लखनऊ : देश के दो सौ दिग्गज कृषि वैज्ञानिकों ने साझा किये अपने अनुभव

लखनऊ। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान में शुक्रवार को प्राकृतिक एवं कर्बनिक खेती के माध्यम से स्थिर खेती की परिकल्पना को साकार करने के विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया।आयोजित किये गए इस सेमिनार में प्रोफेसर कीर्ति सिंह मेमोरियल व्याख्यान के साथ साथ देश के जानेमाने कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तीस अन्य संबंधित विषयों पर शोध पत्र साझा किये गये।यह सेमिनार रायल एशोसिएशन फार साइंस एण्ड सोसियो कल्चर एडवांसमेंट(रासा) नई दिल्ली,भाकृअनुप -भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ व नई दिल्ली की सोसाइटी फार शुगरकेन रिसर्च एवं  प्रमोशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।कार्यक्रम में दो सौ कृषि वैज्ञानिक,दूरदराज से आये कृषक एवं छात्रों ने हिस्सा लिया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर देश की राजधानी दिल्ली के एसोसिएशन फॉर साइंस-लेड सोशियो कल्चरल एडवांसमेंट (रासा) से डा० सिंह रायल ने हिस्सा लिया उन्होंने किसानों से रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक विधि से खेती के लिये जोर दिया।डॉ० सिंह ने वैज्ञानिकों से प्राकृतिक और जैविक खेती द्वारा मृदा उर्वरता और पर्यावर्णीय स्वास्थ्य की बहाली,ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी,भोजन,पोषण और आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ाने में सक्षम होने के दावों को गंभीरता से लेने का आग्रह करते हुए

इस कृषि प्रणाली के सभी लाभ और हानियों पर विचार-विमर्श करने की सलाह दी।पूर्व सचिव डेयर एवं पूर्व महानिदेशक भाकृअनुप डा० पंजाब सिंह ने खेती के टिकाऊपन के लिए कृषि विविधीकरण की आवश्यकता पर बल दिया।डॉ० ऊधम सिंह गौतम उपमहानिदेशक (कृषि प्रसार) भाकृअनुप ने अपने अभिभाषण में जैविक खेती को अपनाने पर बल देते हुए बताया

कि देश के सभी 731 केवीके कृषि के टिकाऊपन के लिए इस कृषि प्रणाली को अपनाने का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।इस अवसर पर डा० जसवंत सिंह पूर्व विभागाध्यक्ष (कृषि अभियंत्रण) आईआईएसआर लखनऊ; डॉ० डीके वत्स कुलपति, एचपीकेवीवी पालमपुर,डा जनार्दन सिंह विभागाध्यक्ष (जैविक खेती) एचपीकेवीवी पालमपुर, . डॉ० पूनम परिहार सह प्राध्यापक एसकेयूएएसटी जम्मू,डा० अनीता सिंह डीएसटी वैज्ञानिक और डा० सुधीर सिंह प्रधान वैज्ञानिक आईआईवीआर वाराणसी को रासा फेलो के सम्मान से सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर प्रकाशित स्मारिका एवं एक पुस्तक का विमोचन भी किया गया।कार्यक्रम में 250 से अधिक देश भर के शोध संस्थानों,राज्य कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों,विकास कार्यकर्ताओं,किसानों एवं विद्यार्थियों ने सहभागिता की

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