MOTHER’ S DAY: आगरा का लाल ताजमहल है मिसाल, मां की इच्छा पर बेटों ने बनवाया

भास्कर समाचार सेवा

आगरा का पहला यूरोपियन मकबरा एक मां की इच्छा पर बेटों ने बनवाया था।

अपने पति की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए एक मां ने मुगल साम्राज्य से मदद मांगी और फिर उनके बेटों ने मां की इच्छा पूरी करने के लिए पिता के किए ताजमहल की हुबहू कृति का मकबरा अपने पिता के लिए बनवाया। आगरा के एमजी रोड पर बना पहला यूरोपियन मकबरा जिसे रोमन कैथोलिक कब्रिस्तान कहते हैं, मां,पिता, पति और पुत्र के रिश्तों के अटूट प्रेम की निशानी है। हालांकि उपेक्षाओं के चलते पुरातत्व विभाग इसका ज्यादा प्रचार नहीं करता है और आगरा आकर भी पर्यटक इस मकबरे को देखने के लिए नहीं पहुंच पाते हैं। कुछ ही लोग इस मकबरे के बारे में जानते हैं। इस मकबरे को लाल ताजमहल भी कहा जाता है।

बेहद रोचक है लाल ताजमहल का इतिहास

शाहजहां ने अपनी पत्नी के लिए ताजमहल बनवाया था यह बात सब जानते हैं लेकिन अगर हम आप से कहेंगे कि किसी महिला ने अपने पति की इच्छा पूरी करने के लिए एक ताजमहल बनवाया तो आप हैरत में आ जाएंगे।लेकिन यह सच है और यह भी सच है की आगरा में दो ताजमहल हैं। एक को पुरुष ने महिला के प्यार में बनवाया है तो दूसरे को एक महिला ने अपने पति की अंतिम इच्छा पूरी करने की खातिर अपने बच्चों के माध्यम से बनवाया था। इस दूसरे ताजमहल को भारत में पहला इंग्लिश मैन(यूरोपियन) मकबरे का खिताब हासिल है।

रोमन कैथोलिक कब्रिस्तान नाम से है पहचान

आगरा की लाइफ लाइन मानी जाने वाली एम् जी रोड के दीवानी चौराहे पर स्थित रोमन कैथलिक कब्रिस्तान सिर्फ कब्रिस्तान नही है।इसकी सबसे ख़ास बात इसके अंदर मौजूद लाल ताजमहल है।पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इस स्मारक के बारे में इंटरनेट पर तो जानकारी मिल जाएगी पर कभी पर्यटन विभाग ने इसे मशहूर करने की कोई कोशिश नही की।आज क्षेत्रीय लोग ही इसके बारे में जानते हैं।यहां आने का कोई टिकट नही है पर फिर भी यहाँ पर्यटको की आमद न के बराबर रहती है।

जानिए मकबरे का पूरा इतिहास

स्मारक के इतिहास की जानकारी देने के लिए लगी पट्टिका के अनुसार अकबर के समय में दौलत राव सिंधिया ने सन 1799 में जॉन माइडनहिल नामक नीदरलैंड निवासी सिपाही को आगरा के किले का किलेदार नियुक्त किया था।बहादुरी और ईमानदारी के इनाम के रूप में सम्राट अकबर ने जॉन को तत्कालीन ठंडी सड़क यानी एमजी रोड पर यह जमीन उपहार में दी थी। जॉन आगरा में ताजमहल को देखकर प्रभावित था और उसकी इच्छा थी की मरने के बाद उसे भी ताजमहल जैसी इमारत के नीचे दफन किया जाए।

दफन होने के बाद बनाया गया मकबरा

21 जुलाई 1803 को जॉन की मृत्यु के बाद उसे इस जगह दफन कर दिया गया। जॉन के दफन होने के बाद उसकी पत्नी एलिस ने अकबर से उसका मकबरा बनवाने को कहा जिस पर अकबर ने उसे किले के निर्माण में बचे हुए लाल पत्थर और रेत दे दी। मां के प्यार और मेहनत को देखते हुए उसके पुत्रो ने अपने पिता की कब्र पर हूबहू ताजमहल जैसी छोटी इमारत बनवाई।

इतिहासकार राज किशोर के अनुसार शाहजहां ने पत्नी मुमताज के लिए ताजमहल जैसा खूबसूरत मकबरा बनवाया था। एलिस की मोहब्बत और हिम्मत की यह अनूठी कहानी बयान करने वाला यह मकबरा अब तक पहचान को मोहताज है।एलिस के बेटो का नाम तो इतिहास में भी नही मिलता पर असल में यह स्मारक महिला शक्ति की मिसाल है।ऑल सोल डे के दिन यहां क्रिश्चन समाज के लोग आते हैं और मोमबत्तियां जलाते हैं, अगर इस स्मारक की सही प्रसिद्धि हो तो यूरोपियन पर्यटक समेत ज्यादातर विदेशी इसे देखने जरूर आएंगे।

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