क्या आने वाले दो दशकों में खत्म हो जाएंगें आसमान में टिमटिमाते तारे, जानिए क्या है इसके पीछे का मतलब

लंदन (ईएमएस)। बचपन में आप में से ज्यादातर ने आसमान में चमकते हुए तारों को जरूर देखा होगा। लेकिन, क्या कभी सोचा है कि पिछले कितने साल से आपने ये नजारा नहीं देखा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि धीरे-धीरे हमें आसमान में तारे दिखना पूरी तरह से बंद हो जाएंगे। जानते हैं कि इसकी क्या वजह होगी?

बचपन में हमें माता-पिता और गुरुओं के द्वारा आसमान की ओर इशारा करके एकसाथ दिखते सप्तर्षि, सबसे ज्यादा चमकदार बृहस्पति और कभी अपनी जगह नहीं बदलने वाले ध्रुव तारे के बारे में बताया जाता था। लेकिन, शायद हम अपनी आने वाली पीढ़ी को ऐसा कुछ भी नहीं दिखा पाएंगे। दरअसल, वैज्ञानिकों का कहना है कि महज दो दशक के भीतर आसमान में तारे दिखने बंद हो जाएंगे। हालात अभी से बिगड़ने लगे हैं, क्योंकि अभी से काफी तारे आसमान में नहीं दिखते हैं। वैज्ञानिकों ने बताया है कि आखिर क्यों अगले दो दशक में तारे गायब हो जाएंगे?

रिपोर्ट के मुताबिक, जानकारों ने दावा किया है कि लाइट पॉल्यूशन के कारण पिछले कई साल से तारे दिखने कम हो चुके हैं। उनके मुताबिक, एलईडी और लाइट के दूसरे सोर्सेज के बढ़ते इस्तेमाल के कारण हमारा आकाश आर्टफिशियल लाइट से जगमगा रहा है। उनका कहना है कि अगर हम लगातार ऐसा ही करते रहे तब ये हमारे लिए बड़ी मुसीबत का कारण बनेगा। लाइट पॉल्यूशन के कारण हमारी अगली पीढ़ी तारे नहीं देख सकेगी। जर्मन सेंटर फॉर जियोसाइसेंस के क्रिस्टोफर कबा के मुताबिक, टिमटिमाते तारों से सुंदर दिखाता आसमान धीरे-धीरे दुर्लभ हो रहा है। कबा ने इसकी गंभीरता को समझाने के लिए कुछ आंकड़ों का सहारा भी लिया है। उन्होंने कहा कि अगर आज कोई बच्चा ऐसी जगह पैदा होता है, जहां के आसमान में 500 तारे दिखते हैं तब अब से 18 साल बाद वहां केवल 200 तारे ही दिखाई देने वाले हैं। अब ये समझते हैं कि ये लाइट पॉल्यूशन होता क्या है?

वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमारी बनाई कृत्रिम रोशनी ही लाइट पॉल्यूशन है। इसके बहुत ज्यादा इस्तेमाल से रात की प्राकृतिक रोशनी धीमी पड़ती जा रही है। हमारी बनाई तमाम लाइट्स में से ग्लेयर लाइट पॉल्यूशन सबसे ज्यादा खतरनाक है। इससे आंखों चौंधियां जाती हैं। फिर जब रोशनी धीमी होती है, तब अंधेरा महसूस होने लगता है। बड़े शहरों में कृत्रिम रोशनी से आसमान का जगमगाना, बिना जरूरत वाली जगहों पर भी कई-कई लाइट्स इस पॉल्यूशन को बढ़ाते हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि बहुत ज्यादा कृत्रिम रोशनी के कारण हमें प्राकृतिक और आर्टिफिशयल लाइट में फर्क महसूस नहीं होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 80 फीसदी आबादी स्काईगो पॉल्यूशन से जूझ रही है। इसका मतलब है कि कृत्रिम रोशनी का बेवजह आकाश में चमकते रहना स्काईगो का कारण है। स्काईगो के कारण अब रातें भी उतनी अंधेरी नहीं रह गई हैं, जितनी पहले होती थीं।
रिपोर्ट के मुताबिक, स्काईगो के कारण ही अब हमें पहले की तरह तारों से जगमग होता आसमान नहीं दिखाता है। यही नहीं, लाइट पॉल्यूशन के कारण आसमान में तारों के कम दिखने के साथ ही मानव जीवन पर भी बुरा असर पड़ रहा है। यही नहीं, चांदनी रातों में एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने वाले प्रवासी पक्षी भी रास्ते भटक रहे हैं। धरती और आसमान के साथ ही आर्टिफिशयल लाइट्स पानी के अंदर भी असर डाल रही हैं। इससे जलीय जीवों को भी कम नजर आता है।

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