पहले भी किसान आंदोलनों में खूब बहा खून, माया सरकार के खिलाफ भी सड़कों उतरे थे किसान


-किसान आंदोलनों में हमेशा आगे रही पश्चिमी यूपी
–कल्याण सरकार में रामकोला में चली थी किसानों पर गोलियां
-किसानों के साथ पुलिस कर्मियों की भी जा चुकी है जाने
-मुलायम सरकार में आंदोलित हुए थे दादरी के किसान

योगेश श्रीवास्तव

लखनऊ। दिल्ली से चलकर यूपी पहुंचे किसान आंदोलन की शुरूआत हिंसक आंदोलन के साथ हुई। इसमे ंकुल आठ लोगों की जाने गयी। जिनमे किसानों के अलावा कई अन्य लोग भी शामिल थे। हालांकि इससे पूर्व दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन ने वर्ष २०२० में गणतंत्र दिवस के मौके पर जब लालकिले पर जो तांडव किया उसमें कोई हताहत नहीं हुआ था लेकिन उपद्रव और हिंसा बड़े पैमाने पर हुई थी। जिसमें पुलिस कार्रवाई के बाद कई लोगों की गिरफ्तारी भी हुई थी। कृषि कानूनों से पहले यूपी में जितने भी किसान आंदोलन हुए उनमें किसानों के साथ-साथ पुलिसकर्मियों का भी खून बहा। यूपी में चाहे मायावती की सरकार रही हो या फिर कल्याण या मुलायम की सभी सरकारों को किसान आंदोलनों का सामना करना पड़ा। 

यूपी वर्ष १९९२ में जब कल्याण की सरकार थी तब कुशीनगर के रामकोला में गन्ना किसानों के आंदोलन में पुलिस द्वारा की गयी फायरिंग में दो किसानों की मौत हुई थी। किसानों के उस आंदोलन की अगुवाई पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह कर रहे थे। जमीनों के जबरिया अधिकगृहण और मुआवजा राशि बढ़ानें के मुद्दे पर प्रदेश में भी नोएडा से भट्टïापरसौल का खूनी किसान आंदोलन अभी भी लोग भूले नहीं है। हालांकि भट्टïापरसौल से पहले भी प्रदेश में कई किसान आंदोलन हुए। जिसमे पुलिस से संघर्ष में किसानों की जाने भी गयी। यह बात अलग है कि अधिकतर किसान आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही हुए है। एक आंदोलन आंदोलन पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी हुआ। 

प्रदेश मे किसान आंदोलन वर्ष २००७ से तेजी से भड़के। उस समय प्रदेश में मायावती की सरकार थी। दादरी में रिलायंस बिजलीघर के लिए जमीन देने के विरोध में किसानों ने आंदोलन शुरू किया था। दादरी में किसानों की जमीन जबरिया देने के विरोध में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह किसान मंच के झंडे तले किसानों के पक्ष में खुलकर सामने आए थे। इसके बाद दादरी के गांव घोड़ीबछेड़ी कि किसानों ने मुआवजा बढ़ाने की मांग को लेकर जो आंदोलन किया उसने धीरे-धीरे काफी उग्र रूप धारण किया। इस आंदोलन में चार किसानों की मौत हुई थी। 

उस समय प्रदेश सरकार ने इस घटना के बाद मुआवजा राशि में इजाफा कर दिया था। दादरी में वर्ष २००९ में मथुरा के बाजना के किसानों ने आंदोलन किया। मायावती सरकार के कार्यकाल के दौरान इस आदोंलन में चार किसानों को गोली लगी थी। जिसमें बाद एक किसान की मौत भी हो गयी थी। वर्ष २०१० में यमुना एक्सप्रेसवे के किनारे अलीगढ़ के टप्पल में टाउनशिप के लिए जमीन अधिगृहीत किए जाने के विरोध मे नोएडा के के बराबर मुआवजा दिए जाने की मांग को लेकर एक बड़ा और उग्र आंदोलन हुआ। टप्पल के इस आंदोलन में तीन किसान ओर एक पुलिसकर्मी की मौत हो गयी थी। टप्पल आंदोलन के बाद भी प्रदेश सरकार ने किसानों का मुआवजा बढ़ा दिया था। 

२०११ में हुए भट्टïा परसौल में हुए किसान आंदोलन में संघर्ष में तीन पुलिस कमी और तीन किसान मारे गए थे। लेकिन आंदोलन फिर शांत न होते देख प्रदेश सरकार ने ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए टप्पल टाउनशिप को योजना ही रद्द कर दी थी। बाद में मामला शांत होने पर फिर बहाल कर दिया था। टप्पल के छह दिन बाद ही आगरा के जलेसर में भी टाउनशिप के लिए जी जारही जबरिया भूमि के विरोध में और मुआवजा बढ़ानें की मांग को लेकर आंदोलन हुआ था। वर्ष २०१० में ही इलाहाबाद के करछना इलाके में किसानों का आंदोलन उग्र हुआ। यहां निजी क्षेत्र लग रहे बिजलीघर के लिए जमीन अधिग्रहीत की जा रही थी। यहां के आदोंलन में भी किसानों एक किसान की मौत हो गयी थी।

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