किन्नरों का अंतिम संस्कार होता कैसे, इनकी डेड बॉडी के साथ होता है क्या ?

जिसकी एक दुआ के लिए तो हम तरसते हैं, लेकिन कभी यह दुआ नहीं करते कि अपना भी कोई किन्नर हो। किन्नर, जो आपकी खुशियों को दोगुना करना है, लेकिन कभी अपनी खुशियों को दर्द में कभी किसी को शरीक नहीं करते। वैसे तो किन्नरों की दुनिया आम आदमी से हर मायने में अलग होती है। किन्नरों के बारे में काफी कम जानकारी ही आम लोगों को मिल पाई है। इनकी दुनिया जितनी ही अलग होती है उतना ही इनके रीति-रिवाज़ और संस्कार भी उतने ही अलग होते है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि जब किसी किन्नर की मौत हो जाती है, तब उसकी डेड बॉडी के साथ क्या किया जाता है? उसका अंतिम संस्कार कैसे किया जाता हैं?

किन्नरों के अंतिम संस्कार को गैर-किन्नरों से छिपाकर किया जाता है। इनकी मान्यता के अनुसार अगर किसी किन्नर के अंतिम संस्कार को आम इंसान देख ले, तो मरने वाले का जन्म फिर से किन्नर के रूप में ही होगा। वैसे तो किन्नर हिन्दू धर्म की कई रीति-रिवाजों को मानते हैं, लेकिन इनकी डेड बॉडी को जलाया नहीं जाता। इनकी बॉडी को दफनाया जाता है। अंतिम संस्कार से पहले बॉडी को जूते-चप्पलों से पीटा जाता है। कहा जाता है इससे उस जन्म में किए सारे पापों का प्रायश्चित हो जाता है। अपने समुदाय में किसी की मौत होने के बाद किन्नर अगले एक हफ्ते तक खाना नहीं खाते।

आश्चर्यचकित करता है किन्नर का यह सच

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि किन्नर समाज अपने किसी सदस्य की मौत के बाद मातम नहीं मनाते। इसके पीछे ये वजह है कि मौत के बाद किन्नर को नरक रूपी जिन्दगी से से मुक्ति मिल गई। मौत के बाद किन्नर समाज खुशियां मनाते हैं और अपने अराध्य देव अरावन से मांगते हैं कि अगले जन्म में मरने वाले को किन्नर ना बनाएं।

किन्नर को कभी नहीं दी जाती अग्नि

जब कोई किन्नर मरता है तो उसे अग्नि नही दी जाती बल्कि उसको जमीन में दफनाया जाता है किन्नरों के शव को दिन के वक्त नही बल्कि रात के वक्त निकाली जाती है किन्नरों के शव को जुटे चपलो से पीटा जाता है आपको यह जान कर और भी हैरानी होगी की यह किसी किन्नर के मौत के बाद किसी भी तरह कोई मातम नही मनाते क्योंकि इनकी मान्यता है की मरने के बाद इस नरक युगी जीवन से उस किन्नर को छुटकारा मिल जाता है। इतना ही नही यह लोग जो पैसा कमाते है वेह उससे दान पुन्य भी करते हैं ताकि फिर से उसे ऐसा जन्म न मिले।

किन्नर ने बताया कैसे होता है अंतिम संस्कार

जिस तरह भगवान ने इस धरती पर स्त्री और पुरुष बनाया है उसी तरह हमलोग जैसे ही एक और रचना है को न तो स्त्री और न ही पुरुष वर्ग में आते है जिसे हमारे समाज में किन्नर के नाम से जाना जाता है। वैसे तो हमारे समाज में अभी तक स्त्री के अधिकारों और उसके अस्तित्व को लेकर लड़ाई जारी है तो ऐसे समाज में किन्नर को एक मानव होने के अधिकार और सम्मानपूर्वक जगह देने की बात करनी बेईमानी होगी। समुदाय के जो गुरु होते है वो भी मुस्लिम ही होते है। किन्नरों का उल्लेख हमारे इतिहास में भी है जिसमें एक किन्नर का जंग लडऩे का भी इतिहास है जिनका नाम मालिक काफूर था।

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