गृह मंत्रालय ने किया खुलासा-उग्रवादी संगठन उल्फा का नया ठिकाना बना चीन!

उल्फा यानी यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम वामपंथी विचारधारा को मानने वाला संगठन है और उसका संबंध माओवादियों से भी है. जो असम समेत पूर्वोत्तर भारत में सक्रिय है. असम में सक्रिय इस प्रमुख आतंकवादी और उग्रवादी संगठन का उद्देश्य है कि यह सशस्त्र संघर्ष के जरिए असम को एक स्वतंत्र देश (स्टेट) बनाना चाहता है. भारत सरकार ने इसे वर्ष 1990 से प्रतिबंधित कर रखा है और इसे केन्द्र सरकार ने इसे एक ‘आतंकवादी संगठन’ के रूप में वर्गीकृत कर रखा है. अब इसने अपना नया ठिकाना चीन को बनाया है.

भारत सरकार और असम सरकार से बातचीत की खिलाफत करने वाला उग्रवादियों का संगठन उल्फा (आई) अब चीन में पनाह ले बैठा है. केंद्र सरकार की ओर से गुवाहटी ट्रिब्यूनल में एक हलफनामा दाखिल किया गया है, जिसमें कहा गया है कि उल्फा ने म्यामांर की जगह अब दक्षिणी चीन के रुइली में अपना ठिकाना बना लिया है. 

वहीं एक अन्य हलफनामे में असम सरकार की तरफ से कहा गया है कि सेना की 2019 में की गई कार्रवाई के बाद म्यामांर से संगठन के कैम्प्स तबाह हो गए थे. यही नहीं जो सदस्य बच गए थे, उन्होंने संगठन को इस एक्शन के बाद छोड़ दिया था.

सागैंग सब डिवीजन में उल्फा ने NSCN (k) के ज़रिए कई उग्रवादी कैंप तैयार किए थे. अब संगठन चीन बॉर्डर पर खुद को पोषित कर रहा है. राज्य सरकार ने सभी कैंपों की सूची के बारे में ट्रिब्यूनल से जानकारी साझा की है.

हलफनामे में ये भी जिक्र किया गया है कि वो आईटी के सदस्यों की मदद से वेब अटैक की प्लानिंग कर रहा था. जिससे ईडी जैसी भारतीय एजेंसियों के लिए खतरा पैदा हुआ.

जस्टिस प्रशांत कुमार डेका की अगुवाई वाले ट्रिब्यूनल को ये हलफनामा सौंपा गया है. ट्रिब्यूनल का काम इस संगठन पर प्रतिबंध जारी रखा जाए या नहीं इस पर फैसला करना है. हालांकि ट्रिब्यूनल हाल ही में इस संगठन को गैरकानूनी रखने के सरकार के फैसले पर सहमति जता चुका है. 

बता दें कि वर्ष 1990 की शुरुआत के साथ ही उल्फा ने कई हिंसक वारदातों को अंजाम देना शुरू दिया था. इसे अमेरिकी गृह मंत्रालय ने अन्य संबंधित आंतकवादी संगठनों की सूची में शामिल कर लिया है. संगठन के प्रमुख नेता परेश बरुआ (कमांडर-इन-चीफ), अरबिंद राजखोवा (चेयरमैन), अनूप चेतिया (जनरल सेक्रेटरी), प्रदीप गोगोई (वाइस चेयरमैन और असम सरकार की कस्टडी में) खुद को राजनीतिक व क्रांतिकारी संगठन से जुड़े लोग मानते हैं. कुछ समय पहले ही बांग्लादेश सरकार ने चेतिया को भारत के हवाले किया है.

भारतीय सेना ने इसके खिलाफ एक ऑपरेशन बजरंग शुरू किया था. सरकार का मानना है कि इस संगठन को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी (आईएसआई) और बांग्लादेशी खुफिया एजेंसी (डीजीएफआई) से मदद मिलती है. संगठन को चीन सरकार से भी मदद मिलती है. उल्फा वामपंथी विचारधारा को मानने वाला संगठन है और उसका संबंध माओवादियों से भी है. संगठन ने 1990 में अनिवासी ब्रिटिश व्यवसायी लॉर्ड स्वराज पॉल के भाई सुरेंद्र पॉल की हत्या कर दी थी. 1991 में एक रूसी इंजीनियर का अपहरण किए जाने के बाद उसकी हत्या भी कर दी गई थी. बाद में, 1997 में इसने अन्य लोगों के साथ एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ भारतीय कूटनीतिज्ञ का अपहरण कर हत्या कर दी. वर्ष 2003 में असम में कार्यरत 15 बिहारी मजदूरों की हत्या कर दी गई थी, जिनमें से कुछ बच्चे भी शामिल थे. जनवरी 2007 में, 62 हिंदी भाषी विशेषकर बिहारी मजदूरों की हत्या कर दी गई थी.

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