वैश्विक महामारी के दौर से निकल कर सामान्य जीवन की ओर लौटते भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य, संरक्षा और सुरक्षा महत्वपूर्ण आधारीय विषय है। इस दिशा में बढ़ने का प्रगतिशील तरीका यही है कि अनुसंधान तथा वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी नवाचारों में अंतर्निहित ऐसे पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण जो उपभोक्ताओं को बुनियादी ढांचा, संसाधन, विकल्प और उनके स्वास्थ्य तथा सुरक्षा जोखिमों का ध्यान रखने वाली नीतियां उपलब्ध कराए।
डॉ. रोहन सावियो सिकेरा ने उल्लेख किया कि किसी भी तरह के व्यसन के मामले में क्षति में कमी लाना हमेशा महत्वपूर्ण रहा है – चाहे वह सिगरेट पीना हो या कोई नशीला द्रव हो या वास्तव में किसी भी प्रकार की लत हो। “लोगों की हमेशा से यह प्रवृत्ति रही है कि वे जो भी कर रहे हैं उसे जारी रखें क्योंकि आदतों को छोड़ना बहुत मुश्किल होता है। जहां तक निकोटिन का संबंध है, इसकी व्यसनी प्रकृति और धूम्रपान या तम्बाकू के किसी भी रूप में निकोटीन का सेवन करने से जुड़ी मनोदैहिक विशेषताओं के कारण यह लोगों के दिमाग में एक बहुत ही प्रबल रासायनिक प्रतिक्रिया करता है जिसके कारण उन्हें संतुष्टि प्रदान करने वाली कोई चीज छोड़ने में बहुत कठिनाई होती है। मस्तिष्क के भीतर रासायनिक और आणविक स्तर पर, यह लगभग किसी संरचना में एम्बेडेड सॉफ़्टवेयर को तोड़ने जैसा है। इसलिए, नीतियां ऐसी होनी चाहिए जो इन रासायनिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठा सकें और इसी कारण ऐसी नीति बनाई जानी चाहिए जो किसी व्यक्ति को उस नीति को स्वीकार कर पाने और अपने व्यसन से धीरे-धीरे दूर होने का अवसर दे।
ऐसा ही एक दिशात्मक कदम देश को धूम्रपान की घातक आदत से छुटकारा दिलाना है। यह सिद्ध हो चुका है कि धूम्रपान व्यवहार संबंधी ऐसा विकार है जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। इसका आदी व्यक्ति न केवल स्पष्ट रूप से खतरनाक स्वास्थ्य जोखिम उठाता है, बल्कि सामाजिक दबाव के रूप में तीव्र मनोवैज्ञानिक प्रभाव से भी पीड़ित होता है। लंबे समय से चली आ रही आदत वाले मामलों में इससे छुटकारे के लिए जबरदस्त इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, किंतु दुख की बात है कि धूम्रपान के आदी बहुत से लोगों में इसका अभाव होता है और इसीलिए वे बहुत चाहने के बावजूद इसे छोड़ने में असमर्थ रहते हैं। ऐसी स्थिति में इस आदत को छोड़ने की इच्छा रखने वालों को जिस बात से मदद मिलती है वह है चिकित्सकीय रूप से स्वीकृत ऐसे वैकल्पिक उत्पादों की उपलब्धता जिनसे नुकसान/जोखिम न हो अथवा कम हो। बेहतर स्वास्थ्य हर किसी का विशेषाधिकार है और कानूनी रूप से स्वीकृत उम्र में धूम्रपान करने वालों को स्वस्थ जीवन और जीवन शैली के लिए सक्षम करने की दिशा में यह पहला कदम है। कोई भी व्यसन केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि एक ऐसी समस्या है जिसका शिकार पूरा परिवार होता है और घातक सिगरेट के ये विकल्प उपलब्ध होने से उपयोगकर्ता के पास सिगरेट की ओर वापस लौटने से बच निकलने तथा शीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर पाने का रास्ता मौजूद होने का भारी फायदा होता है।
इकोनॉमिक टाइम्स द्वारा हाल ही में आयोजित एक पैनल डिस्कशन में महाराष्ट्र के राज्यपाल के मानद सलाहकार चिकित्सक एवं जसलोक अस्पताल, सेंट एलिजाबेथ अस्पताल, एस.एल. रहेजा अस्पताल, और होली फैमिली अस्पताल में वरिष्ठ सलाहकार चिकित्सक डॉ. रोहन सावियो सिकेरा और ब्रिटेन में टेक ह्विस्परर के संस्थापक तथा दि टेक ह्विस्परर के लेखक जसप्रीत बिंद्रा ने एक नवाचार-संचालित अर्थव्यवस्था में विक्रेताओं और खरीदारों के बीच की खाई पाटने और एक विकल्प के रूप नशे की लत लगाने वाले उत्पादों तथा सेवाओं की तुलना में सुरक्षित उत्पाद प्रस्तुत करने वाले पहलुओं पर चर्चा की।
मेरा मानना है कि वर्तमान नीतियों में किसी व्यक्ति के भीतर होने वाले रासायनिक और शारीरिक परिवर्तनों को ध्यान में नहीं रखा गया है। इसलिए, नीतिगत निर्णय लेने से संबंधित टिप्पणीकारों अथवा संघ के लिए इसे समझना और इन बातों को महत्व देने के संबंध में उचित चर्चा का होना बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि, हालांकि यह समझना महत्वपूर्ण है कि नैदानिक अनुसंधान और नुकसान कम करने वाले अध्ययनों में इन्हें 90 से 95 प्रतिशत ज्यादा सुरक्षित विकल्प पाया गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने विनियमन के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों की ही तरह नुकसान में कमी लाने वाले उत्पादों को चिकित्सक के नुस्खे के आधार पर फार्मेसी के बुनियादी ढांचे से जोड़ा जा सकता है।
भविष्य में, व्यसन उपचार योग्य प्रतीत होता है लेकिन नुकसान कम करने वाली तकनीकों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में सहायक प्रभावी डिजिटल स्वास्थ्य पहल भी इसी के साथ होगी। व्यसनों की समस्या का समाधान नवीनतम तकनीकी प्रगति का उपयोग करते हुए जागरूकता बढ़ाने और लोगों को शिक्षित करने में निहित हो सकता है।