लद्दाख में भारत का चीन के साथ कई महीनों से गतिरोध चल रहा है. भारतीय सेना ने चीन को मुंहतोड़ जवाब भी दिया है. ची एक चालबाज देश है. यह हमेशा ऐसे काम करता है जिससे उसके पड़ोसी देशों को तकलीफ हो. अब चीन एक और ऐसा काम करने जा रहा है, जिससे बांग्लादेश और भारत के कई पूर्वोत्तर राज्यों में सूखे जैसे हालात पैदा हो जाएंगे. खबर आई है कि ड्रैगन तिब्बत से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी या यारलुंग जांगबो नदी की निचली धारा पर भारत से लगती सीमा के करीब विशालकाय बांध बनाने जा रहा है. यह बांध कितना बड़ा होगा कि इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चीन में बने दुनिया के सबसे बड़े बांध थ्री जॉर्ज की तुलना में इससे तीन गुना ज्यादा पनबिजली पैदा की जा सकेगी. चीन को तो बिजली मिल जाएगी लेकिन चीन के इस विशाल आकार के बांध से दूसरे देशों के लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी
बता दें कि तिब्बत स्वायत्त इलाके से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के जरिए देश की सीमा में प्रवेश करती है. अरुणाचल प्रदेश में इस नदी को सियांग कहा जाता है. इसके बाद यह नदी असम पहुंचती है. जहां इसे ब्रह्मपुत्र कहा जाता है. असम से होकर ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में प्रवेश करती है. ब्रह्मपुत्र को भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश के लिए जीवन का आधार माना जाता है और लाखों लोग अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर हैं.
चीन के सरकारी भोंपू ग्लोबल टाइम्स ने संकेत दिया है कि यह बांध तिब्बत के मेडोग काउंटी में बनाया जा सकता है जो भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा के बेहद पास है. चीन पहले ही ब्रह्मपुत्र नदी पर कई छोटे-छोटे बांध बना चुका है. हालांकि नया बांध आकार में महाकाय होने जा रहा है. यह नया बांध इतना बड़ा होगा कि इससे थ्री जॉर्ज बांध की तुलना में तीन गुना बिजली पैदा की जा सकती है
माना जा रहा है कि इस नए बांध को चीन के नैशनल सिक्यॉरिटी को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है. चीन के पॉवर कंस्ट्रक्शन कोऑपरेशन के चेयरमैन और पार्टी के सेक्रेटरी यान झियोंग ने कहा कि ताजा पंचवर्षीय योजना के तहत इस बांध को बनाया जाएगा. यह योजना वर्ष 2025 तक चलेगी. उन्होंने कहा कि अब तक के इतिहास में पहले ऐसा कोई भी बांध नहीं बना है. यह चीन के हाइड्रो पॉवर इंडस्ट्री के लिए ऐतिहासिक मौका है. इस बांध से 300 अरब kWh बिजली हर साल मिल सकती है.
उधर, विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय नदियों के मामले में चीन को भारत पर रणनीतिक बढ़त हासिल है. लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘चीन ने तिब्बत के जल पर अपना दावा ठोका है जिससे वह दक्षिण एशिया में बहने वाली सात नदियों सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावडी, सलवीन, यांगट्जी और मेकांग के पानी को नियंत्रित कर रहा है. ये नदियां पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, म्यामांर, लाओस और वियतनाम में होकर गुजरती हैं. इनमें से 48 फीसदी पानी भारत से होकर गुजरता है
चीनी सेना का निर्माण दस्ता वर्ष 2017 में अपनी सड़क का विस्तार करके जोंपलरी पहाड़ी तक रास्ता बनाना चाहती थी. यह रास्ता भारतीय सेना के डोका ला पोस्ट के पास से होकर जाता है जो सिक्किम और डोकला की सीमा के बीच में स्थित था. भारतीय सेना ने चीन के निर्माण दस्ते को मौके पर जाकर काम करने से रोक दिया था. दरअसल, अगर चीन की पहुंच जोमपेलरी पहाड़ी इलाके तक हो जाती तो वह भारत के चिकेन नेक कहे जाने वाले सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर अब सीधी नजर रख सकता था. रणनीतिक रूप से बेहद अहम सिलिगुड़ी कॉरिडोर ही भारत की मुख्यभूमि को पूर्वोत्तर के राज्यों से जोड़ता है. इसी चीनी खतरे को भांपते हुए भारतीय सेना ने चीनी सड़क को रोक दिया था.