केजरीवाल के लिए चुनौती- चुनावी संग्राम में सीटें भी जीतना है और चेहरा भी बचाना है

नई दिल्ली । आम आदमी पार्टी ने जिस कांग्रेस सरकार के खिलाफ आंदोलन कर राजनीति की सीढ़ियां चढ़ी, आज उसी कांग्रेस के साथ चार राज्यों में गठबंधन कर आप लोकसभा चुनाव लड़ रही है। इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल की चुनौती अपनी ईमानदार छवि को बरकरार रखने की है। जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़कर वह राजनीति में आए, आज खुद वह उन्हीं आरोपों में घिरे हैं। उनकी पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में करीब एक वर्ष से जेल में है। कहा जा सकता है कि अब आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल अपने सियासी चढ़ाव पर हैं। उन्होंने बीते 12 वर्षों में बगैर किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि या परिवार के नई पार्टी आप को राष्ट्रीय पटल पर लाकर खड़ा कर दिया है।

संगठन मजबूत करने से लेकर प्रचार और इंडिया गठबंधन के साथ चलना भी उनके सामने एक बड़ी चुनौती है। यह लोकसभा चुनाव उनके लिए सिर्फ राजनीतिक लड़ाई नहीं है बल्कि जीत के साथ जनता के बीच अपनी छवि को सही साबित करने की चुनौती है। दिल्ली में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। केजरीवाल लगातार तीन बार 2013, 2015 फिर 2020 में प्रचंड बहुमत लाकर दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं। केजरीवाल ने 2 अक्तूबर 2012 को राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की थी। नवंबर 2012 में आम आदमी पार्टी के नाम से दल की घोषणा की। 2013 में कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। हालांकि 49 दिन में यह सरकार गिर गई। वर्ष 2015 में दिल्ली में 70 में से 67 सीट जीतकर सरकार बनाई।

2020 में 62 सीट जीतकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। 2022 में पंजाब में 92 सीट जीतकर आप की सरकार बनी। गुजरात में पार्टी ने पांच विधानसभा और गोवा में 2 विधानसभा सीट पर जीत हासिल की। 2023 में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला।

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