भास्कर समाचार सेवा
मेरठ/हस्तिनापुर। महाभारत काल की साक्षी प्राचीन बूढ़ी गंगा के जीर्णोद्धार की सालों से मांग करने के बाद भी जीर्णोद्धार ना होने के कारण नेचुरल साइंस ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रियंक भारती ने बृहस्पतिवार से बूढ़ी गंगा किनारे अपना आमरण अनशन शुरू कर दिया है। नेचुरल साइंस ट्रस्ट के अध्यक्ष व हस्तिनापुर शोध संस्थान के समन्वयक प्रियंक भारती ने पिछले कई सालों से बूढ़ी गंगा का जीर्णोद्धार न होने पर कस्बे के कर्णघाट बूढ़ी गंगा किनारे पर अपना आमरण अनशन शुरू कर दिया है। इस दौरान प्रियंक ने बताया, महाभारत कालीन प्राचीन ऐतिहासिक नगरी हस्तिनापुर में आज बूढ़ी गंगा की प्राचीन धारा पूरी तरह विलुप्त हो चुकी है, जिस पर अवैध कब्जे हो चुके हैं जबकि, यह धारा आज भी देश के लाखों लोगों की आस्था से जुड़ी हुई एक प्राचीन धारा है, जिसके जीर्णोद्धार के लिए उन्होंने शासन-प्रशासन के अधिकारियों से एक नहीं सैकड़ों बार मांग की और इसकी रूपरेखा तैयार कर उन्हें कई बार सौंपी। हर बार उन्हें प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा आश्वासन मिला, परंतु आज तक प्रशासनिक अधिकारियों ने बूढ़ी गंगा के जीर्णोद्धार के लिए कोई प्रयास नहीं किया। श्रद्धालु दीपदान और पिंडदान कर करते हैं स्नान प्रियंक ने बताया, हस्तिनापुर में यह वही प्राचीन बूढ़ी गंगा की धारा है, जो प्राचीन हस्तिनापुर से मिलकर बहती थी। जिसकी बाढ़ ने प्राचीन समय में हस्तिनापुर को तहस नहस किया। इसी प्राचीन बूढ़ी गंगा की धारा में क्षेत्र के लाखों लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर दीपदान और पिंडदान कर स्नान करते हैं। प्राचीन संस्कृति का यह एक अहम हिस्सा है अगर इसे नहीं बचाया गया तो हम अपनी एक और प्राचीन पहचान को हमेशा के लिए समाप्त कर देंगे। पहले की महाआरती, फिर बैठ गए अनशन पर बृहस्पतिवार को बूढ़ी गंगा किनारे महाआरती के बाद विधि विधान से पूजा अर्चना संपन्न होने के बाद उन्होंने अपना आमरण अनशन शुरु कर दिया। जिसमें वह अनशन जब तक जारी रखेंगे, अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगे, तब तक बूढ़ी गंगा के जीर्णोद्वार का प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा आश्वासन नहीं मिलेगा। बूढ़ी गंगा के जीर्णोद्धार से पर्यटन को मिलता बढ़ावा वन सेंचुरी क्षेत्र के बीच से होकर गुजरने वाली प्राचीन बूढ़ी गंगा की धारा हमेशा शांत स्वभाव में बहती है। इसकी एक धारा विलुप्त हो रही है, विलुप्त होती धारा को बचाने के लिए क्षेत्र के लोगों ने भी कई बार मांग की, परंतु किसी ने स्वीकार नहीं किया।