सूरजभान सिंह : वो बाहुबली, जिसके जुर्म की तपिश से सिहर उठा था बिहार, शर्म से पिता और भाई ने की आत्महत्या

बिहार में बात जब राजनीति की आती है तो कर्पूरी ठाकुर, लालू यादव और नीतीश कुमार की बात होती है, लेकिन अगर डॉन, बाहुबलियों और अपराधियों का जिक्र न हो तो बिहार की सियायत अधूरी कहलाएगी। या यूँ कहें कि बिहार की सियासत लंबे समय तक नेता और बाहुबली से बनी धुरी पर ही घूमती रही है। शहाबुद्दीन, अनंत सिंह जैसे दबंगों के बीच एक बाहुबली नेता ऐसा भी रहा, जिसके गुनाहों का सूरज उसकी उम्र के साथ चढ़ता चला गया।

5 मार्च 1965 को गंगा किनारे बसे पटना जिले के मोकामा में जन्मे सूरजभान सिंह की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। अपराध की सीढ़ियाँ सूरजभान ने इतनी तेजी से चढ़ीं कि लोग उसके नाम से ही काँपने लगे। रंगदारी, अपहरण और हत्या जैसे अपराध उसके लिए आम हो चुके थे।

बिहार की राजनीति में रंगदारी, अपहरण और हत्या जैसे अपराध करने वाले सूरजभान सिंह दबंगई के बाद राजनीति में भी किस्मत आजमाने उतर गए। मोकामा की छोटी गलियाँ जब उनके अपराध के लिए संकरी पड़ने लगीं तो उसने पूरे बिहार को अपना निशाना बनाना शुरू किया। पहले दबंगई फिर विधायक और बाद में सांसद तक बने। पहले निर्दलीय विधायक बने फिर पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी का दामन थाम लिए।

मोकामा के एक छोटे से गाँव की गलियों में खेलते-कूदते बड़े हुए सूरजभान सिंह के पिता एक व्यापारी सरदार गुलजीत सिंह की दुकान पर नौकरी करते थे। इसी से घर चलता था। उनके बड़े भाई की नौकरी सीआरपीएफ में लगी तो परिवार को बड़ा सहारा मिला। पिता सोचते थे कि लंबी-चौड़ी कद काठी वाला छोटा बेटा भी फौज में जाएगा। 

लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मँजूर था। सूरजभान की किस्मत की लकीरें तो उसे सियासत और जुर्म की उस दुनिया में ले गईं, जहाँ उसके नाम का सिक्का चलता था। सूरजभान पहले बाहुबली, फिर विधायक और इसके बाद सांसद बने। शुरुआत में सूरजभान को ऐसे लोगों की संगत मिली, जिनके साथ मिलकर पहले उसने रंगदारी और फिर वसूली करनी शुरू कर दी।

ऐसे बढ़ा क्राइम का ग्राफ

5 मार्च 1965 को बिहार के मोकामा जिले में जन्मे सूरजभान सिंह पर तकरीबन 30 संगीन मामले दर्ज हैं। बताया जाता है कि 80 के दशक में सूरजभान छोटा-मोटा अपराध करता था। लेकिन नब्बे का दशक आते-आते उसके क्राइम का ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा। उसे आगे बढ़ाने का श्रेय दो लोगों को जाता है- कॉन्ग्रेस के विधायक और मंत्री रह चुके श्याम सुंदर सिंह धीरज और अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह को।

दरअसल, कभी श्याम सुंदर के लिए बूथ कब्जा करने वाले बाहुबली दिलीप सिंह ने उन्हें चुनावी रण में न सिर्फ चुनौती दी बल्कि लालू प्रसाद यादव की सरकार में मंत्री बन गए। दिलीप सिंह को धीरज ने ही पाला-पोसा था। ऐसे में उनके पाले-पोसे शख्स ने उन्हें ही चुनावी मैदान में शिकस्त दे दी, इस बात से वे बौखला गए। इस दौरान उनकी नजर पड़ी दिलीप गैंग के ही एक लड़के पर, जिसमें जुर्म की दुनिया में छा जाने का भूत सवार था। वो लड़का सूरजभान ही था।

जब दिलीप मंत्री बनकर वाइट कॉलर जॉब में आ गए तो उन्हें सियासत भी करनी थी और रुतबा भी बरकरार रखना था। इस दौरान सूरजभान ने उस गुलजीत सिंह से भी रंगदारी माँग ली, जो उनकी आँखों के सामने बड़ा हुआ था और जिनके यहाँ पिता नौकरी करते थे। गुलजीत इस बर्ताव से दंग थे। उन्होंने सूरज के पिता को बताया। पिता ने बेटे को समझाने की खूब कोशिश की लेकिन तब तक ‘गंगा में बहुत पानी बह चुका था’।

जुर्म की आँच में परिवार ही खाक हो गया, भाई और पिता ने शर्म से की आत्महत्या

बिहार के एक आम परिवार से संबंध रखने वाले सूरजभान सिंह आज अपराध और बिहार की राजनीति में जाना-माना नाम है। लेकिन कहा जाता है कि सूरजभान के चाल-चलन से उनके पिता रामनंदन सिंह और उनके भाई काफी दु:खी रहते थे। सूरजभान मूल रूप से मोकामा के शंकरबार टोला के निवासी हैं। मोकामा में इनके पिता एक व्यवसायी की दुकान पर काम किया करते थे। 

लेकिन जब सूरजभान ने आपराधिक रास्ता अपनाकर मोकामा में रंगदारी और वसूली शुरू की तो उसने उन लोगों से भी वसूली और मार-पीट की जिनसे उनके परिवार की रोजी-रोटी चलती थी। पिता ने सूरजभान को काफी समझाने की कोशिश की लेकिन उसने एक न मानी। मोकामा वासियों की मानें तो इन्हीं घटनाओं से परेशान होकर सूरजभान के पिता ने गंगा में कूदकर आत्महत्या कर ली। इस घटना के कुछ दिन बाद सीआरपीएफ में कार्यरत उसके इकलौते भाई ने भी आत्महत्या कर ली। 

अशोक सम्राट ने सूरजभान पर मोकामा में हमला भी करवाया था

अब सूरजभान के सिर पर दिलीप सिंह का हाथ था। सूरजभान सिंह मोकामा में उस वक्त छाया, जब उसका सामना उत्तर बिहार के डॉन माने जाने वाले अशोक सम्राट से हुआ। अशोक सम्राट ने सूरजभान पर मोकामा में हमला भी करवाया था। इस हमले में सूरजभान के पैर में गोली लगने के बाद भी वह बच गया था लेकिन उसका चचेरा भाई मारा गया था। कहा जाता है कि अशोक सम्राट जब तक जिन्दा रहा, सूरजभान मोकामा से बाहर नहीं निकल पाया था। 

हाजीपुर में पुलिस मठभेड़ में अशोक सम्राट के मारे जाने के बाद सूरजभान ने अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार किया। इसी बीच सूरजभान के चचेरे भाई मोती सिंह की गैंगस्टर नागा सिंह ने हत्या कर दी थी। जिसके बाद सूरजभान का मोकामा विधायक दिलीप सिंह से दुश्मनी बढ़ी और उस दौर में अपराधियों के हो रहे राजनीतिकरण में सूरजभान का भी नाम जुड़ गया। इस दौरान श्याम सुंदर धीरज को भी एक बाहुबली की जरूरत थी। सूरजभान ने धीरज का हाथ पकड़ा जरूर लेकिन अब उसके सपने बड़े हो चुके थे।

साल 2000 में बने विधायक फिर सांसद

सूरजभान ने मोकामा से साल 2000 में तत्कालीन बिहार सरकार में मंत्री दिलीप सिंह के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीतकर निर्दलीय विधायक बन गए। उस वक्त पुलिस रिकॉर्ड में उन पर उत्तर प्रदेश और बिहार में कुल 26 मामले दर्ज थे। इसके बाद साल 2004 में वह रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट से बलिया (बिहार) के सांसद बने। 

अपराधों की लंबी फेहरिस्त

जनवरी 1992 में बेगूसराय के मधुरापुर में रहने वाले रामी सिंह की हत्या हुई। तड़के 5 बजे रामी सिंह पर चार लोगों ने गोलियाँ चलाकर मौत की नींद सुला दिया। इसमें सूरजभान का भी नाम आया और लोअर कोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 

इसी मामले में सजायाफ्ता होने के कारण सूरजभान पर चुनाव लड़ने से प्रतिबंध लगा है। रामी सिंह हत्याकांड के मुख्य गवाहों और यहाँ तक कि सरकारी वकील राम नरेश शर्मा की भी हत्या हो गई थी। सूरजभान अन्य मामलों की तरह इसमें भी बरी हो जाते अगर केस का एक गवाह और टूट गया होता। 

मगर गवाहों में एक व्यक्ति ऐसा भी था, जिसका नाता बेगूसराय के डॉन रह चुके कामदेव सिंह के परिवार से था। उस परिवार से जुड़े लोग बताते हैं कि सूरजभान के लोग आदतन उस गवाह को भी धमकाने गए। कामदेव सिंह का परिवार सफेदपोश कारोबारी हो चुका है। जब पता चला कि सूरजभान ने उनके किसी रिश्तेदार को जान से मारने की धमकी दी है तो सूरजभान को उसी के अंदाज में संदेश भिजवाया गया- “हमने हथियार चलाना बंद किया है, हथियार रखना नहीं। हमारी बंदूकों से अब भी लोहा ही निकलेगा।”

मामला कुछ फिल्मी सा था। वैसे मोकामा बेगूसराय इलाके के लोगों के बीच रहें तो आप इसे सहज पाएँगे। उनकी रोजमर्रा की बातें और बोलने का अंदाज अलहदा रहता है। डॉन को पूर्व डॉन की धमक का अंदाजा था। कामदेव सिंह के बहुत से चेले-चपाटे अपराध की दुनिया में धीरे-धीरे अपनी पकड़ बना रहे थे। सूरजभान सिंह को पीछे हटना पड़ा। 

पूर्व मंत्री बृज बिहारी की हत्या से दहल गया था राज्य

3 जून 1998 की शाम थी। बृज बिहारी प्रसाद, राबड़ी देवी सरकार में साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री थे। इलाज के लिए उन्हें पटना के इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया था। जब वह पार्क में शाम को टहल रहे थे तो 6-7 हमलावरों ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियाँ चलाईं। गोलियाँ चलाने वालों में गोरखपुर का नामी डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला भी था। इस घटना ने पूरे प्रदेश को दहलाकर रख दिया। मामले में सूरजभान को पुलिस ने आरोपित बनाया गया था। खूब बवाल मचा और जाँच सीबीआई को सौंपी गई। साल 2009 में निचली अदालत ने सूरजभान समेत सारे अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा दी। हालाँकि, बाद में हाईकोर्ट ने सूरजभान को बरी कर दिया था। 

उमेश यादव हत्याकांड

साल 2003 में दिनदहाड़े मोकामा के पूर्व पार्षद और अपराधी उमेश यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उमेश के परिजनों ने सूरजभान पर इल्जाम लगाया। लेकिन मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद सूरजभान को बरी कर दिया गया। 

हालाँकि, ये तो ऐसे मामले हैं, जो कानून और पुलिस की निगाहों में आए। लेकिन कुछ अपराधों का चिट्ठा तो कभी खुला ही नहीं। कभी लोग सूरजभान के नाम से डरते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। सूरजभान के चुनाव लड़ने पर रोक है। हालाँकि, उनकी पत्नी वीणा देवी मुंगेर की सांसद रह चुकी हैं। उनके बेटे आशुतोष सिंह की साल 2018 में एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी।

ये तो ऐसे अपराधों की लिस्ट थी, जो कानून की नजर में आई थी। लेकिन कितनों का तो कोई हिसाब ही नहीं है। कहते हैं एक वक्त था जब लोग सूरजभान सिंह के नाम से ही डरते थे। लेकिन आज हालात ऐसे नहीं हैं। फिलहाल सूरजभान सिंह पर चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई है। लेकिन इनकी पत्नी वीणा देवी बिहार मुंगेर की सांसद रह चुकी हैं और बिहार की राजनीति में सक्रिय भी हैं। 

पत्नी ने दी थी तलाक की धमकी

लोकसभा इलेक्शन के दौरान जब भाजपा और लोजपा में गठबंधन हुआ, तब वीणा देवी ने एक सभा में कहा था कि उन्होंने अपने पति सूरजभान के सामने दो विकल्प रखा था। पहला या तो वे रामविलास पासवान से अलग हो जाएँ, अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो हम उन्हें तलाक देकर भाजपा में चले जाएँगे। वीणा देवी ने कहा कि उनकी इस धमकी के बाद ही पति सूरजभान सिंह भाजपा से गठबंधन के लिए सचेत हुए थे।

तीन दशक से मोकामा पर बाहुबलियों का राज

मोकामा का नाम आते ही बिहार की राजनैतिक सरगर्मी बढ़ जाती है क्योंकि ये वो इलाका है जहाँ पिछले तीन दशक से बाहुबलियों का राज है। यानी बाहुबली ही विधायक चुने जाते रहे हैं। इसकी शुरुआत अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप कुमार सिंह से हुई थी जो साल 1990 में जनता दल के टिकट पर चुने गए थे। 1995 में भी दिलीप सिंह ही जीते थे, लेकिन साल 2000 में दूसरा बाहुबली सूरजभान सिंह यहाँ से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता और विधानसभा पहुँचा। सूरजभान सिंह भी भूमिहार जाति से ही आता है। सूरजभान और अनंत सिंह के परिवारों के बीच दुश्मनी का इतिहास भी पुराना रहा है।

2005 के विधान सभा चुनाव में अनंत सिंह ने जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते। उसी साल फिर उपचुनाव में फिर से अनंत सिंह ने जीत हासिल की। साल 2010 में भी जदयू के टिकट पर अनंत सिंह फिर से लड़े और जीत गए। 2015 में अनंत सिंह चौथी बार निर्दलीय लड़े और इसमें भी जीत गए। इस बार 2020 के विधान सभा में बाहुबली अनंत सिंह आरजेडी का दामन थाम फिर से चुनावी मैदान में उतर रहे हैं। इस बार की सबसे खास बात ये है कि जहाँ बाहुबली खुद आरजेडी के उम्मीदवार हैं वहीं पत्नी को निर्दलीय सीट पर खड़ा कर दिया है। मतलब साफ है कि अगर अंतिम दौर में कोई अड़चन आए तो सीट हाथ से ना जाने पाए। खुद जीतें या पत्नी, लेकिन जीत इनकी झोली में हीं आए।

बिहार का ताजा हालात ये है कि पिछले चुनाव में कुछ लोग जो दूसरे दलों के टिकट पर जीत कर आए थे या जिन्होंने चुनाव में अपना हाथ आजमाया था और जिनका रिश्ता किसी न किसी रूप में अपराध जगत से जुड़ा है वो लोग सत्ताधारी दल में आ चुके हैं या आने के लिए प्रयासरत हैंl सच ही कहा गया है कि अपराध का सबसे अच्छा संरक्षण और पोषण सत्ता के संसर्ग में ही होता हैl आपराधिक जमीन के विस्तार के लिए राजनीतिक जमीन की तलाश निहायत ही जरूरी हैl

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