नर्वदेश्वर महराज के प्राण प्रतिष्ठा के दौरान चल रहे रुद्र महायज्ञ के छठे दिन नगर भ्रमण व मूर्ति मिलाप का हुआ आयोजन: भारी संख्या में जुटे श्रद्धालु

  • शास्त्र व संत दोनों ही मनुष्य को धर्म की रह पर चलने की मार्ग दिखाते हैं- जगतगुरू रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य
  • राम राज्य की स्थापना करना हैं, तो समाज के अंतिम पायदान में खड़े व्यक्ति को गले लगाना होगा- बृजभूषण शरण सिंह

सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के ऐतिहासिक सिद्धपीठ मां वटवासिनी गालापुर महाकाली मैया के मंदिर परिसर में नवनिर्मित शिव मंदिर भगवान नर्वदेश्वर महराज के प्राण प्रतिष्ठा के दौरान चल रहे रुद्र महायज्ञ के छठे दिन नगर भ्रमण व मूर्ति मिलाप का आयोजन हुआ, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। यात्रा का शुभारंभ विधिविधान के पूजन के उपरांत हुआ, जो नगर भ्रमण करते हुए कटेश्वरनाथ प्राचीन शिव मंदिर पहुंची जहां पर मूर्ति मिलाप हुआ और वापस गालापुर स्थान पर आने के उपरांत कथा व प्रसाद वितरण का आयोजन हुआ।

कार्यक्रम में भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह व जगतगुरू रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य महाराज हरिधाम पीठ गोपाल मन्दिर रामघाट, हेमंत दास महाराज हनुमानगढ़ी, महामंडलेश्वर आशुतोष महाराज कामधेनु अखाड़ा आदि का आगमन हुआ। जगतगुरू रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने श्रद्धालुओं को कथा का श्रवण कराते हुए बताया कि शास्त्र व संत दोनों ही मनुष्य को धर्म की राह पर चलने का मार्ग दिखाते हैं। कथाओं का लाभ हमे तब मिलेगा जब हम उसका अनुसरण अपने जीवन में करेंगे और उसी के अनुरूप व्यवहार करेंगे।

कथा सुनने से मानव जीवन में संस्कारों का उदय होता है। पृथ्वी पर जो भी मनुष्य हैं सब मनु के संतान हैं, मनु की संतान होने के कारण ही, मानव जाति को ‘मानव’ कहा जाता है। उन्होंने बताया कि रामायण में भरत के स्थान पर अगर दुर्योधन अयोध्या में होते तो रामायण की जगह महाभारत लिखी गई होती, और महाभारत में अगर दुर्योधन के स्थान पर अगर भरत होते तो महाभारत की जगह रामायण लिखी जाती। इस लिए सभी को अपने जीवन में राम और भरत बनने की आवश्यकता हैं।

बृजभूषण शरण सिंह ने कहां कि राम राज्य की स्थापना करना हैं, तो समाज के अंतिम पायदान में खड़े व्यक्ति को गले लगाना होगा। उन्होंने गालापुर स्थान पर नर्वदेश्वर महराज के प्राण प्रतिष्ठा आयोजक समिति के लोगों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए बताया कि यहां मंदिर भगवान शिवजी ने स्वयं बनवाया है, आप व हम सब सौभाग्यशाली है और केवल माध्यम मात्र हैं, हम सभी दर्शक व सहयोगी के भूमिका में हैं, करने वाला सब शिव हैं। उन्होंने बताया कि रामदिनेशाचार्य जी ने अपने वक्तव्य में कहां कि शिव, शक्ति व अयोध्या तीनों का यहां संगम हो गया हैं, इस मंदिर से प्रेम व सौहार्द्र का वातावरण बनेगा।

अभी महराज जी ने जो अपनी कथा कही हैं कि हमारा जो परिवारिक जीवन हैं वह राम के व्यवहार से सीखना चाहिए, राममय होना चाहिए कि एक गद्दी को छोड़ता हैं तो दूसरा गद्दी को लेने को तैयार नहीं हैं, और आज घर घर में महाभारत हो रहा हैं, बेटा बाप से साथ लड़ रहा है, बाप बेटे के साथ लड़ रहा हैं, भाई भाई के साथ लड़ रहा हैं, सगे भाई सगे भाई के साथ लड़ रहा हैं, तो यह चीजें समाप्त होनी चाहिए। लोगों में रामात्व का भाव होना चाहिए, अयोध्या का प्रभाव होना चाहिए, हस्तिनापुर का प्रभाव नहीं होना चाहिए।

इस दौरान मुख्य यजमान कुंवर आनंद सिंह, राजा योगेंद्र प्रताप सिंह, राजा ऐश्वर्यराज, संजय सिंह, गोपेन्द्र सिंह, हरि सिंह, महेंद्र पाल सिंह, सौरभ पाल सिंह, अमरनाथ सिंह, शिवेंद्र सिंह, अमरेश सिंह, दिनेश सिंह, जयवर्धन तिवारी, मनोज मौर्या, राम मूरत यादव, विनोद मिश्र बाबा, बलराम दासजी महाराज, ठाकुर प्रसाद मिश्रा, मुकेश मिश्रा, सूर्य प्रकाश आदि सहित भारी संख्या में श्रद्धालुगण मौजूद रहें।

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