत्महत्या कर ली। इस घटना ने प्रिया के मन-मस्तिष्क पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि वे खुद मानसिक बिमारी से ग्रस्त हो गईं। मगर उन्होंने इसका सामना पूरी जीवनदृष्टि के साथ किया। मगर, मन में मलाल अब भी था कि वे अपने अंकल को आत्महत्या करने से नहीं रोक पाईं। यह जानना मुश्किल है कि कितने लोग हैं, जो अपनी बिगड़ती मेंटल हेल्थ के बारे में किसी को बता नहीं पाते और सुसाइड करने के बारे में सोचते हैं। ‘नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो’ के अनुसार, 2021 में भारत में आत्महत्या के 164,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए।
प्रिया ने मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की बढ़ती गंभीरता को मद्देनज़र रखते हुए 2008 में अपने पति साइरस वंद्रेवाला के साथ मिलकर “वंद्रेवाला फाउंडेशन” की स्थापना की। इस गैर-लाभकारी संस्था का उद्देश्य उन लोगों की मदद करना है जो मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। साथ ही, यह फाउंडेशन कई अन्य संस्थानों के साथ मिलकर लोगों को मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूक करती है।
प्रिया वंद्रेवाला का मानना है कि – “जब कोई व्यक्ति भारी डिप्रेशन या एंग्जाइटी से गुज़रता है तो वे अकेला पड़ जाता है, क्योंकि उसके साथ जो बीत रहा है उसे समझने वाला कोई नहीं होता है। इसके अलावा कई लोग मेंटल हेल्थ से जुड़े स्टिग्मा की वजह से भी खुलकर किसी को अपनी कंडीशन बता नहीं पाते हैं।” साथ ही, प्रिया वंद्रेवाला का कहना है कि – “पहले लोग अपनी तकलीफों के बारे में बात करना नहीं पसंद करते थे, मगर मेंटल हेल्थ के बारे में बढ़ती आवेयरनेस की वजह से अब वे यह समझने लगे हैं कि उन्हें मदद की जरूरत है और मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में जागरूकता ही पहला कदम है।”
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी इन्हीं छोटी-छोटी जरूरतों को समझते हुए वंद्रेवाला फाउंडेशन नें 2009 में ही भारत में अपनी ‘मेंटल हेल्थ हेल्पलाइन’ की शुरुआत की थी। यह हेल्पलाइन अवसाद, ट्रॉमा, मूड डिसऑर्डर, गंभीर बीमारियों और रिलेशनशिप इशू के कारण समस्याओं का सामना कर रहे किसी भी व्यक्ति को मुफ्त मनोवैज्ञानिक परामर्श और मध्यस्थता प्रदान करती है।
पिछले 14 सालों से यह सेवा 4 प्रमुख भारतीय भाषाओं- हिंदी, अंग्रेजी, मराठी और गुजराती में 24/7 उपलब्ध रही है। इन वर्षों में अब तक वंद्रेवाला फाउंडेशन नें 1 मिलियन से अधिक लोगों को काउंसेलिंग प्रदान की है। व्हाट्सएप सेवाओं के लॉन्च के बाद, लगभग 50% से अधिक बातचीत व्हाट्सएप पर होती है। उनकी काउंसेलिंग का 1/3 हिस्सा उन लोगों के साथ बात करना है जो एंग्जाइटी या आत्मघाती विचारों का सामना कर रहे हैं। वर्तमान में इस फाउंडेशन में कुल 150 लोग कार्यरत हैं। आज वे बंगाली, तमिल, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम, पंजाबी और उर्दू सहित कुल 11 प्रमुख भारतीय भाषाओं में परामर्श प्रदान करते हैं। उनका लक्ष्य सालाना 300,000 काउंसेलिंग को बढ़ाकर 10 लाख तक ले जाना है।
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