रक्षाबंधन का त्यौहार चंद दिनों बाद आने वाला है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए उन्हें रक्षासूत्र बांधती हैं। वहीं इस अवसर पर भाई बहन को उपहार देते हुए उसकी रक्षा करने वचन देता है। गौरतलब है इस बार रक्षाबंधन 2023 पर भद्रा का साया है। ऐसे में कुछ जानकारों के अनुसार इस दौरान रक्षासूत्र नहीं बांधा जाना चाहिए। उनके अनुसार ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक रक्षाबंधन पर्व हमेशा भद्रा रहित काल में मनाया जाता है। यानि जब पृथ्वी लोक में भद्रा का साया रहता है, उस समय रक्षासूत्र नहीं बांधना चाहिए।
राखी कब बांध सकते हैं
ऐसे में इन जानकारों के अनुसार इस साल सावन पूर्णिमा वाले दिन यानी 30 अगस्त को दिनभर भद्रा का साया है। जिसके चलते 30 अगस्त को रात में 9 बजे के बाद और 31 अगस्त को सुबह 7 बजे तक भाई को राखी बांधी जा सकती हैं। इस समय भद्रा नहीं है।
इधर, कई जानकार ये भी कहते हैं – जानें तर्क के साथ
वहीं दूसरी ओर धर्म के जानकारों का कहना है कि श्रावणी केवल रक्षा सूत्र बांधने का त्यौहार नहीं है वह ब्राह्मणों का सबसे बड़ा त्योहार है और ऐसे में अबोध जनसामान्य को हर त्यौहार पर जटिलतम प्रक्रिया समझाना कैसे उचित है? वे उलझे हुए लोग ही जानते है, अबोध जनसामान्य नहीं, त्यौहारों को सहज बनाए और जनता को दुविधा से बचाये अधिक विद्वता जटिल बनाने में ना लगाये ।
जानकारों का कहना है कि लगभग 10 वर्ष पहले तक पूजा में भद्रा और उसके दुर्गुण के विचार से भारत अनभिज्ञ था, मगर अब पिछले 10 वर्षों से नयी नयी अवधारणा खड़ी हो रही है। एक समाचार कुछ बोलता है दूसरा कुछ , परिणाम यह कि अबोध जनता उसमें पिसती है और धर्म सामान्य भावना का विषय ना रह कर ज्ञानियों के जीत हार के अस्त्र शस्त्र का साधन हो जाता है यह बड़ी विडंबना है ।
श्रावणी में वेदोक्त विधि से शिष्यों के संस्कार मंत्र दीक्षा का वृहत कर्मकांड का रूप है और 30 को व कथित विद्वानों द्वारा बताई जाने वाली श्रावणी का गणित भी देख लें…
लगभग 11 बजे तक चौदस चलेगी उसके बाद पूर्णिमा लगेगी
जो 31 तारीख़ की 7.10 तक चलना, जहां तक उदिया तिथि के त्योहारों की बात है वहाँ उदय के समय 30 तारीख़ में श्रावणी नहीं है 11 के बाद जब पूर्णिमा लगेगी तब ये लोग भद्रा लगना बता रहे हैं जो रात्रि 9 बजे तक चलनी है, क्या गुरु दीक्षा का बड़ा कार्यक्रम जिसमें लगभग कम से कम 5 घंटे लगते है क्या 9 बजे के बाद करना उचित है ?
धर्म के संबंध में बार-बार होने वाले ये निर्णय भविष्य में आप ही करें, उन्हें इन कसौटियों पर परखें, जीवन भर ये समस्या निर्णय के लिये आपको भटकना नहीं पड़ेगा…
- धर्म शास्त्र में बड़े बड़े मंचों से टोन टोटके और धर्म भीरु बनाने के अभियान बंद किए जाने चाहिए और जो भी त्योहारों के निर्णय हो अपनी एक सहमति से स्पॉट करें तो ज्यादा उचित है।
- जान लीजिए कि जब परमेश्वर को अर्पण करके कोई कार्य किया जाये तो काल भी अनुकूल हो जाता है।
- जिन त्यौहारों की पूजा सुबह के काल में नियत हो उसमें सुबह जिस दिन आये उसे पूरे दिन की मान्यता दें।
- आप अपने परिवार की रीति रिवाज और मान्यता के अनुसार दिन तय करें।
- जिन त्यौहारों को रात्रि पूजित है उनमें जिस प्रथम दिन धर्म सम्मत है जैसे होली दीपावली, दशहरा, चौथ तीज, शिवरात्रि, जन्माष्टमी प्रमुख हैं।
- धर्म रूढ़िवादी सोच और भय का नाम नहीं है महानारायण को समर्पित कर जो कार्य धर्म सम्मत हो करें निर्विघ्न होगा सब…
- धर्म पर आस्था रखे धर्मांध ना हों धर्म की गलत मान्यताओं पर आप अपने विवेक के अनुसार भावनात्मक निर्णय लें जिसमें प्रभु समर्पण प्रमुख है।
- रक्षाबंधन भारतीय परंपरा में पंचमी तक मनाई जाती है मारवाड़ राजस्थान गुजरात में कई स्थान पर 5 दिन की मान्यता है।
क्या कहा जाता है भद्रा के बारे में ऐसे समझें
कौन है भद्रा?
भद्रा को सूर्य की पुत्री और शनि की बहन बताया गया है। दैनिक पंचांग में भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है। भद्रा 3 स्थान पर होती है- स्वर्ग लोक, पाताल लोक और मृत्यु लोक। मृत्यु लोक पर जब भद्रा होती है, तो वह हानिकारक मानी जाती है। पीयूषधारा के अनुसार स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम। मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी। अर्थात् जब भद्रा स्वर्ग लोक में होगी, तो शुभ फल देगी, जब पाताल लोक में होगी तो धन लाभ कराएगी, लेकिन मृत्यु लोक यानी पृथ्वी लोक में स्थित भद्रा सब कामों को बिगाड़ने वाली होती है।
भद्राकाल क्या है?
मान्यता के अनुसार चंद्रमा की राशि से भद्रा का वास तय किया जाता है। गणना के अनुसार चंद्रमा जब कर्क राशि, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है, तो भ्रदा का वास पृथ्वी पर होता है। वहीं मेष राशि, वृष, मिथुन और वृश्चिक राशि में जब चंद्रमा रहता है, तब भद्रा स्वर्ग लोक में रहती है। चंद्रमा जब कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में होता है, तो भद्रा का वास पाताल लोक में माना गया है।