घूंघट की ओट से निकलकर हैंडपंप मिस्त्री बनीं शीला

64 साल की उम्र में रोजाना साइकिल से तय करती हैं 80 किलोमीटर का सफर
कबरई ब्लाक के 18 गांव में 500 हैंडपंप सुधारे गांव में 25 लड़कियों को साइकिल चलाना भी सिखाया
दैनिक भास्कर

महोबा : ‘मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनमें जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलो से उड़ान होती है’। यह पंक्तियां शीला पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। 64 साल की उम्र में भी जुनून सिर चढ़कर बोल रहा है। हैंडपंप मिस्त्री बनकर अब 500 हैंडपंप की मरम्मत कर चुकी हैं। महिलाओं को भी यह हुनर सिखाने में जुटी हुई हैं। गांव में 20 से 25 लड़कियों को साइकिल चलाना भी सिखा चुकी हैं।


कबरई ब्लाक के तिंदौली गांव की रहने वाली शीला का विवाह वर्ष 1966 में हो गया था। उस वक्त उनकी उम्र नौ साल थी। 16 साल की उम्र में उन्होंने पुत्र को जन्म दिया। पुत्र के जन्म के दो साल बाद पति की मौत हो गई। कुछ दिन बाद ससुराल वालों ने प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। वह अपने मायके पनवाड़ी चली गई। 13 साल वह अपने मायके में रहीं। वहीं उन्होंने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की, फिर अपनी ननद के साथ तिंदौली गांव आ गई। वर्ष 2000 में यूनिसेफ की आरे से हैंडपंप मरम्मत का प्रशिक्षण दिया गया। संस्था से साइकिल व टूल्स भी मिले।
शीला बताती हैं कि लोकलाज की वजह से गांव के बाहर तक वह साइकिल लेकर पैदल जाती थीं। घूंघट भी डालकर साइकिल चलाती थीं। आत्मनिर्भर बनकर अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के जज्बे ने उन्हें घूंघट की ओट से बाहर कर दिया। किसी की परवाह किए बिना वह घर से ही साइकिल पर बैठकर हैंडपंप मरम्मत का काम करने जाती थी। साइकिल से रोजाना 70 से 80 किलोमीटर का सफर तय करती थीं। ब्लाक के 18 गांव में 500 से ज्यादा हैंडपंप की मरम्मत का काम किया है। हैंडंपप की मरम्मत में उन्हें 150 से 250 रूपए तक मिलते थे। वर्ष 2018 तक उन्होंने हैंडपंप मरम्मत का काम किया। किसी भी सरकारी विभाग से कोई मदद न मिलने से काम बंद कर दिया है, लेकिन महिलाओं को निःशुल्क प्रशिक्षण दे रही है। गांव की 25 लड़कियों को साइकिल चलाना भी सिखा चुकी हैं। पुत्र होमगार्ड है। शीला एक संस्था के साथ जुड़कर काम कर रही है, जिससे घर का खर्च आसानी से चल जाता है।
जिला प्रोवेशन अधिकारी अशोक मिश्र ने बताया कि मिशन शक्ति अभियान के तहत महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम किया जा रहा है। शीला महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं। बढ़ती उम्र भी उनका जज्बा नहीं डिगा सकी। वह महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में सराहनीय काम कर रही हैं।

मुझे भी गिनो अभियान में बनी भागीदार
शीला बताती हैं कि वर्ष 1995 में मध्य प्रदेश के दमोह में महिला सशक्तीकरण के लिए ‘मुझे भी गिनो’ अभियान में चलाया गया। इसमें एमपी-यूपी के बुंदेलखंड के 14 जिलों को शामिल किया गया। उन्होंने इसमें सहभागिता की। इसके बाद वर्ष 2000 में बुंदेलखंड के सभी जिलो में साइकिल यात्रा निकाली गई। इसमें भी वह शामिल हुईं। इसके अलावा गांव में 20 से 25 लड़कियों को साइकिल चलाना भी सिखा चुकी हैं।

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