कानपुर : रेलवे के नाम पर चार फीट की जगह खोद डाला चालीस फीट

कानपुर। जनपद के नर्वल तहसील समेत आस पास के अन्य तहसीलों में रेलवे के नाम पर अवैध रूप से मिट्टी का खनन किसानों की कमर तोड़ रहा है बर्तमान मे महींनों से क्षेत्र के पालपुर गांव मे रिंद नदी के किनारे से धड़ल्ले से अवैध खनन का कार्य जारी है जिसकी सिकायत के बावजूद शासन प्रसाशन के नियम कानून मात्र एक सफेद हांथी नजर आ रही है रुपयों की गड्डी के सामने मात्र एक सिकायती पत्र उसमे दबा नजर आता है फलस्वरूप माफियाओं ने चार फीट के समझौते पर चालीस फीट तक मिट्टी का खनन कर खेतों को तालाब बना दिया है जरा सी बरसात होते ही रिंद नदी मे पानी बढ़ा तो आस-पास के पूरे इलाके मे पानी अपना साम्राज्य स्थापित कर लेगा वहीं गांवों के सम्पर्क मार्ग भी पूरी तरह छोटे-छोटे तालाबों मे नजर आएंगे आने वाले दिन क्षेत्र के दौलतपुर साढ़ गोपालपुर ईंटारोरा पालपुर सुखैयापुर कोरथा गौरी सहित लगभग आधा दर्जन गावों के लिए मुसीबत साबित होने वाले हैं


बारिश मे पानी भरने से ये गड्ढे जान लेवा हो जाएंगे किसान इसकी शिकायत करते हैं तो माफिया उन्हें जान से मारने की धमकी देते हैं जिससे किसान की बेबसी तब और बढ़ जाती है जब जिम्मेदार अफसर भी कार्य वाही के बजाय हाथ पर हाथ रख-कर बैठे नजर आते हैं पिछले कई वर्षों से नर्वल तहसील क्षेत्र में आने वाले गांव सचौली इटारोरा गोपालपुर पालपुर बिरहर कोरथा आदि गावों में मिट्टी का अवैध खनन रेलवे के नाम पर चल रहा है सबसे ज्यादा खनन पालपुर में हुआ है यहां एक ही स्थान पर लगभग चालीस फीट गहरे गड्ढे खोद दिए गए हैं खनन माफिया ने साठ-गांठ कर किसानों की पचासों बीघे खेत खोद कर तालाबों मे तब्दील कर डाले हैं जब कि नियम यह है कि जिन किसानों के खेतों में मिट्टी ज्यादा जमा होती है वह किसान खेती के योग्य बनाने के लिए उसे हटवा सकते हैं इसके लिए बाकायदा एक सहमति पत्र बनता है इसमें यह उल्लेख किया जाता है कि मिट्टी कितनी खोदी जानी है यह खेत के आकार और मिट्टी पर भी निर्भर करता है

लेकिन खनन माफिया की दबंगई के आगे कई बार किसान भी बेबस हो जाते हैं खनन माफिया खुले-आम चार की जगह चालीस फीट तक मिट्टी खोद देते हैं और कोई कुछ नहीं कर पाता खनन माफियाओं की पुलिस से लेकर लेख पाल आदि सबसे साठ-गांठ रहती है इस बात की शिकायत थाने से लेकर तहसील दिवस तक में ग्रामीणों द्वारा की गयी लेेकिन कोई कार्रवाई नही हुई किसानों का कहना है कि जरूरत से ज्यादा मिट्टी निकालने से उनके खेत की उर्वरक क्षमता खत्म हो गई है जिससे वह खेती नही कर पा रहे हैं जबकि उनके खेत में गेहूं जौ और मक्के की अच्छी खेती होती थी अब दोबारा उसी जमीन को खेती योग्य बनाने के लिए हमे लाखों रुपये खर्च करने पड़ेंगे तब जाकर खेत मे हल चल पाएगा।

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