जानिए देश की आन-बान-शान तिरंगे से जुड़े ये बेहतरीन फैक्ट्स

आप सभी जानते होंगे कि तिरंगा हमारे देश की शान है। जी हाँ और यह फहराता है तो देश का मस्तक ऊंचा हो जाता है। ऐसे में गणतंत्र दिवस के मौके पर इसे हर व्यक्ति लेकर गर्व महसूस करने वाला है। इसी के साथ यह हर घर की छत पर लगा नजर आएगा। आप सभी को बता दें कि किसी भी मंच पर तिरंगा फहराते समय जब वक्ता का मुंह श्रोताओं की तरफ हो तब तिरंगा हमेशा उसके दाहिने तरफ होना चाहिए। अब आज हम आपको बताते हैं तिरंगे से जुडी कुछ खास बातें।

* कहा जाता है रांची का पहाड़ी मंदिर भारत का अकेला ऐसा मंदिर हैं जहां तिरंगा फहराया जाता है। 493 मीटर की ऊंचाई पर देश का सबसे ऊंचा झंडा भी रांची में ही फहराया गया है।
* बहुत कम लोग जानते हैं कि तिरंगा हमेशा कॉटन, सिल्क या फिर खादी का ही होना चाहिए। जी हाँ और प्लास्टिक का झंडा बनाने की मनाही है।
* आप सभी को बता दें कि तिरंगे का निर्माण हमेशा आयताकार (रेक्टेंगल शेप) में ही होगा, जिसका अनुपात 3:2 तय है।
* तिरंगे में बने अशोक चक्र का कोई माप तय नही हैं। इसमें 24 तीलियांं होनी आवश्यक हैं।
* आपको बता दें कि सबसे पहले लाल, पीले व हरे रंग की हॉरिजॉन्टल पट्टियों पर बने झंडे को 7 अगस्त, 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क), कोलकाता में फहराया गया था।
* बहुत कम लोग जानते हैं कि झंडे पर कुछ भी कलाकृति बनाना या लिखना गैरकानूनी है। जी हाँ और नाव या जहाज में तिरंगा नहीं लगाया जा सकता और न ही इसका प्रयोग किसी बिल्डिंग को ढकने के लिए किया जा सकता है।
* कहा जाता है तिरंगे को फहराते समय ध्यान रखना चाहिए कि वह सीधा हो। इसका मतलब है कि केसरिया रंग सबसे ऊपर हो। इसी के साथ ही इसे जमीन पर नहीं रखना चाहिए।
ध्यान रहे किसी भी दूसरे झंडे को राष्ट्रीय झंडे से ऊंचा या ऊपर नहीं लगा सकते।
* आपको बता दें कि आम नागरिकों को अपने घरों या ऑफिस में आम दिनों में भी तिरंगा फहराने की अनुमति 22 दिसंबर, 2002 के बाद मिली थी।

तिरंगे के फहराने और उतारने की परंपरा- आप सभी को बता दें कि तिरंगे को रात में भी फहराने की अनुमति साल 2009 में दी गई। जी दरअसल इससे पहले शाम होते ही तिरंगे को सम्मानपूर्वक उतारकर रखने की परंपरा थी। हालाँकि राष्ट्रपति भवन संग्रहालय में एक ऐसा लघु तिरंगा हैं, जिसे सोने के स्तंभ पर हीरे-जवाहरातों से जड़ कर बनाया गया है। जी हाँ वहीं भारत के संविधान के अनुसार किसी राष्ट्रीय विभूति का निधन होने और राष्ट्रीय शोक घोषित होने पर कुछ समय के लिए ध्वज को झुका दिया जाता है।

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