भास्कर समाचार सेवा
बकेवर/इटावा। मच्छरों की बढ़ती संख्या का प्रतिकूल असर अब नगरों से निकल कर गाँवों मे भी पड़ने लगा है। स्थिति यह है कि आम आदमी को छोड़कर इनका कहर जानवरों पर भी पड़ रहा है। उपरोक्त तथ्यों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है जिससे जिम्मेदार आज भी अंजान बने बैठे हैं। ग्राम्य जीवन में परिवार की सेहत की चिंता के अलावा लोगों को अपने दुधारु पालतू पशुओं के सेहत के चिंता भी अब सताने लगी है । पहले संध्या के समय पशुओं के दूध निकलने के वक़्त उनके पास अलाव जलाया जाता था ताकी दूध कम नही हो पर उनमे मच्छर जनित रोगों के व्यापक प्रसार को देखते हुए अब उन्हें भी रातभर मच्छरदानी में रखा जा रहा है। वैसे भी आम आदमी मच्छर जनित रोग जैसे मलेरिया, डेंगू, चिकूनगुनिया, इंसेफेलाइटिस व कालाजार जैसी घातक बीमारियों की चपेट में बड़ी संख्या में आ रहे है । अगर हम बात करें चिकित्सा संसाधनों की तो इसकी जमीनी हक़ीक़त भी छुपी हुई नहीं है । गाँवों में कई बार समय से रोगों की पहचान अथवा इलाज नहीं मिलने से कई लोग असमय दम तोड़ देते। बावजूद इसके नगर पंचायत बकेवर तथा ग्राम पंचायतों द्वारा मच्छररोधी दवाओं या रसायनो का छिड़काव प्रशानिक तौर पर नहीं होता। बरसात के दिनों में आसपास पानी का जमावड़ा तथा नालियों में जमा गन्दा पानी , मच्छरों के प्रजनन दर में वृद्धि का बड़ा जरिया है । इनमे उनके लार्वा कि संख्या बहुत तेज गति से बढ़ती हैं । फिर भी इनकी रोकथाम के प्रयास नहीं किये जाते।
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