होटलों और रिसार्ट का भी इंडियन पालिटिक्स में अहमं किरदार

-विधायकों को साथ रखने का सहारा बनते है आलीशान रिसार्ट
– कई राज्यो में विधायकों को रोकने के लिए हुआ इसका इस्तेमाल
योगेश श्रीवास्तव

लखनऊ। मध्य प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए जिस प्रकार विधायकों को बचाने और साथ बनाए रखने के लिए आलीशान रिसार्ट और होटलों का जो सहारा लिया जा रहा है। उसे देखकर लगता है कि किसी भी राजनीतिक दल को अपने चुने हुए विधायकों से ज्यादा भरोसा रिसार्ट और होटलों पर ही है।

इसीलिए जब भी इस तरह का कोई राजनीतिक घटनाक्रम होता है या अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न होती है तो हर पार्टी अपने विधायकों को सहेजने में लग जाती है। पिछले दिनों तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गृहमंत्री अमित शाह हो पत्र लिखकर अपने विधायकों को बंधक बनाए जाने का आरोप लगाते हुए उन्हे रिहा कराए जाने की मांग की है। मध्य प्रदेश मे ंजहां भाजपा ने अपने107में 105 विधायकों को दिल्ली मनेसर और गुरूग्राम में भेजा तो कांग्र्रस ने अपने 80 विधायकों को जयपुर भेजा।

कांग्रेस के बागी 20 विधायक पहले से ही बंगलुरू के एक होटल में है।  मध्यप्रदेश की राजनीति में इस तरह का जो भी घटनाक्रम सामने आ रहा है वह देश की राजनीति के लिए नया नही है। इससे पहले भी इस तरह के कई अवसर आए। इंडियन पालिटिक्स में रिसार्ट और होटल का प्रयोग कोई नया नहीं है। पिछले लगभग चार दशकों से चली आ रही इस परंपरा का श्रीगण्ेाश हरियाणा से हुआ था। अस्सी के दशक में वर्ष 1982 में हरियाणा में 90 सदस्यों वाली विधान सभा में 37 विधायक इनेलों के और कांग्रेस के 36 विधायक निर्वाचित हुए थे।

बहुमत की संख्या न होने के बावजूद वहां के तत्कालीन राज्यपाल गणपतराव देवजी तपासे ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रिक किया था। बहुमत के अभाव को देखते हुए उस समय वहां देवीलाल ने अपने दल और भाजपा के कुल 48विधायकों को दिल्ली के एक होटल में शिफ्ट कर दिया था। बावजूद इसके देवीलाल बहुमत की जादुई संख्या नहीं जुटा पाए जो भजनलाल ने गठबंधन की सरकार बना ली थी।

राजनीतिक तथ्यों के अनुसार विधायकों को बचाने और साथ बनाए रखने की गरज से रिसार्ट और होटल पालिटिक्स का प्रयोग अब तक नौ राज्यों मे चौदह बार किया जा चुका है। इनमे से नौ बार तो यह स्थिति कांग्रेस और भाजपा के बीच देखने को मिली जबकि एक बार यह इस स्थिति का सामना क्षेत्रीय दल को भी झेलनी पड़ी। विधायकों को बचाने के लिए रिसार्ट और होटल को सबसे अधिक सुरक्षित माना जाता है। हरियाणा के बाद वर्ष 1983 में कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार थी,तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हेगड़े सरकार गिराना चाहती थीं।

इससे बचने के लिए हेगड़े ने अपने 80 विधायकों को बेंगलुरु के एक रिसॉर्ट में भेज दिया। अपने विधायकों को बचाए रखने की रणनीति में हेगड़े कामयाब रहे और उन्होंने विधानसभा में अपना बहुमत साबित कर दिया था। कर्नाटक में ही वर्ष 2018 में विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। भाजपा 104 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी। राज्यपाल ने भाजपा के बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ली। लेकिन तभी सुप्रीम कोर्ट ने 48 घंटे के अंदर येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने का आदेश दिया।

हॉर्स ट्रेडिंग से बचाने के लिए कांग्रेस.जेडीएस ने अपने विधायकों को हैदराबाद के एक होटल में भेज दिया। हालांकि फ्लोर टेस्ट से पहले ही येदियुरप्पा ने इस्तीफ ा दे दिया और कांग्रेस.जेडीएस गठबंधन की सरकार बनी। कर्नाटक में बीते साल 2019 में कांग्रेस.जेडीएस गठबंधन की सरकार से 17 विधायकों ने अचानक इस्तीफ ा दे दिया। इन विधायकों को मुंबई के एक होटल में ठहराया गया। कुछ दिन बाद इन्हें गोवा के एक रिसॉर्ट में शिफ्ट कर दिया गया। 23 जुलाई 2019 को कुमारस्वामी सरकार को बहुमत साबित करना था लेकिन ये विधायक वहां भी नहीं पहुंचे और कांग्रेस.जेडीएस की सरकार गिर गई। इसके बाद येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी।

भाजपा ने भी फ्लोर टेस्ट से पहले अपने सभी विधायकों को बेंगलुरु के एक होटल में ठहराया था। इन 17 में से 15 विधायकों ने दोबारा चुनाव लड़ा जिसमें से 11 जीतकर आए।  वर्ष 1984 में तेलुगु देशम पार्टी की एनटीआर के नेतृत्व वाली सरकार थी। एनटीआर के देश से बाहर होने के कारण तत्कालीन राज्यपाल ठाकुर रामलाल ने टीडीपी के ही एन. भास्कर राव को मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन, भास्कर राव के मुख्यमंत्री बनते ही पार्टी में अंदरुनी कलह पैदा हो गई। अमेरिका से लौटने से पहले ही एनटीआर ने अपने सभी विधायकों को बेंगलुरु भेज दिया। एक महीने में ही भास्कर राव को इस्तीफ ा देना पड़ा और एनटीआर पुन: मुख्यमंत्री बन गए। आन्ध्रप्रदेश मे ंतख्ता पलट का यह ग्यारह साल बाद फिर तब देखने को मिला जब एनटीआर को अंदरुनी कलह का सामना करना पड़ा।

इस बार उनके सामने उनके ही दामाद चंद्रबाबू नायडू थे। नायडू ने अपने समर्थक विधायकों को हैदराबाद के वायसराय होटल भेज दिया।  हालांकि इस बार एनटीआर की कोई कूटनीति काम नहीं आई और 1 सितंबर 1995 को उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू पहली बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उठापटक का यह खेल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और और गृहमंत्री अमित शाह के गृहराज्य गुजरात में 1996 में देखने को मिला। मुख्यमंत्री रहे शंकर सिंह वाघेला पहले भाजपा के नेता थे लेकिन 1996 में उन्होंने भाजपा छोड़कर राष्ट्रीय जनता पार्टी नाम से अपनी पार्टी बनाई। गुजरात में उस समय भाजपा की ही सरकार थी जिसमें केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री थे। वाघेला बागी हो गए। उन्होंने अपने 47 समर्थक विधायकों को मध्य प्रदेश के खजुराहो के एक होटल में भेज दिया। उसके बाद वाघेला ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बने। गुजरात में ही वर्ष 2017 में राज्यसभा की तीन सीटों पर चुनाव होने थे। दो सीटों पर भाजपा की जीत तय थी। इन दो सीटों में से एक पर अमित शाह और दूसरी पर स्मृति ईरानी उम्मीदवार थी।

तीसरी पर कांग्रेस के अहमद पटेल थे जिनकी जीत भी लगभग तय थी। लेकिन भाजपा ने कांग्रेस से बागी बलवंत राजपूत को अहमद पटेल के खिलाफ  खड़ा कर दिया। राज्यसभा चुनाव से पहले शंकर सिंह वाघेला के कांग्रेस छोडऩे से कई कांग्रेस विधायक भी बागी हो गए। कांग्रेस ने अपने 44 विधायकों को हॉर्स ट्रेडिंग से बचाने के लिए बेंगलुरु के ईगलटन रिजॉर्ट में बंद कर दिया। इन्हें 8 अगस्त को वोटिंग वाले दिन ही विधानसभा लाया गया। हालांकि काफ ी देर चली खींचतान के बाद अहमद पटेल ही जीते। अब बात बिहार की। वर्ष 2000 में विधानसभा चुनाव के बाद जब राजद.कांग्रेस विश्वास मत हार गए तो उसके बाद नीतीश कुमार को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। 3 मार्च को नीतीश कुमार ने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। विश्वास मत से पहले जदयू ने अपने विधायकों को पटना के एक होटल भेज दिया लेकिन उसके बाद भी नीतीश बहुमत साबित नहीं कर पाए और 10 मार्च को इस्तीफ ा दे दिया।

इसके बाद राबड़ी देवी दूसरी बार बिहार की मुख्यमंत्री बनीं। महाराष्ट्र में 1999 के विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार बनी। लेकिन तीन साल के अंदर ही महाराष्ट्र में सियासी उठापठक शुरू हो गई। कांग्रेस.राकांपा ने भाजपा.शिवसेना गठबंधन को रोकने के लिए अपने 71 विधायकों को मैसूर के एक होटल में ठहराया। यूपी के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में 9 कांग्रेस विधायक और भाजपा के २७ विधायकों ने तत्कालीन राज्यपाल केके पॉल से मिलकर तत्कालीन हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की मांग की।

इसके बाद भाजपा ने अपने 27 विधायकों को दो ग्रुप में जयपुर के होटलों भेजा। एक भाजपा.कांग्रेस ने एक.दूसरे पर खरीद फरोख्त का आरोप लगाया। कई दिनों तक चली उठापठक के बाद उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चुनाव हार गई और भाजपा की सरकार बनी। दक्षिण के आन्ध्रप्रदेश के बाद तामिलनाडु भी इससे अछूता नहीं रहा। दिसंबर 2016 में जयललिता की मौत के बाद तमिलनाडु में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया। एआईएडीएमके में खेमेबंदी से नाराज तत्कालीन मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम ने इस्तीफ ा दे दिया। इसके बाद जयललिता मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बेनामी

संपत्ति के मामले में सजा सुनाते हुए जेल भेज दिया। इसके बाद जयललिा ने पलानीसामी को मुख्यमंत्री नियुक्त किया। पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी गुट की वजह से जयललिता ने अपने 130 समर्थक विधायकों को चेन्नई के एक होटल भेज दिया। हालांकि कुछ समय बाद सदन में बहुमत के दौरान  पलानीसामी की जीत हुई।

गत वर्ष 2019 में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा.शिवसेना में गठबंधन था, लेकिन नतीजे आने के बाद शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद की मांग पूरी नहीं होने पर गठबंधन तोड़ दिया। बाद में राकांपा के अजित पवार भाजपा से मिले और आनन.फ ानन में देवेंद्र फ डऩवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार ने उप.मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। इसके बाद टूट के डर से शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा ने अपने विधायकों को मुंबई के एक आलीशान होटल में ठहरवाया। हालांकि इससे पहले भी इसी डर से शिवसेना और कांग्रेस के विधायकों होटलों ठहराया गया था। निर्दलीय विधायकों को भी गोवा के एक रिसॉर्ट में ठहराया गया था। हालांकि फ्लोर टेस्ट से पहले ही अजित पवार भी अलग हो गए और देवेंद्र फडनवीस ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद राज्य में शिवसेना.कांग्रेस.राकांपा गठबंधन की सरकार बनी।

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