हम साहित्य का नहीं, साहित्य हमारा संरक्षण करती हैं: चंद्र प्रताप सिंह ‘प्रताप राज’

आज हम रूबरू हो रहें हैं चन्द्र प्रताप सिंह जी से, जिन्हें प्रताप राज के नाम से काफी शोहरत हासिल है। आप सोशल ऐक्टिविस्ट, साहित्य प्रेमी और बुंदेलखंड लिटरेचर फेस्टिवल के संस्थापक एवं आयोजक हैं। बुंदेलखंड के सोशल सर्कल में चंद्र प्रताप सिंह उर्फ ​​प्रताप राज (Chandra Pratap Singh) कोई नया नाम नहीं है। आप एक शोधकर्ता भी हैं और प्रसिद्ध बुंदेलखंड साहित्य महोत्सव का चेहरा हैं, जिसने अपना लगातार दूसरा वर्ष पूरा किया है और इस वर्ष एक बार फिर बुन्देलखण्ड में साहित्य और संस्कृति का मंच सज चुका हैं। आने वाली पीढ़ियों के लिए आप भारतीय विरासत और साहित्य को सँजोने के जोरदार समर्थक है। हमने प्रताप राज जी से BLF यानि बुंदेलखंड लिटरेचर फेस्टिवल (Bundelkhand Literature Festival) के विभिन्न पहलुओं और वर्तमान में इसकी तर्कसंगतता के बारे में बात की। पेश हैं, उनसे बातचीत के कुछ खास अंश-

बुंदेलखंड लिटरेचर फेस्टिवल जैसा कुछ शुरू करने की जरूरत आपको क्यों महसूस हुई?

उत्तर: BLF की अवधारणा के साथ आने के पीछे दो बहुत ही बुनियादी कारण हैं। सबसे पहले हमारे पास जो साहित्यिक विरासत है, उसके लिए मेरा सम्मान और प्यार है। मैं इस क्षेत्र में काफी समय से शोध कर रहा हूं। हमारे पास भारतीय साहित्य की इतनी समृद्ध नींव है। हमारे लेखकों और कवियों ने ऐसे समय में अनुकरणीय सामग्री लिखी है जब अधिकांश सभ्यताओं को साहित्य का वास्तविक अर्थ मिलना बाकी था। बुंदेलखंड ने साहित्य के क्षेत्र में कुछ कालातीत किंवदंतियाँ दी हैं। मैं चाहता हूं कि न केवल वर्तमान बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी उनके कार्य व रचनाओ से अपने ज्ञान को बढ़ाने का मौका मिले। मेरा मानना यह भी हैं कि, हम साहित्य व कला का संरक्षण नहीं करते हैं, अपितु साहित्य हमारा संरक्षण करती हैं, समाज का संरक्षण करती हैं।

बुंदेलखंड लिट फेस्ट का पहला संस्करण का आयोजन करना कितना मुश्किल था? और प्रतिक्रिया कैसी थी?

उत्तर: मुझे लगता है कि अगर कोई बड़ा प्रभाव पैदा करना चाहता है तो प्रयासों को उस स्तर से मेल खाना होगा। लेकिन दिन के अंत में जो मायने रखता है वह यह है कि प्रयास फलदायी होते हैं। मैं चाहता था कि आने वाली पीढ़ी हमारे समृद्ध अतीत को जाने और उसकी प्रशंसा करे। हम अतीत और भविष्य के बीच की कड़ी हैं। हम भविष्य के लिए मूल्यवान अतीत को संरक्षित करने वाले स्रोत हो सकते हैं। हम वर्तमान पीढ़ी में बहुत रुचि पैदा करने में सक्षम थे। हमारे इस साहित्य महोत्सव में हर उम्र के साहित्य प्रेमी शामिल हुए।

बुंदेलखंड लिटरेचर फेस्टिवल के बारे में और बताएं?

उत्तर: यह तीन दिवसीय आयोजन है जो न केवल कई प्रसिद्ध लेखकों और कवियों के कृतियों  पर प्रकाश डालता है बल्कि एक साझा मंच भी प्रदान करता है जहां स्थापित और उभरते साहित्यकार सामूहिक रूप से सामाजिक, मौलिक और शोध-विशिष्ट विषयों पर चर्चा कर सकते हैं। इसका पहला संस्करण वर्ष 2020 में आयोजित किया गया था और इस वर्ष इसका आयोजन अक्टूबर में सुनिश्चित हुआ है। बुंदेलखंड साहित्य महोत्सव के कामकाज के तरीके के बारे में बात करें तो यह एक छत के नीचे अनेकता में एकता की तरह है। जहां बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि पूरे भारत के साहित्यकारों और कला प्रेमियों का खुले दिल से स्वागत किया जाता है और कहीं से भी जमीनी सभ्यताओं से साहित्य जगत, कला जगत, सिनेमा जैसे पूरे देश के मूल और शोध के नजरिए पर चर्चा होती है।

साथ ही, बीएलएफ बुंदेलखंड क्षेत्र के किसानों द्वारा सामना किए जाने वाले विभिन्न कृषि मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और उन्हें कृषि-उद्योग, प्रौद्योगिकी और नीतियों में नई प्रगति से परिचित कराने के लिए एक किसान-सम्मेलन भी आयोजित करता है। यह किसानों के सामने आने वाली आधुनिक कृषि समस्याओं को हल करने का एक प्रयास है, ठीक उसी तरह जिस तरह से साहित्य, संस्कृति और कला-प्रेमियों ने व्यापक शोध कर इस बहुमूल्य विरासत को संरक्षित किया है।

सुना हैं आप किसानों के लिए भी कार्य कर रहें हैं? थोड़ा इस पर भी बताएं।

उत्तर: जी, सही सुना हैं आपने। मैं आपको बात दूँ कि बुंदेलखंड क्षेत्र में मौसम और कृषि के आधुनिकीकरण की कमी के कारण किसानों को यहाँ भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसी संदर्भ में बुंदेलखंड के किसानों की विभिन्न कृषि संबंधी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हमने ने किसान एग्रो मार्ट (KAM) की स्थापना की है। बदलते मौसम के मिजाज से जूझ रहे किसानों को एग्रो मार्ट के माध्यम से मदद मिल सके। जिसके तहत किसानों को एक छत के नीचे सभी सुविधाएं मुहैया कराने का काम किया जा रहा है। इसके साथ ही बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव में किसान संगोष्ठी का पृष्ठ जोड़कर हमने इसे पूर्णतः बुन्देलखण्ड के मूल निवासियों एवं आमजन को सौंप दिया है।

आपने कुछ स्कूलों को भी गोद लिया हैं?

उत्तर: हाँ, हमने कुछ विद्यालयों को भी गोद लिया हैं। हमने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को गांवों और कस्बों में प्रभावी रखने और शिक्षा को प्राथमिक आवश्यकता मानते हुए बच्चों को एक महत्वपूर्ण शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाने के लिए ये कदम उठाया हैं। जिसके तहत हमने शासकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय (चौमासी, उत्तराखंड), शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय (जलतल्ला, उत्तराखंड) और शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, सीता गांव (भरतपुर, राजस्थान) एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय बन्देशरा (ललितपुर, उत्तर प्रदेश) को गोद लिया है ताकि वे बुनियादी शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने में यथासंभव भाग ले सकें।

साथ ही शिक्षा के क्षेत्र मे ही हमने साइलेंट चैंबर फाउंडेशन की स्थापना की, जिसके माध्यम से कम उम्र में बच्चों को नैतिक मूल्यों को विकसित करना का काम किया जाता है।

क्या आपको लगता है कि इस तरह की अवधारणा आधुनिक तकनीक-प्रेमी पीढ़ी के साथ सफल होगी, जो साहित्य में शायद ही दिलचस्पी रखती है?

उत्तर: यह एक गलत धारणा है कि यह पीढ़ी हमारी समृद्ध विरासत को पसंद नहीं करेगी। हमें किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए। मैंने एक बहुत ही युवा भीड़ देखी है, जिन्होंने बुंदेलखंड लिटरेचर फेस्टिवल में भाग लिया है और इसका आनंद लिया है। समारोह में कई नामी हस्तियां भी शामिल हुईं। उनकी उपस्थिति के साथ फेस्टिवल को रोशन करने वाले नामों में मेत्रैयी पुष्पा, पद्मश्री कैलाश मदबैया, ऋचा अनिरुद्ध, अंकिता जैन, नवीन चौधरी, अकबर और आजम कादरी, प्रह्लाद अग्रवाल, इंद्रजीत सिंह, इंदिरा दांगी , गीत चतुर्वेदी, विवेक मिश्रा, सुष्मिता मुखर्जी, डॉ, शरद सिंह, नवीन कुमार, दीपक दुआ,   महेंद्र भीष्म आदि शामिल हैं।

इस साल का बुंदेलखंड साहित्य महोत्सव का आयोजन कब हैं और इससे आपकी क्या उम्मीदें हैं?

उत्तर: इस वर्ष तीन दिवसीय साहित्य महोत्सव का आयोजन 14 अक्टूबर से लेकर 16 अक्टूबर तक हैं। इस वर्ष भी लोक संस्कृतियों, साहित्य, सिनेमा और कला जगत के साथ-साथ राजनीति जगत की नामचीन हस्तियाँ फेस्टिवल मे शिरकत कर रहीं है।

मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश के माननीय उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक जी के इस कार्यक्रम में शामिल होने की उम्मीद है। इसके अलावा कई उल्लेखनीय अतिथि जैसे प्रख्यात लेखिका मैत्रेयी पुष्पा, कवि एवं फिल्म गीतकार आलोक श्रीवास्तव, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निदेशक पवन कुमार, बॉलीवुड अभिनेत्री और लेखिका सुष्मिता मुखर्जी, बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक व नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, जलपुरुष राजेंद्र सिंह, फिल्म समीक्षक दीपक दुआ व विष्णु शर्मा, द लल्लनटॉप के संस्थापक-संपादक सौरभ द्विवेदी, कवयित्री सोनरूपा विशाल, नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक पंकज चतुर्वेदी, व्यंगकार गिरीश पंकज, साहित्यकार कवि अशोक वाजपेयी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन के महानिदेशक संजय द्विवेदी, प्रशासनिक अधिकारी तरुण भटनागर, शशांक गर्ग, उपन्यासकार सत्य व्यास, ऐक्टर अशोक पाठक आदि कई हस्तियाँ शामिल हो सकती हैं। मैं काफी उत्साहित हूँ और हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह पैमाना पिछले वाले से बड़ा होगा।

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