गुजरात में 27 फरवरी, 2002 को हुए गोधरा कांड और उसके आलोक में भड़के दंगों की जाँच के लिए गठित नाणावटी-शाह आयोग की रिपोर्ट बुधवार को विधानसभा में सरकार की ओर से प्रस्तुत कर दी गई। आयोग ने इस रिपोर्ट में गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों में लिप्तता के आरोपों पर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दी है। इसके साथ ही आयोग ने गुजरात दंगों में तत्कालीन मोदी सरकार के किसी मंत्री की लिप्तता के आरोपों को भी निरस्त कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि गुजरात में 27 फरवरी, 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन के समीप साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग की घटना घटी थी। इस घटना में अयोध्या से कारसेवा करके लौट रहे 59 कारसेवकों की मृत्यु हो गई थी। आरोप और जनभावना यह बनी थी कि गोधरा कांड पूर्वनियोजित षड्यंत्र था, जिसके चलते राज्य में अगले दिन 28 फरवरी से ही साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। लगभग चार महीनों तक गुजरात दंगों की आग में झुलसता रहा था। इन दंगों को लेकर काफी राजनीति हुई थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने तथा उनकी सरकार ने दंगों को रोकने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाए। आरोप यहाँ तक लगाए गए कि दंगे करवाने में स्वयं मोदी व उनकी पूरी सरकार शामिल थी।
गोधरा कांड और उसके बाद भड़के दंगों की जाँच के लिए नाणावटी-शाह आयोग का गठन किया गया था, जिसकी रिपोर्ट 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंपी गई थी, परंतु राज्य सरकार ने अब तक यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की थी। बुधवार को गृह राज्य मंत्री प्रदीपसिंह जाडेजा ने आयोग की जाँच रिपोर्ट सार्वजनिक की, जिसमें नरेन्द्र मोदी व उनके तत्कालीन मंत्रियों को दंगों में भूमिका के आरोपों पर पूर्णत: क्लीन चिट दी गई है। साथ ही भरत बारोट, दिवंगत हरेन पंड्या व दिवंगत अशोक भट्ट को भी क्लीन चिट दी गई है। रिपोर्ट में गुजरात दंगों के दौरान तीन आईपीएस अधिकारियों आर. बी. श्रीकुमार, संजीव भट्ट और राहुल शर्मा पर नकारात्मक भूमिका निभाने का आरोप लगाया गया है। रिपोर्ट में कांग्रेस सहित तमाम विरोधियों के इन आरोपों को भी निरस्त कर दिया गया है कि नरेन्द्र मोदी ने गोधरा कांड के बाद गोधरा जाकर एस-6 डिब्बे का मुआयना कर प्रमाणों को नष्ट करने का प्रयास किया था। नाणावटी-शाह आयोग की रिपोर्ट के अनुसार गोधरा कांड के बाद भड़के गुजरात दंगे पूर्वनियोजित षड्यंत्र नहीं थे।