कोरोना के खिलाफ DRDO की (2-DG) दवा को क्यों कहा जा रहा है गेम चेंजर ?, जाने इसकी खासियत

कोरोना की दूसरी लहर के सामने लड़खड़ाते अपने देश के लिए DRDO की नई दवा 2-DG (2-deoxy-D-glucose) को गेम-चेंजर कहा जा रहा है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DGCI) की आपातकालीन मंजूरी मिलने के बाद सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर इस दवा में ऐसी क्या खासियत है?
दरअसल, कोरोना के खिलाफ जंग में भारत 4 बड़े मोर्चों पर मात खा रहा है। पहला- अस्पतालों में बेड की कमी, दूसरा- ऑक्सीजन की कमी, तीसरा- रेमडेसिवर जैसी दवा की कमी और चौथा- दवा या वैक्सीन के कच्चे माल के लिए विदेशों पर निर्भरता।
कोरोना की नई दवा 2-DG इन चारों मोर्चों पर स्थिति में काफी सुधार ला सकती है।
खुद DRDO का कहना है इस दवा से मरीजों की ऑक्सीजन पर निर्भऱता कम होगी, साथ ही उन्हें ठीक होने में 2-3 दिन कम लगेंगे यानी अस्पताल से मरीजों की जल्द छुट्टी।
तो आइए जानते हैं कि फार्मा कंपनी डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज के साथ तैयार DRDO की यह दवा कैसे हमें कोरोना के खिलाफ जीत दिला सकती…

Q. कोरोना के खिलाफ कमजोर पड़ती भारत की लड़ाई में DRDO की इस दवा को गेम चेंजर क्यों कहा जा रहा है?

A. तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के दौरान जिन मरीजों को तय दवाओं के साथ DRDO की दवा 2-deoxy-D-glucose (2-DG) दी गई, तीसरे दिन उनमें से 42% मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ी। वहीं, जिन मरीजों को इलाज के तय मानक, यानी स्टैंडर्ड ऑफ केयर (SoC) के तहत दवा दी गईं, उनमें यह आंकड़ा 31% था।
ऐसे ही जिन मरीजों को 2-DG दवा दी गई उनके vital signs, यानी दिल की धड़कन (पल्स रेट), ब्लड प्रेशर, बुखार और सांस लेने की दर, बाकी मरीजों के मुकाबले औसतन 2.5 दिन पहले ही सामान्य हो गए। दवा लेने वाले मरीजों में कोरोना के लक्षणों में तेजी से गिरावट दर्ज की गई। साफ है कि ऐसे मरीजों को अस्पतालों में ज्यादा दिन रुकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 65 साल से अधिक उम्र के कोरोना मरीजों में भी यही नतीजे मिले।
इन नतीजों के बूते ही DRDO के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह दवा का न केवल ऑक्सीजन पर निर्भरता को कम करेगी बल्कि अस्पतालों में बेड की कमी को भी दूर कर सकती है। इसी वजह से 2-DG को गेम चेंजर कहा जा रहा है।

Q. कोरोना की यह दवा काम कैसे करती है? इसकी खासियत क्या है?

DRDO के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज (INMAS) की लैबोरेटरी में तैयार यह दवा ग्लूकोज का ही एक सब्स्टिट्यूट है। यह संरचनात्मक रूप से ग्लूकोज की तरह है, लेकिन असल में उससे अलग है। यह पाउडर के रूप में है और पानी में मिलाकर मरीजों को दी जाती है।

कोरोना वायरस अपनी ऐनर्जी के लिए मरीज के शरीर से ग्लूकोज लेते हैं। वहीं यह दवा केवल संक्रमित कोशिकाओं में जमा हो जाती है। कोरोना वायरस ग्लूकोज के धोखे में इस दवा का इस्तेमाल करने लगते हैं। इस तरह वायरस को एनर्जी मिलना बंद हो जाती है और उनका वायरल सिंथेसिस बंद हो जाता है। यानी नए वायरस बनना बंद जाते हैं और बाकी वायरस भी मर जाते हैं।

असल में यह दवा कैंसर के इलाज के लिए तैयार की जा रही थी। चूंकि यह केवल संक्रमित कोशिका में भर जाती है, इसके इस गुण के चलते केवल कैंसर-ग्रस्त कोशिकाओं को मारने की सोच से यह दवा तैयार की जा रही थी। इस दवा का इस्तेमाल कैंसर-ग्रस्त कोशिकाओं को सटीक कीमोथेरेपी देने के लिए भी इस्तेमाल करने की तैयारी है।

Q. यह दवा कैसे और कितनी मात्रा में ली जाएगी?

आम ग्लूकोज की तरह यह दवा सैशे (पाउच) में पाउडर के रूप में मिलेगी। इसे पानी में मिलाकर मुंह से ही मरीज को देना होगा। दवा की डोज और समय डॉक्टर मरीज की उम्र, मेडिकल कंडीशन आदि की जांच करके ही करेंगे। DRDO के वैज्ञानिकों ने बिना डॉक्टरी सलाह, कोरोना से बचने के नाम पर या ज्यादा मात्रा में यह दवा न लेने की चेतावनी भी दी है।

Q. दवा की कीमत कितनी होगी?

दवा की कीमत को लेकर अभी तक कोई घोषणा नहीं की गई है। DRDO के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. सुधीर चंदाना का कहना है कि दवा की कीमत उत्पादन की तरीके और मात्रा पर निर्भर करेगा। प्रोजेक्ट के इंडस्ट्रियल पार्टनर डॉ. रेड्डीज लैब को यह सब तय करना है। जल्द ही कीमत भी सामने आ जाएगी। माना जा रहा है कि चूंकि दवा जेनेरिक मॉलिक्यूल से बनी है, इसलिए महंगी नहीं होगी। उधर, सूत्रों के हवाले से दावा किया जा रहा है कि दवा के एक पाउच की कीमत 500-600 रुपए के बीच हो सकती है। माना जा रहा है कि सरकार इसमें कुछ सब्सिडी भी घोषणा कर सकती है।

Q. देश अब रोज 4 लाख से ज्यादा नए कोरोना मरीज मिल रहे हैं, क्या यह दवा जरूरत के हिसाब से उपलब्ध हो सकेगी?

कोरोना की यह दवा 2-DG जेनेरिक मॉलिक्यूल यानी ऐसे केमिकल से बनी है जो जेनेरिक है। यानी कानूनी रूप से इसके मूल केमिकल पर इसे विकसित करने वाली कंपनी का पेटेंट खत्म हो चुका है। जेनेरिक दवा में ब्रांडेड मूल दवा जैसे सभी गुण होते हैं, हालांकि इनकी पैकेजिंग, बनाने की प्रक्रिया, रंग, स्वाद आदि अलग हो सकता है। ज्यादातर देशों में मूल दवा विकसित करने वाली कंपनी को 20 सालों का पेटेंट मिलता है। यानी इस दौरान कोई भी बिना उस कंपनी से लाइसेंस लिए दवा नहीं बना सकता है। इसके बदले उन्हें दवा विकसित करने में खर्च करने वाली कंपनी को मोटी रकम भी चुकानी पड़ती है। जेनेरिक होने के कारण इस दवा को कम दाम पर भरपूर मात्रा में बनाया जा सकता है।

Q. क्या 2-DG दवा बनाने का कच्चा माल भारत में उपलब्ध है या उसे इंपोर्ट करना होगा?

यह दवा ग्लूकोज ऐनेलॉग है, यानी यह ऐसा ग्लूकोज है जो प्राकृतिक रूप से मिलने वाले ग्लूकोज की तरह है, लेकिन उसे सिंथेटिक तरीके से बनाया जाता है। इसका उत्पादन करना भी आसान है। DRDO में इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर डॉ. सुधीर चंदाना ने एक इंटरव्यू में कहा है कि कच्चे माल की उपलब्धता में कोई समस्या नहीं। जानकारी के मुताबिक इस को दवा व्यावसायिक रूप बनाने वाली डॉ. रेड्डीज लैब के पास पर्याप्त कच्चा माल है।

Q. दवा बाजार में कब तक मिलना शुरू हो जाएगी?

DRDO ने इस प्रोजेक्ट में डॉ. रेड्डीज लैब को अपना इंडस्ट्रियल पार्टनर बनाया है। DRDO के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. सुधीर का कहना है कि DRDO डॉ. रेड्डीज लैब के साथ तेजी से उत्पादन की कोशिश में जुटा है। उनका दावा है कि कुछ दिनों के भीतर यह दावा बाजार में आ सकती है। शुरुआत में 10 हजार डोज उतारी जा सकती हैं। वहीं, DRDO के सोर्सेस का कहना है कि देश में उनके करीब आधा दर्जन अस्पतालों में 11-12 मई से यह दवा मरीजों की दी जाने लगेगी।

Q. क्या दवा गंभीर मरीजों के लिए कारगर होगी?

प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. सुधीर चंदाना के अनुसार 2-DG का ट्रायल हल्के, मध्यम और गंभीर, तीनों तरह के लक्षण वाले मरीजों पर किया गया था। सभी तरह के मरीजों को इससे फायदा हुआ और किसी तरह के गंभीर साइड इफेक्ट्स देखने को नहीं मिले। इसलिए यह एक सुरक्षित दवा है। दूसरे चरण के ट्रायल में मरीजों की ठीक होने की दर काफी अच्छी थी और तीसरे चरण के ट्रायल में मरीजों की ऑक्सीजन पर निर्भरता काफी कम हुई।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें