लेखपाल और कानूनगो के खिलाफ ग्रामीण किसानों ने किया प्रदर्शन

भास्कर समाचार सेवा
हाथरस/सिकंदराराव। जिले की सिकंदराराव तहसील के गांव नगला सकत में कुछ समय पूर्व चकबंदी हुई है। जिसमें किसानों का आरोप है कि लेखपाल वीरी सिंह और कानूनगो महेश के द्वारा चकबंदी के दौरान किसानों से पैसों की मांग की गई थी, जिन लोगों ने पैसे दे दिए उन्हें उनकी खराब जमीन के बदले अच्छी और कीमती जमीन आवंटित की गई और कागजों में वैल्यू कम दिखा कर पहले से भी ज्यादा दे दी गई और जिन लोगों के द्वारा उनकी सेवा नहीं की गई उन लोगों की अच्छी महंगी उपजाऊ जमीन के बदले उन्हें ऊसर और गड्ढा युक्त खेत दे दिए गए हैं। जिनकी कागजों में वैल्यू ज्यादा दिखाई गई है। एक गरीब ग्रामीण किसान रामगोपाल ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए बताया कि जब गांव में चकबंदी आई तो लेखपाल और कानूनगो ने उससे 50 हजार रुपयों की मांग की थी और बदले में ज्यादा मालियत की जमीन देने का लालच दिया पर उसकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह इतना पैसा दे सकता तो लेखपाल और कानूनगो के द्वारा उसकी उपजाऊ और मंहगी जमीन के बदले उसे ऊसर खेत आवंटित कर दिए गए हैं। जिसकी वेल्यू कम है पर कागजों में ज्यादा दिखा दी है। जो उसकी उपजाऊ जमीन थी वह उन लोगों को आवंटित कर दी गई जिन लोगों ने सुविधा शुल्क दिया था और कागजो में वैल्यू कम दिखा कर उन लोगो को पहले से भी ज्यादा जमीन दी गई है। उसके द्वारा लेखपाल और कानूनगो के इस अन्याय पूर्ण कार्य के खिलाफ सक्षम अधिकारियों के आगे अपील भी की गई लेकिन उसकी आवाज अधिकारियों के आगे नक्कारखाने में तूती के समान रही और उसकी अपील को खारिज कर दिया गया। तब से वह अधिकारियों की चौखट पर दर-दर भटक रहा है लेकिन उसे न्याय नहीं मिल रहा है। यह तो रामगोपाल के साथ हुए कार्य की एक बानगी थी। ज्यादातर ग्रामीण किसान लेखपाल और कानूनगो के कार्य से पीड़ित हैं। गांव के अन्य ग्रामीणों ने भी बताया की गरीब किसान रामगोपाल के साथ वाकई में लेखपाल वीरी सिंह और कानूनगो महेश के द्वारा अन्याय किया गया है। लेखपाल और कानूनगो के इस अन्याय पूर्ण कार्य के खिलाफ आज ग्रामीणों का आक्रोश फूट पड़ा और उन्होंने लेखपाल बीरी सिंह और कानूनगो महेश के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया है और चेतावनी दी है कि अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो वे जल्दी ही जिला मुख्यालय पर धरना देंगे। अब देखना यह होगा कि लेखपाल कानूनगो के द्वारा किए गए किसानों के साथ इस अन्याय को अधिकारी कब तक देख पाते हैं और ग्रामीण किसानों को कब तक राहत मिलती है ?

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